Edited By Tanuja,Updated: 30 Oct, 2025 05:31 PM

पाकिस्तान की लाहौर हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिला अनीका अतीक की मौत की सज़ा रद्द कर दी। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष कोई सबूत पेश नहीं कर सका और एफआईए ने फॉरेंसिक जांच तक नहीं कराई। अनीका का मामला देश में बढ़ते ईशनिंदा कानूनों के दुरुपयोग को उजागर करता...
Islamabad: पाकिस्तान में एक हाई-प्रोफाइल ईशनिंदा (Blasphemy) केस में मौत की सज़ा पाई मुस्लिम महिला अनीका अतीक को लाहौर हाईकोर्ट की रावलपिंडी बेंच ने बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के केस में गंभीर कानूनी और प्रक्रिया संबंधी खामियां थीं। अनीका को जनवरी 2022 में रावलपिंडी स्थित एफआईए की विशेष अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई थी। उन पर आरोप था कि उन्होंने शिकायतकर्ता हसनात फारूक को ईशनिंदा से जुड़े संदेश भेजे थे। एफआईए ने उन्हें वर्ष 2020 में गिरफ्तार किया था। लेकिन हाईकोर्ट की दो सदस्यीय बेंच जस्टिस सादिकत अली खान और जस्टिस चौधरी वहीद ने पाया कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहा।
अनीका की पैरवी कर रहे वकील सैफुल मलूक (जो एशिया बीबी के वकील भी रह चुके हैं) ने दलील दी कि एफआईए की साइबर क्राइम विंग ने न तो फोन की फॉरेंसिक जांच की, न ही कोई तकनीकी सबूत पेश किया। केस दर्ज होने में भी 10 दिन की देरी हुई थी, और कथित मोबाइल फोन भी अनीका का नहीं, बल्कि किसी अन्य महिला का था, जिसे केस में सह-अभियुक्त तक नहीं बनाया गया। जस्टिस खान ने अभियोजन से पूछा “जब अभियुक्त के खिलाफ कोई ठोस सबूत ही नहीं, तो उसे मौत की सज़ा कैसे दी जा सकती है?”
अदालत ने एफआईए के कानूनी प्रक्रिया पालन न करने पर भी कड़ी टिप्पणी की और कहा कि जांच एजेंसियाँ खुद कानून की अनदेखी करती हैं। ह्यूमन राइट्स कमीशन ऑफ पाकिस्तान के अनुसार, देश में ईशनिंदा के मामलों में 2022 के बाद तेज़ी से वृद्धि हुई है। 2021 में जहाँ केवल 9 केस दर्ज हुए थे, वहीं 2024 तक यह संख्या 475 से अधिक हो गई। रिपोर्ट के मुताबिक़, इन मामलों का इस्तेमाल ज़मीन विवादों, व्यक्तिगत दुश्मनी और सोशल मीडिया ब्लैकमेलिंग के लिए बढ़ता जा रहा है।