Edited By Prachi Sharma,Updated: 31 Jul, 2025 06:58 AM

Tulsidas Jayanti 2025: भारत एक ऐसी भूमि रही है जहाँ समय-समय पर महान संतों, ऋषियों और विद्वानों ने जन्म लिया और समाज को सही दिशा देने का कार्य किया। इन महान विभूतियों ने न केवल आध्यात्मिक जागरण फैलाया, बल्कि संस्कृति और धर्म की जड़ों को भी मजबूत...
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Tulsidas Jayanti 2025: भारत एक ऐसी भूमि रही है जहाँ समय-समय पर महान संतों, ऋषियों और विद्वानों ने जन्म लिया और समाज को सही दिशा देने का कार्य किया। इन महान विभूतियों ने न केवल आध्यात्मिक जागरण फैलाया, बल्कि संस्कृति और धर्म की जड़ों को भी मजबूत किया। इन्हीं महान आत्माओं में एक नाम आता है गोस्वामी तुलसीदास जी का। तुलसीदास जी भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे और उन्होंने अपने जीवन को रामभक्ति में समर्पित कर दिया। उनके द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह भारतीय साहित्य का भी एक अनमोल रत्न है। उनकी रचनाएं आज भी लोगों को धर्म, आस्था और सदाचार का मार्ग दिखाती हैं। तुलसीदास जयंती हर साल उनके जन्मदिन पर भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। वर्ष 2025 में भी यह दिन हमें उनके महान योगदान और उनके द्वारा दिए गए आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को याद करने का एक अवसर देगा। तुलसीदास जी की जीवन यात्रा हमें यह सिखाती है कि भक्ति, सच्चाई और सेवा का मार्ग कभी व्यर्थ नहीं जाता। वर्ष 2025 में तुलसीदास जयंती आज 31 जुलाई को मनाई जा रही है।
तुलसीदास जयंती का महत्व
गोस्वामी तुलसीदास भारतीय साहित्य की उन महान हस्तियों में से एक हैं जिन्हें अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ याद किया जाता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि अपने जीवन में उन्हें भगवान श्रीराम और हनुमान जी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। एक लोकप्रिय लोककथा के अनुसार, रामचरितमानस की रचना के दौरान उन्हें हनुमान जी का सीधा मार्गदर्शन मिला था। तुलसीदास जयंती केवल एक संत का जन्मदिन नहीं, बल्कि उनके आध्यात्मिक और साहित्यिक योगदान को सम्मान देने का विशेष अवसर है। इस दिन खासतौर पर उनके द्वारा रामायण को जनमानस तक पहुंचाने में निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को याद किया जाता है। उनकी रचनाएं आज भी न केवल साहित्य के क्षेत्र में बल्कि भारतीय धर्म, संस्कृति और दर्शन की परंपराओं को जीवंत बनाए रखने में अहम भूमिका निभा रही हैं।

गोस्वामी तुलसीदास कौन थे ?
तुलसीदास जी का जीवनकाल लगभग 1497 से 1623 के बीच माना जाता है। वे एक महान संत, भक्त और कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें श्रीरामचरितमानस सबसे प्रमुख है। उन्होंने संस्कृत में रचित रामायण को अवधी भाषा में सरल रूप में प्रस्तुत किया, जिससे आम जनता भी भगवान श्रीराम की कथा से जुड़ सकी। इसी कारण कई लोग उन्हें महर्षि वाल्मीकि का पुनर्जन्म मानते हैं। वाराणसी में स्थित तुलसी घाट का नाम उन्हीं के सम्मान में रखा गया है, जहां उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा बिताया। माना जाता है कि वाराणसी में स्थित प्रसिद्ध संकटमोचन मंदिर की स्थापना भी तुलसीदास जी ने ही की थी, जो आज भी हनुमान भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।
