मंदिरों की नगरी सोनागिरि जाएं तो इन स्थानों पर जाना न भूलें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Apr, 2019 02:00 PM

sonagiri temple gwalior

सोनागिरि ग्वालियर से लगभग 60 कि.मी. दूर, छोटी पहाड़ियों पर 9वीं और 10वीं शताब्दी के जैन मंदिर हैं। चंद्र-पवित्र (8वें तीर्थंकर) के समय से स्वयं और अनुष्ठान, तपस्या के लिए अभ्यास करने हेतु भक्तों और संन्यासी संतों में यह पवित्र स्थान लोकप्रिय है।

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सोनागिरि ग्वालियर से लगभग 60 कि.मी. दूर, छोटी पहाड़ियों पर 9वीं और 10वीं शताब्दी के जैन मंदिर हैं। चंद्र-पवित्र (8वें तीर्थंकर) के समय से स्वयं और अनुष्ठान, तपस्या के लिए अभ्यास करने हेतु भक्तों और संन्यासी संतों में यह पवित्र स्थान लोकप्रिय है। यहां साढ़े पांच करोड़ संन्यासी संतों ने मोक्ष को प्राप्त किया है। यह मध्यप्रदेश के दतिया जिले में है और जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि अनंग कुमार ने यहां से मोक्ष प्राप्त करके जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाई थी। पहाड़ी पर 76 जैन मंदिर हैं और 26 मंदिर गांव में हैं। पहाड़ी का जो 57 नंबर का मंदिर है वह मुख्य मंदिर चंद्रप्रभ भगवान की मूलनायक प्रतिमा से युक्त है जो 17 फुट ऊंची है। यह 132 एकड़ की 2 पहाड़ियों से जुड़ा है। यह स्थान और यहां के मंदिर जैन धर्म के ‘दिगम्बर संप्रदाय’ के पवित्रतम स्थान हैं। इस तीर्थस्थल को प्रकृति ने अपनी भरपूर छटा से संवारा, इतिहास ने स्तुत्य गौरव प्रदान किया और अध्यात्म ने इसे तपोभूमि बनाकर निर्वाण के कारण सिद्ध क्षेत्र बनाया है। यह एक अनोखी जगह है।

PunjabKesariइतिहास
जैन संस्कृति का प्रतीक यह क्षेत्र वास्तव में विंध्य भूमि का गौरव है। सोनागिरि, जिसका प्राचीन नाम श्रमणगिरि या स्वर्णगिरि है, बहुत ही सुंदर एवं मनोरम पहाड़ी है। रेलगाड़ी से ही सोनागिरि के मंदिरों के भव्य दर्शन होते हैं। सुंदर पहाड़ी पर मंदिरों की माला और प्रकृति की बूटी निखरते ही बनती है। तलहटी में आबादी भी है जिसे ‘सनावल’ गांव के नाम से जाना जाता है। पर्वत के अतिरिक्त तलहटी में 18 जैन मंदिर और 15 धर्मशालाएं भी तीर्थ यात्रियों की सुविधा हेतु निर्मित हैं। यहां भगवान शीतलनाथ और पाश्र्वनाथ तीर्थंकर की भी सुंदर प्रतिमाएं स्थापित हैं।

PunjabKesariइसके गर्भगृह में 2 लेख देवनागरी लिपि में हैं। एक शिलालेख में 1233 विक्रमी संवत् अंकित है। चंद्रप्रभ प्रतिमा के एक शिलालेख में संवत् 335 मात्र ही पढ़ने में आता है। विद्वानों का मत है कि यह 1335 संवत् रहा होगा। प्रथम अंक 1 दब या मिट गया प्रतीत होता है। आगे इसी जिनालय में 650 फुट ऊंची पाश्र्वनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा है। आगे की वेदिका पर तीर्थंकर नेमीनाथ, पाश्र्वनाथ, चंद्रप्रभ और शांतिनाथ की श्वेतवर्ण प्रतिमाएं हैं। अंत में 19 फनों वाली पद्मासन मुद्रा में सुपाश्र्वनाथ की मूर्ति है जिसका चिन्ह स्वास्तिक नीचे अंकित है। चंद्रप्रभ भगवान के विशाल मंदिर के आगे मान-स्तंभ है।
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यात्रा का उचित समय
लोकप्रिय पर्यटन स्थलों की सैर आदि के लिए दतिया आने का उत्तम समय अक्तूबर से मार्च के बीच रहता है। वायु मार्ग द्वारा ग्वालियर दतिया का निकटतम हवाई अड्डा है।    

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