Srimad Bhagavad Gita: ‘मोक्ष’ के दो मार्ग

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Mar, 2023 11:42 AM

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श्री कृष्ण उत्तर देते हैं (3.3), ‘‘जैसा कि मैंने पहले कहा, इस संसार में मोक्ष के दो मार्ग हैं- ज्ञानी के लिए ज्ञान के माध्यम से और योगियों के लिए कर्म के मार्ग से।’’

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Srimad Bhagavad Gita: श्री कृष्ण उत्तर देते हैं (3.3), ‘‘जैसा कि मैंने पहले कहा, इस संसार में मोक्ष के दो मार्ग हैं- ज्ञानी के लिए ज्ञान के माध्यम से और योगियों के लिए कर्म के मार्ग से।’’

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यह श्लोक इंगित करता है कि जागरूकता का मार्ग बुद्धि उन्मुख के लिए है और कर्म का मार्ग मन उन्मुख के लिए है। श्री कृष्ण स्पष्ट करते हैं (3.4), ‘‘केवल कर्म को आरम्भ किए बिना, कोई निष्कर्म को प्राप्त नहीं कर सकता और कोई केवल त्याग से सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता।’’

लगभग सभी संस्कृतियों में त्याग का महिमामंडन केवल इसलिए किया जाता है क्योंकि त्याग करने वाले कुछ ऐसा करने में सक्षम होते हैं जो एक सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता। यही कारण है कि राज्य की विलासिता और युद्ध की पीड़ा को त्यागने का अर्जुन का दृष्टिकोण हममें से अनेक लोगों को आकर्षित करता है।

श्री कृष्ण भी त्याग के पक्षधर हैं लेकिन वह हमें अपने सभी कार्यों में ‘मैं’ का त्याग करने के लिए कहते हैं। श्री कृष्ण के लिए युद्ध कोई मुद्दा ही नहीं है, लेकिन अर्जुन में ‘मैं’ है। श्री कृष्ण के लिए, ‘नि-र्मम’ और  ‘निर-अहंकार’ शाश्वत अवस्था (2.71) का मार्ग है। हमारे दैनिक जीवन में धन, भोजन, सम्पत्ति, शक्ति या किसी अन्य चीज का त्याग हो सकता है जो समाज द्वारा मूल्यवान है। यह ऐसा कहने जैसा है कि ‘मैंने पैसा कमाया’ और अब ‘मैं पैसे दान कर रहा हूं।’ पैसा बनाना और दान करना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जब तक ‘मैं’ रहता है।

यह एक कठिन अवधारणा है क्योंकि हम आमतौर पर भौतिक संपत्ति के त्याग की प्रशंसा करते हैं। निश्चय ही यह यात्रा का दूसरा चरण है और सम्भावना है कि यह त्याग प्रसिद्धि जैसे किसी उच्च लाभ के लिए हो। इसलिए श्री कृष्ण हमें वहीं रुकने नहीं देते और हमसे ‘मैं’ के त्याग के अंतिम चरण को प्राप्त करने की मांग करते हैं। जब ‘मैं’ का त्याग किया जाता है, तो सब कुछ एक आनंदमय नाटक बन जाता है, अन्यथा जीवन नामक यह नाटक भी एक त्रासदी बन जाता है।

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