डब्ल्यूएचओ की फीस बढ़ोतरी पर कंज्यूमर चॉइस सेंटर ने उठाए सवाल, शासन में सुधार की मांग

Edited By Diksha Raghuwanshi,Updated: 11 Jun, 2025 10:04 AM

consumer choice center raises questions on who s fee hike

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपने अनिवार्य सदस्यता शुल्क, जिसे मूल्यांकन योगदान कहते हैं, में 20% की वृद्धि की घोषणा की है ।

चंडीगढ़। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को अपने अनिवार्य सदस्यता शुल्क में 20% की बढ़ोतरी के फैसले के बाद कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। इस बढ़ोतरी से डब्ल्यूएचओ को हर साल दुनियाभर के करदाताओं से करीब 120 मिलियन डॉलर अतिरिक्त मिलेंगे।
कंज्यूमर चॉइस सेंटर ने इस फैसले का विरोध किया है और डब्ल्यूएचओ की पारदर्शिता, जवाबदेही और फंड खर्च करने के तरीकों पर सवाल उठाए हैं। खासकर भारत जैसे देशों में, जहां 60% से ज्यादा स्वास्थ्य खर्च लोग अपनी जेब से करते हैं और सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को अभी भी पर्याप्त फंडिंग नहीं मिलती, वहां इस तरह की वैश्विक संस्थाओं के खर्च पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपने अनिवार्य सदस्यता शुल्क, जिसे मूल्यांकन योगदान कहते हैं, में 20% की वृद्धि की घोषणा की है । साल 2026 और 2027 के लिए, इससे हर साल  120 मिलियन डॉलर अतिरिक्त आएंगे, जो दुनिया भर के करदाताओं से लिए जाएंगे। डब्ल्यूएचओ दो तरह से पैसे का उपयोग करता है: स्वैच्छिक योगदान, जो खास स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए होते हैं, और मूल्यांकन योगदान, जो डब्ल्यूएचओ के नेतृत्व, जिसमें डायरेक्‍टर जनरल टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस शामिल हैं, को पैसे खर्च करने की अधिक आजादी देते हैं। 
इस राशि का उपयोग अपेक्षाकृत लचीले ढंग से किया जा सकता है। यह निर्णय उस समय आया है, जब दुनियाभर की स्वास्थ्य सेवाएं कम फंडिंग, लंबी इंतजार सूची और कर्मचारियों की कमी जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रही हैं।
मिली जानकारी के अनुसार, इस फंड का उपयोग जिनेवा स्थित डब्ल्यूएचओ मुख्यालय में विभिन्न सुधार और उन्नयन के लिए किया जा रहा है। डब्ल्यूएचओ के वरिष्ठ अधिकारियों को दिए जाने वाले लाभों में प्रति बच्चे 33,000 डॉलर का शिक्षा भत्ता भी शामिल है।
डब्ल्यूएचओ के 301 सबसे वरिष्ठ कर्मचारियों पर हर साल लगभग 130 मिलियन डॉलर खर्च होते हैं, यानी प्रति व्यक्ति औसतन 432,000 डॉलर है। जिसमें वेतन के साथ सभी प्रकार के भत्ते और लाभ शामिल हैं। 
इन अतिरिक्त फंड्स के संभावित उपयोग पर अपनी राय रखते हुए कंज्यूमर चॉइस सेंटर के मैनेजिंग डायरेक्टर फ्रेड रोएडर ने कहा, “हर साल डब्ल्यूएचओ को 120 मिलियन डॉलर की अतिरिक्त राशि मिलेगी। इस पैसे से 15,000 जर्मन, 40,000 पोलिश, 82,000 जॉर्जियाई, 1 लाख दक्षिण अफ्रीकी या 5 लाख भारतीयों को सीधे स्वास्थ्य सेवाएं दी जा सकती हैं।
