श्रीमद्भगवद् गीता: भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए फॉलो करें ये Rules

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Aug, 2019 09:30 AM

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महाभारत, रामायण, पुराण, उपपुराण- सब में भगवान शिव का तत्व वर्णित है। इन सब में उनके निराकार और साकार दोनों ही रूपों का निर्देश है। महाभारत के अनुशासन पर्व में युधिष्ठिर के प्रश्रों का

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महाभारत, रामायण, पुराण, उपपुराण- सब में भगवान शिव का तत्व वर्णित है। इन सब में उनके निराकार और साकार दोनों ही रूपों का निर्देश है। महाभारत के अनुशासन पर्व में युधिष्ठिर के प्रश्रों का उत्तर देते हुए भीष्म पितामह कहते हैं- ‘उन सर्वबुद्धि के अधिपति श्री महादेव जी के गुण वर्णन में मैं असमर्थ हूं। वे सर्वव्यापी होते हुए भी सर्वत्र अदृश्य हैं। वे ही इन्द्रादि देवताओं के स्रष्टा और प्रभु हैं।’

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योग में स्थित योग तत्वदर्शी ऋषिगण जिनका ध्यान करते हैं, जो अक्षर ब्रह्म हैं, जो असत् और सदसत् हैं उन परमेश्वर भव को मेरे समान मनुष्य क्या जान सकता है? केवल एक शंख-चक्र-गदा के धारण करने वाले नारायण श्री कृष्ण उनको जानते हैं। भगवान श्री कृष्ण रुद्र भक्ति के प्रभाव से ही जगत व्यापक हो रहे हैं। उन्होंने बद्रिकाश्रम में महादेव को प्रसन्न कर उनसे प्रियवरत्व रूप का वर प्राप्त किया है। पूरे एक हजार वर्षों तक उन्होंने तपस्या की थी। उनका उद्देश्य केवल चराचर- गुरु महादेव को प्रसन्न करना था। श्री कृष्ण ने नाना अवतारों में, युग-युग में महेश्वर को तपस्या द्वारा प्रसन्न किया है। श्रीमद्भगवद् गीता के अध्याय छ: के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को निम्नांकित बातों को अपने जीवन में धारण करना चाहिए-

भगवान शंकर के प्रेम, रहस्य, गुण और प्रभाव की अमृतमयी कथाओं का उनके तत्व को जानने वाले भक्तों द्वारा श्रवण करके, मनन करना एवं स्वयं भी सत् शास्त्रों को पढ़कर उनका रहस्य समझने के लिए मनन करना और उनके अनुसार आचरण करने के लिए प्राणपर्यन्त कोशिश करना।

भगवान शिव की शांत मूर्ति का पूजन, वंदन आदि श्रद्धा और प्रेम से नित्य करना।

भगवान शंकर में अनन्य प्रेम होने के लिए विनय भाव से रुदन करते हुए गद्गद् वाणी द्वारा स्तुति और प्रार्थना करना।

ॐ नम: शिवाय’  इस मंत्र का मन के द्वारा या सांसों के द्वारा प्रेम भाव से गुप्त जप करना।

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शिव तत्व को समझने की चेष्टा करते हुए प्रभाव रहित यथारुचि भगवान शिव के स्वरूप का श्रद्धा-भक्ति सहित निष्काम भाव से ध्यान करना।

स्वार्थ को त्यागकर प्रेमपूर्वक सबके साथ सद्व्यवहार करना।

भगवान शिव में प्रेम होने के लिए उनकी आज्ञा के अनुसार फलाफल को त्यागकर शास्त्र के अनुकूल यथाशक्ति यज्ञ, दान, तप, सेवा एवं जीविका के लिए कर्म करना।

सुख-दुख एवं सुख-दुख कारक पदार्थों की प्राप्ति और विनाश को भगवान शंकर की इच्छा से हुआ समझकर उनमें कदम-कदम पर भगवान सदाशिव की दया का दर्शन करना।

शिव रहस्य और प्रभाव को समझकर श्रद्धा और निष्काम प्रेम भाव से यथारुचि शिव स्वरूप का निरंतर ध्यान होने के लिए चलते-फिरते, उठते-बैठते, उस शिव के नाम-जप का अभ्यास सदा-सर्वदा करना।

दुर्गुण और दुराचार को त्यागकर सद्गुण और सदाचार के उपार्जन के लिए हर समय कोशिश करते रहना।

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