Edited By Jyoti,Updated: 17 Apr, 2022 10:21 AM
श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानव:।
आत्मन्येव च संतुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते।।
अनुवाद : जो व्यक्ति आत्मा में ही आनंद लेता है तथा जिसका जीवन आत्म साक्षात्कार युक्त है और जो अपने में ही पूर्णतया संतुष्ट रहता है उसके लिए कुछ करणीय (कर्तव्य) नहीं होता।
तात्पर्य : जो व्यक्ति पूर्णतया कृष्ण भावनाभावित है और अपने कृष्ण भावनामृत के कार्यों से पूर्णतया संतुष्ट रहता है उसे कुछ भी नियत कर्म नहीं करना चाहिए। कृष्ण भावनाभावित होने के कारण उसके हृदय का सारा मैल तुरंत धुल जाता है जो हजारों यज्ञों को स पन्न करने पर ही संभव हो पाता है। इस प्रकार चेतना के शुद्ध होने से मनुष्य परमेश्वर के साथ अपने संबंध के प्रति पूर्णतया आश्वस्त हो जाता है। भगवत् कृपा से उसका कार्य स्वयं प्रकाशित हो जाता है। अतएव वैदिक आदेशों के प्रति उसका कर्तव्य नि:शेष हो जाता है। ऐसा कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति कभी भी भौतिक कार्यों में रुचि नहीं लेता और न ही उसे सुरा, सुंदरी तथा अन्य प्रलोभनों में कोई आनंद मिलता है।