Saturday Special: शनिदेव ने स्वयं बताया अपनी पीड़ा से मुक्ति का उपाय

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Dec, 2023 06:52 AM

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: शनिदेव द्वारा स्वयं बताए गए उपायों को करके मनुष्य शनि की पीड़ा से मुक्त हो सकता है। जो लोग संस्कृत में स्तोत्र पाठ करने में असमर्थ हैं, वे हिंदी में स्तोत्र पाठ कर सकते हैं।

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Dasaratha stotra: शनिदेव द्वारा स्वयं बताए गए उपायों को करके मनुष्य शनि की पीड़ा से मुक्त हो सकता है। जो लोग संस्कृत में स्तोत्र पाठ करने में असमर्थ हैं, वे हिंदी में स्तोत्र पाठ कर सकते हैं। एकाग्रता से, श्रद्धा से व पवित्रता से की गई हिंदी में स्तुति का भी वही फल प्राप्त होता है जो संस्कृत में पाठ करने से होता है।

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Dashratha shani stotram: प्राचीन प्रसंग के अनुसार राजा दशरथ ने शनिदेव से कहा कि आप किसी को पीड़ा न पहुंचाएं। शनिदेव ने कहा- यह वर असंभव है क्योंकि जीवों के कर्मानुसार सुख-दुख देने के लिए ही ग्रहों की नियुक्ति हुई है किंतु मैं तुम्हें वर देता हूं कि जो तुम्हारी इस स्तुति को पढ़ेगा, वह पीड़ा से मुक्त हो जाएगा।

Dashrath krit shani stotra benefits: शनिदेव ने राजा दशरथ को पुन: वर देते हुए कहा- किसी भी प्राणी के मृत्यु स्थान, जन्म स्थान या चतुर्थ स्थान में मैं रहूं तो उसे मृत्यु का कष्ट दे सकता हूं किंतु जो श्रद्धायुक्त होकर पवित्रता से मेरी लोह प्रतिमा का शमी पत्रों से पूजन करेगा और मिले हुए उड़द-भात, लोहा, काली गौ या काला बैल ब्राह्मण को दान करता है और मेरे दिन (शनिवार) को हाथ जोड़कर इस स्तोत्र का पाठ करता है उसे मैं कभी पीड़ा नहीं दूंगा।

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गोचर में, जन्म लग्र में, दशाओं में तथा अंतर्दशाओं में ग्रह पीड़ा को दूर करके मैं उसकी सदा रक्षा करूंगा। इसी उपाय से सारा संसार मेरी पीड़ा से मुक्त हो सकता है।

Shani stotram अथ शनिस्तोत्रम्।।
श्री:।। अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य दशरथ ऋषि: शनैश्चरो देवता त्रिष्टुपछंद: शनैश्चर-प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:।।

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Dasaratha Uvach दशरथ उवाच-

कोणाऽन्तको रौद्रयमोऽथ ब्रभु:।
कृष्ण शनि: पिंगलमंद सौरि:।
नित्यं समृतो यो हरते च पीड़ां
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।1।
सुरासुर: किंपुरुषा गणेंद्रा
गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च।
पीड्यंति सर्वे विषमस्थितेन,
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।2।।
नरा नरेन्द्रा : पशवो मृगेंद्रा
वन्याश्य ये कीटपतंगभृंगा।
पीड्यंति सर्वे विषमस्थितेन
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।3।।
देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र
सेनानिवेशा: पुरपत्तनाति।
पीड्यंति सर्वे विषमस्थितेन
तस्मै नम : श्रीरविनंदनाय।।4।।
तिलैर्यवैर्माषगुडन्नदार्नै
लोहेन नीलाम्बरदानतो वा।
प्रीणात मंत्रैॢनजवासरे च
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।5।।
प्रयागकूले यमुनातटे च
सरस्वती पुण्यजले गुहायाम्।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मरतस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।6।।
अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्ट-
स्तदीयवारे स नर: सुखी स्यात्।
गृहाद गतो यो न पुन: प्रयाति
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।7।।
स्रष्टा स्यंभूर्भुवनतरस्य
त्राता हरि: संहरते पिनाकी।
एकस्त्रिधा ऋग्यजु: साममूॢत
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय।।8।।
शन्यष्टकं य: प्रयत: प्रभाते
नित्यं सुपुत्रै: पशुबांधवैश्व।
पठेच्च सौख्यं भुवि भोगयुक्तं
प्राप्नोति निर्वाणपदं परं स:।।9।।
कोणस्थ: पिंगलो बभ्र: कृष्णा रौद्राऽन्तको यम:। सौरि:शनेश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।।10।। एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाप य: पठेत्। शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति।।11।।
इति श्रीदशरथप्रोक्तं शनैश्चरस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

 

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