Smile please: माया मन मोहनी, जैसी मीठी खांड

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Mar, 2023 08:24 AM

smile please

हमारे सभी भक्तिकालीन कवियों, साधु-संतों, आचार्यों, गुरुओं, विद्वानों एवं विचारकों आदि ने माया की शक्ति के बारे में बताते हुए जीव के अंदर भरे

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Smile please: हमारे सभी भक्तिकालीन कवियों, साधु-संतों, आचार्यों, गुरुओं, विद्वानों एवं विचारकों आदि ने माया की शक्ति के बारे में बताते हुए जीव के अंदर भरे अहंकार को ही माया का मूल बताया है। हमारे सिद्ध पुरुषों ने मानव को इस मायामय संसार से दूर रहने अर्थात बचने के बारे में भी उपाय बताए हैं, पर हम हैं कि माया के वशीभूत होकर उसके जाल में फंसते ही चले जाते हैं, जिससे हमें अनेक कष्टों का सामना  करना पड़ता है।

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सद्गुरु कबीरदास जी माया को सर्पिणी और ठगनी मानते हैं। वह माया को भगवान की शक्ति भी मानते हैं और संसार के जीवों का शिकार करने वाली भी अर्थात जन्म-मरण का हेतु ही माया है। उन्होंने माना है कि ज्ञान से माया प्रभावहीन हो जाती है, परन्तु माया का प्रभाव गहरा है। मनुष्य उसे छोड़ना चाहे भी तो छोड़ नहीं पाता।

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गोस्वामी तुलसी दास जी ने माया को निर्बल एवं जड़ माना है। वह भगवान राम के आश्रय से सत्य और बलवान होती है तथा ब्रह्मांड की रचना करती है। माया ब्रह्मांड में सर्वत्र व्याप्त रहती है। उन्होंने लिखा है कि ‘गो गोचर जह लगि मन जाई, सो सब माया जानेहु भाई’। तुलसीदास जी मानते हैं कि माया राम की चेरी है। राम से डरती है तथा राम के इशारे पर ही नाचती है।

गोस्वामी जी के अनुसार, जब ब्रह्म के मन में एक से अनेक होने की इच्छा जाग्रत होती है तो आदि शक्ति माया ही विश्व की उत्पत्ति का कारण बनती है। तुलसी दास जी ने मां सीता को माया का अवतार माना और इन्हें ही ब्रह्म की मूल प्रकृति कहा है, जिससे जगत का उद्भव, स्थिति तथा संहार होता है। तुलसी दास जी के अनुसार, राम की प्रेरणा से माया- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश - इन पंचभूत तत्वों को उत्पन्न करती है। इन्हीं से समस्त चराचर उत्पन्न होता है।

अत: जगत माया से उत्पन्न हुआ और माया की उत्पत्ति श्री राम से ही हुई है अर्थात जगत मायामय है या राममय है इसलिए तुलसी दास जी ने जगत को मिथ्या न मानकर राममय मानकर प्रणाम किया है। उन्होंने कहा कि ‘यत्र हरि तत्र नहि भेद माया’  अर्थात राम और जगत में भेद नहीं है।

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इन सबके अतिरिक्त कृष्ण भक्तों ने भी माया के विषय में लिखा है, ‘माया-माया सब रटें, माधव रटे न कोय, जो जब माधव को रटे तो माया चेरी हो जाए।’

इस प्रकार चराचर की सारी माया भगवान की बनाई हुई है और इससे बचने का उपाय भगवान ने भक्ति को माना है। इस प्रकार भक्ति हर व्यक्ति के लिए जरूरी है। अपने तथा दूसरे सभी जीवों की रक्षा की मुक्ति भी भक्ति से ही हो सकती है।     

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