प्रचंड के भारत दौरे से कितनी उम्मीदें

Edited By Updated: 30 May, 2023 04:37 PM

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प्रचंड के भारत दौरे से कितनी उम्मीदें

नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड बुधवार से तीन जून तक भारत की यात्रा पर आ रहे हैं. इस दौरान दोनों देश आपसी संबंधों को दृढ़ और नई ऊंचाइयों पर ले जाने की कोशिश करेंगे.दिसंबर 2022 में नेपाल के प्रधानमंत्री बनने के बाद पुष्प कमल दहल प्रचंड की यह पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा होगी. नेपाली प्रधानमंत्री के साथ एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी भारत आ रहा है. यात्रा के दौरान प्रचंड राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति से मुलाकात करेंगे. साथ ही वे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उच्चस्तरीय बैठक करेंगे. प्रचंड पिछले कार्यकाल में प्रधानमंत्री के रूप में तीन बार भारत का दौरा कर चुके हैं और यह उनका चौथा दौरा होगा. नेपाल के विदेश मंत्रालय ने इस यात्रा के पहले एक बयान में कहा था, "यह यात्रा नेपाल और भारत के बीच सदियों पुराने, बहुआयामी और सौहार्दपूर्ण संबंधों को और मजबूत करेगी." दरअसल प्रचंड की छवि कभी चीन के प्रति झुकाव वाले नेता के रूप में थी. अब वह इस छवि को सुधारने की कोशिश जुटे हुए हैं. उन्होंने चीन में 'बोआओ फोरम फॉर एशिया' में हिस्सा नहीं लिया और पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना. एवरेस्ट की चढ़ाई के 70 साल: क्या बदला इन सालों में नेपाल किसके ज्यादा करीब वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर कहते हैं लंबे समय तक समान जातीयता, धर्म, भूगोल और साझा राजनीति का मतलब हमेशा यह होगा कि नेपाल भारत के करीब होगा. वे कहते हैं, "हिमालयी देश को चीन की तुलना में भारत में बंदरगाहों और यहां के बाजारों तक पहुंच ज्यादा आसान लगता है." प्रचंड ने 10 साल के सशस्त्र संघर्ष के दौरान अधिकांश समय भारत में बिताया था. उन्होंने अपने पहले कार्यकाल के दौरान दो बार भारत का दौरा किया था लेकिन चीन के साथ उनकी नजदीकी के कारण दोनों देश के बीच रिश्तों में थोड़ी गर्मजोशी कम हो गई थी. संजय कपूर कहते हैं प्रचंड माओवादी रहे हैं, लेकिन उन्होंने भारत में काफी समय बिताया है. उनका भारतीय राजनीतिक वर्ग के साथ व्यापक नेटवर्क है- यह साझा भाषा, राजनीति और काठमांडू को लगातार भारतीय सरकारों द्वारा दिए गए समर्थन के साथ है. अपनी यात्रा के दौरान प्रचंड अपने द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत करेंगे. साथ ही साथ नई दिल्ली में नेपाल-भारत व्यापार शिखर सम्मेलन में दोनों देशों के व्यापारिक नेताओं के साथ मुलाकात करने वाले हैं. कपूर कहते हैं, "भारत के पड़ोसी देश- नेपाल, श्रीलंका, मालदीव भारत के साथ बेहतर समझौता करने के लिए चीन के साथ अपने संबंधों का लाभ उठाते हैं, लेकिन वे भारत से अलग होने के बारे में नहीं सोच सकते. प्रचंड यह भी जानते हैं कि उनकी या उनके देश की नियति भारत के साथ है, जिसके अमेरिका के साथ भी घनिष्ठ संबंध हैं." दोनों देशों के बीच सीमा विवाद नेपाल और भारत के बीच 1800 किलोमीटर की खुली सीमा है. ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाली गोरखा के बीच हुई लड़ाइयों के बाद 1816 में दोनों के बीच सुगौली सीमा संधि हुई थी. लेकिन पिछले कुछ समय से नेपाल के पश्चिम-उत्तरी सीमा बिंदु को लेकर विवाद चल रहा है. पश्चिम की सीमा महाकाली नदी को माना गया है. नेपाल का दावा है कि पश्चिमी सीमा कालापानी है, जो 1816 के बाद नेपाल में था. 1960 के दशक में भारत-चीन युद्ध के आसपास से वहां भारत का कब्जा है. जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लिए जाने के बाद भारत ने 2019 में नए नक्शे में कालापानी को अपना हिस्सा दिखाया जिससे विवाद और बढ़ गया. पिछले साल अप्रैल में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के भारत दौरे, फिर मई में पीएम मोदी की नेपाल यात्रा से दोनों देशों के बीच भरोसे का माहौल बना है. भारत और नेपाल में बहुत पुराने और पौराणिक संबंध हैं. ऐसे में दोनों देश इस दौरे का इस्तेमाल आपसी संबंधों को मजबूत करने और रिश्तों में गरमाहट लाने के मौके के तौर पर कर सकते हैं.

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