कंगाली की कगार पर शांति का सबसे बड़ा प्रहरी, ट्रंप के फैसले से UN में मची हाहाकार

Edited By Updated: 06 May, 2025 02:09 PM

trump administration proposes scrapping un peacekeeping funding

दुनिया में शांति, मानवाधिकारों और मानवीय सहायता की सबसे बड़ी आवाज माने जाने वाले   संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की स्थिति अब अत्यंत गंभीर हो चुकी है। 80 साल पुराने इस वैश्विक संगठन पर ...

International Desk: दुनिया में शांति, मानवाधिकारों और मानवीय सहायता की सबसे बड़ी आवाज माने जाने वाले   संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की स्थिति अब अत्यंत गंभीर हो चुकी है। 80 साल पुराने इस वैश्विक संगठन पर अब वित्तीय दिवालियेपन का खतरा मंडरा रहा है। यदि मौजूदा हालात नहीं बदले, तो अगले 5 महीनों में न तो कर्मचारियों को वेतन मिल पाएगा और न ही दुनिया के संकटग्रस्त क्षेत्रों में शांति सेना की तैनाती संभव हो पाएगी। The Economist की रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र अपने बजट संकट से निपटने के लिए एक आपात योजना पर विचार कर रहा है, जिसके तहत  करीब 3,000 कर्मचारियों की छंटनी  की जा सकती है। इतना ही नहीं, यूएन  नाइजीरिया, पाकिस्तान और लीबिया जैसे देशों में स्टाफ की संख्या 20% तक घटाने की तैयारी में है।


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संकट का सबसे बड़ा कारण ट्रंप
इस अभूतपूर्व संकट का सबसे बड़ा कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ₹19,000 करोड़ की फंडिंग रोकना है। यह फंड संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट का एक बड़ा हिस्सा है। इसमें कुछ राशि मौजूदा बाइडेन प्रशासन के कार्यकाल की भी है, लेकिन ट्रम्प शासन में ही इसे प्राथमिकता से रोक दिया गया था। UN का 2025 का कुल अनुमानित बजट ₹32,000 करोड़  है, लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए संगठन ने पहले ही ₹5,000 करोड़ यानी 17% की कटौती करने की योजना बना ली है।
 
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 चीन की चाल 
UN के बजट में चीन की हिस्सेदारी 20%  है। बीते वर्षों में चीन ने जानबूझकर अपनी फंडिंग में देरी की है  2024 में उसका फंड 27 दिसंबर को आया, जिससे वह उपयोग में नहीं आ सका। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, चीन की मंशा यूएन में शीर्ष पदों पर अपने अधिकारियों की नियुक्ति की है और देरी से भुगतान करके वह दबाव बना रहा है। वहीं दूसरी ओर 2024 में 41 देशों पर ₹7,000 करोड़ का भुगतान बकाया रहा, जिनमें अमेरिका, अर्जेंटीना, मैक्सिको और वेनेजुएला जैसे देश प्रमुख हैं। अब तक केवल 49 देशों ने समय पर फंडिंग की है।
 
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टेंशन में UN महासचिव 
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेस इस संकट को लेकर अत्यंत चिंतित हैं। उन्होंने फरवरी में चेतावनी दी थी कि यदि अनिवार्य भुगतान समय पर नहीं हुआ, तो जुलाई तक यूएन के शांति मिशन बंद होने की नौबत आ सकती है। अब वह मई में सभी सदस्य देशों को एक  औपचारिक पत्र भेजकर तत्काल भुगतान की अपील करेंगे।संयुक्त राष्ट्र का अंदरूनी आकलन ताता है कि यदि कटौतियां नहीं की गईं, तो  2025 के अंत तक घाटा ₹20,000 करोड़ तक पहुंच सकता है।

 
वोटिंग अधिकार भी संकट में 
यदि अमेरिका 2025 में भी अपनी अनिवार्य फंडिंग नहीं देता, तो  संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 19 के अनुसार 2027 तक अमेरिका को यूएन महासभा में वोटिंग अधिकार गंवाना पड़ सकता है। इससे पहले  ईरान और वेनेजुएला जैसे देशों को ऐसी सजा भुगतनी पड़ी है। हालांकि, अमेरिका जैसे देश का वोटिंग अधिकार जाना यूएन की साख को भी भारी नुकसान पहुंचा सकता है।
 

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