Edited By Rohini Oberoi,Updated: 04 Dec, 2025 03:08 PM

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से पहले राजनीतिक गलियारों में जहां भारत-अमेरिका-रूस के त्रिकोणीय समीकरण और तेल खरीद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर हलचल तेज़ है वहीं उनकी जिंदगी से जुड़ा एक ठंडा और रहस्यमय किस्सा फिर सुर्खियों में आ गया है।...
नेशनल डेस्क। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से पहले राजनीतिक गलियारों में जहां भारत-अमेरिका-रूस के त्रिकोणीय समीकरण और तेल खरीद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर हलचल तेज़ है वहीं उनकी जिंदगी से जुड़ा एक ठंडा और रहस्यमय किस्सा फिर सुर्खियों में आ गया है। यह कहानी द्वितीय विश्वयुद्ध (World War II) के दौरान पुतिन की मां के मृत मान लिए जाने और फिर उनके चमत्कारिक ढंग से बचने से जुड़ी है।
हिलेरी क्लिंटन की किताब से सामने आया किस्सा
यह नाटकीय घटना सबसे पहले 2014 में सामने आई जब पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन (Hillary Clinton) ने अपनी किताब 'हार्ड च्वॉइस' (Hard Choices) में इसका ज़िक्र किया। हिलेरी के अनुसार पुतिन ने उनसे व्यक्तिगत बातचीत में बताया था कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान लेनिनग्राद (Leningrad) की भीषण घेराबंदी चल रही थी। शहर भुखमरी, बर्फ और बमबारी से टूट चुका था।
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पुतिन की मां को मृत मान लिया गया था और उन्हें लाशों के ढेर के पास रखा गया था। क्लिंटन लिखती हैं कि छुट्टी पर घर लौटे उनके पिता ने लाशों के ढेर में अपनी पत्नी के जूते देखे। दौड़कर देखने पर उन्हें पत्नी के चेहरे पर एक हल्की-सी सांस महसूस हुई। पिता उन्हें घर ले गए, इलाज कराया और उनकी जान चमत्कारिक ढंग से बच गई। हिलेरी ने इस घटना को सत्यापित (Verified) नहीं किया लेकिन यह उन्हें बार-बार याद आती रही।
पुतिन की आत्मकथा में कहानी का दूसरा मोड़
हालांकि पुतिन की 2000 में प्रकाशित आत्मकथा 'फर्स्ट पर्सन' इस कहानी को एक अलग मोड़ देती है जिससे एक रहस्य (Mystery) पैदा होता है। पुतिन अपनी किताब में बताते हैं कि उनकी मां भूख से बेहोश हुई थीं और लोगों ने उन्हें उन लाशों के साथ रख दिया था जिन्हें शहर से हटाया जा रहा था।
उनका कहना था कि उनके पिता उस समय मोर्चे पर लड़ रहे थे और घर पर नहीं थे। पुतिन लिखते हैं कि उनके चाचा ने उनकी मां की मदद की और उन्हें खाना खिलाया। बाद में जब चाचा का ट्रांसफर हुआ तब मां भूख से गिर पड़ीं और मृत मान ली गईं लेकिन वह समय रहते होश में आईं।
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मृत्यु को मात देकर हुआ था जन्म
दोनों कहानियों में विरोधाभास होने के बावजूद एक बात साफ है कि पुतिन का जन्म किसी सामान्य परिस्थिति में नहीं हुआ था। उनके परिवार को युद्ध, भूख, ठंड, मौत और अनिश्चितता ने घेरा हुआ था। 1952 में जन्मे पुतिन का अस्तित्व ही उस चमत्कार की देन है जिसने उनकी मां को मौत के मुंह से खींचकर वापस जीवन दिया। किसी एक पल की जागरूकता, किसी एक सांस की वापसी और एक व्यक्ति के प्रयास ने इतिहास को मोड़ दिया और उस व्यक्ति को जन्म दिया जो आज रूस की राजनीति का सबसे प्रभावशाली चेहरा है।
जब पुतिन आज भारत की सरजमीं पर कदम रखेंगे तो उनके जीवन की शुरुआत में छिपी यह जंग और अनिश्चितता की कहानी, उनकी शक्ति और ज़िद के पीछे की पृष्ठभूमि को और भी सिहराहट देती है।