भारत में यही राशि आयुष्मान भारत योजना के तहत करीब 40,000 कैंसर मरीजों के इलाज या 20 लाख से ज़्यादा बच्चों के टीकाकरण के लिए पर्याप्त हो सकती है। यह पैसा तंबाकू निवारण सेवाओं को भी मज़बूती दे सकता है, जो कि देश में 26 करोड़ से अधिक तंबाकू उपयोगकर्ताओं के बावजूद आज भी बेहद कम संसाधनों में काम कर रही हैं।
फ्रेड ने आगे कहा, “इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि यह 'कोर फंडिंग' की तरफ बढ़ता रुझान डब्ल्यूएचओ की एक सोच-समझकर बनाई गई रणनीति का हिस्सा है। संगठन अब डोनर आधारित, लक्षित पहलों से हटकर सामान्य बजट बढ़ाने पर जोर दे रहा है, जिससे वह इस पैसे का उपयोग अपनी मर्जी से—वेतन, यात्रा और रियल एस्टेट जैसे मदों पर—कर सके।”
“यह पैसा महामारी की तैयारी या बच्चों के टीकाकरण जैसे जरूरी कामों में नहीं जा रहा, बल्कि एक बड़े और कम पारदर्शी प्रशासनिक ढांचे पर खर्च हो रहा है, जिसकी जवाबदेही भी संदिग्ध है।”
डब्ल्यूएचओ के समर्थकों का कहना है कि संगठन को वैश्विक स्वास्थ्य संकटों से निपटने के लिए अधिक आज़ादी की ज़रूरत है, लेकिन बिना निगरानी के यह आज़ादी ग़लत दिशा और फंड के दुरुपयोग का कारण बन सकती है।
डब्ल्यूएचओ की महामारी से निपटने की पिछली परफॉर्मेंस कमजोर रही है और वह अकसर राजनीतिक विवादों में घिरा रहा है। भारत में तंबाकू नियंत्रण के मामले में भी डब्ल्यूएचओ केवल सैद्धांतिक सुझाव देता है, न कि ऐसा सहयोग जो प्रमाण आधारित हो और जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य, व्यापार और अर्थव्यवस्था का संतुलन बना रहे।
ऐसे में डब्ल्यूएचओ को “खुली छूट” नहीं बल्कि एक तेज़, लक्षित और ज़िम्मेदार स्वास्थ्य इकाई की ज़रूरत है, जो संगठन के आकार बढ़ाने से ज़्यादा, स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान पर ध्यान दे।
राष्ट्रीय सरकारों को तब तक डब्ल्यूएचओ की सदस्यता फीस में कोई और बढ़ोतरी नहीं करनी चाहिए, जब तक कि यह संगठन पारदर्शिता में बड़े सुधार, वरिष्ठ अधिकारियों के वेतन में कटौती, और मरीजों को प्राथमिकता देने वाले कार्यक्रमों के लिए फंड की स्पष्ट गारंटी न दे।
हमें यह जवाबदेही उन लोगों के लिए चाहिए जो सच में बीमार हैं-न कि जिनेवा के आलीशान दफ्तरों में बैठे लोगों के लिए।
भारत, जो कि जी20 का एक प्रमुख सदस्य और वैश्विक स्वास्थ्य कूटनीति में एक निर्णायक भूमिका निभा रहा है, उसे और टैक्सपेयर पैसा देने से पहले साफ-साफ जवाबदेही की मांग करनी चाहिए।
डब्ल्यूएचओ को दी जाने वाली भविष्य की फंडिंग को स्थानीय समस्याओं से जोड़ना चाहिए — जैसे भारत में तंबाकू नियंत्रण नियमों को बेहतर बनाना, किसानों को वैकल्पिक फसलों के लिए मदद देना, और अवैध तंबाकू व्यापार रोकने के लिए ट्रेसबिलिटी लागू करना। ये ऐसे क्षेत्र हैं जो स्वास्थ्य और सरकारी राजस्व दोनों को नुकसान पहुंचाते हैं।

Related Story

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!