कभी गंदगी-मृत मछलियों से भरी थीं स्विट्ज़रलैंड की नदियां ! अब बन गईं देश का ‘ब्लू गोल्ड’, भारत भी अपनाए कायाकल्प का यह मॉडल

Edited By Updated: 27 Oct, 2025 02:13 PM

from toxic to blue gold how switzerland revived its dead rivers

1960 के दशक में स्विट्ज़रलैंड की नदियाँ गंदगी, झाग और मरी मछलियों से भर चुकी थीं। लेकिन सरकार, वैज्ञानिकों और नागरिकों के सामूहिक प्रयासों से 50 सालों में वही नदियाँ यूरोप की सबसे स्वच्छ बन गईं। आधुनिक वेस्टवॉटर ट्रीटमेंट और सख्त पर्यावरण कानूनों ने...

International Desk: कभी मौत का पर्याय बन चुकीं स्विट्ज़रलैंड की नदियाँ आज जीवन का प्रतीक बन गई हैं। झाग, बदबू और मरी मछलियों से भरी ये नदियाँ अब नीले सोने ‘ब्लू गोल्ड’ में बदल चुकी हैं।1960 के दशक में स्विट्ज़रलैंड की नदियों की हालत बेहद खराब थी। फैक्ट्रियों का कचरा और घरों का गंदा पानी सीधे नदियों में गिरता था, जिससे पानी जहरीला हो गया था। लोग नदी में नहाने से बीमार पड़ते थे, और मछलियाँ बड़ी संख्या में मर रही थीं। लेकिन बीते 50 वर्षों में इस देश ने कमाल कर दिखाया। भारत, बांग्लादेश, नेपाल और दूसरे देशों के लिए यह उदाहरण बताता है कि अगर इरादा और नीति दोनों मजबूत हों, तो कोई भी नदी, चाहे कितनी भी प्रदूषित क्यों न हो, फिर से जीवनदायिनी बन सकती है।

 

सरकार  के सख्त कदम
सख्त वेस्ट मैनेजमेंट नियमों, आधुनिक वेस्टवॉटर ट्रीटमेंट सिस्टम, और जनजागरूकता अभियानों की मदद से आज वही नदियां यूरोप की सबसे स्वच्छ हैं। सरकार ने उद्योगों के लिए कठोर मानक तय किए, हर शहर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए, और नागरिकों ने भी जल-संरक्षण को जीवनशैली का हिस्सा बनाया। इस संयुक्त प्रयास से अब स्विट्ज़रलैंड की नदियाँ न सिर्फ साफ हैं, बल्कि जीवन और जैव विविधता से भरपूर हैं।आज ये नदियाँ पूरी दुनिया के लिए उदाहरण हैं कि संकल्प, विज्ञान और सामूहिक जिम्मेदारी से कोई भी देश अपनी नदियों को पुनर्जीवित कर सकता है।

 

 बदलाव का सफ़र
1970 के दशक में सरकार ने महसूस किया कि अगर तुरंत कदम नहीं उठाए गए, तो यह जल-संकट राष्ट्रीय आपदा में बदल जाएगा। इसके बाद “वॉटर प्रोटेक्शन एक्ट” बनाया गया जिसने हर घर और उद्योग के लिए अपशिष्ट जल (wastewater) को शुद्ध करने की सख्त व्यवस्था लागू की।

 मुख्य कदम:

  • देशभर में आधुनिक वेस्टवॉटर ट्रीटमेंट प्लांट्स स्थापित किए गए।
  • औद्योगिक इकाइयों को अपने अपशिष्ट को नदियों में फेंकने पर भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया।
  • नागरिकों को ‘क्लीन रिवर प्रोग्राम्स’ में शामिल किया गया ताकि वे खुद निगरानी करें और नदियों की सफाई को जन-आंदोलन बनाएं।
  • खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग पर नियंत्रण लगाया गया ताकि नदी में बहकर जाने वाले रसायनों की मात्रा घटे।

     

एक सोच का परिणाम
इन प्रयासों का असर चौंकाने वाला रहा।आज स्विट्ज़रलैंड की वही नदियाँ   जो कभी झाग और सड़ांध से भरी थीं  अब यूरोप की सबसे स्वच्छ नदियांमानी जाती हैं। झीलें और नदियाँ इतनी पारदर्शी हैं कि तल तक देखा जा सकता है। मछलियाँ, जल-पक्षी और जलीय पौधे फिर से लौट आए हैं। यह परिवर्तन इतना अद्भुत था कि आज स्विट्ज़रलैंड अपनी नदियों को प्यार से ‘ब्लू गोल्ड’ (नीला सोना) कहता है। देश अब सिर्फ अपनी स्वच्छता पर ही नहीं, बल्कि अपनी जल-प्रबंधन तकनीक पर भी गर्व करता है  जिसे दुनिया के कई देश मॉडल के रूप में अपना रहे हैं। स्विट्ज़रलैंड की कहानी सिर्फ़ एक देश की नहीं, बल्कि एक सोच की कहानी है  
जहां प्रकृति को केवल संसाधन नहीं, बल्कि जीवन साथी माना गया।

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