जानिए क्या है कावेरी जल विवाद, क्यों मचा इस पर बवाल?

Edited By seema,Updated: 16 Feb, 2018 04:26 PM

know what is the cauvery water dispute

सुप्रीम कोर्ट ने आज दक्षिण भारतीय राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के बीच दशकों पुराने कावेरी जल विवाद पर अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कावेरी नदी के पानी का बंटवारा करते हुए कर्नाटक के हिस्से का पानी बढ़ा दिया। जबकि तमिलनाडु को 192 की बजाए 177.25...

नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने आज दक्षिण भारतीय राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के बीच दशकों पुराने कावेरी जल विवाद पर अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कावेरी नदी के पानी का बंटवारा करते हुए कर्नाटक के हिस्से का पानी बढ़ा दिया। जबकि  तमिलनाडु को 192 की बजाए 177.25 TMC पानी देने का फैसला सुनाया। वहीं बेंगलुरु को 4.75 TMC पानी देने को कहा। कोर्ट ने कर्नाटक के हिस्से के पानी में 14.75 TMC पानी बढ़ाया है। कोर्ट के फैसले के बाद अब कर्नाटक को कुल 285 TMC पानी मिलेगा। वहीं इस मुद्दे के उठने के साथ ही लोगों में कोतूहल है कि आखिर ये मामला है क्या। कई दशकों से कावेरी जल क्षिण भारतीय राज्यों में विवाद का कारण बना हुआ है।

जानिए क्या विवाद
भारतीय संविधान के अनुसार कावेरी एक अंतर्राज्यीय नदी है। कर्नाटक और तमिलनाडु इस कावेरी घाटी में पड़ने वाले प्रमुख राज्य हैं। इसलिए दोनों ही इस पर अपना हक जता रहे थे। लेकिन इस घाटी का एक हिस्सा केरल में भी पड़ता है और समुद्र में मिलने से पहले ये नदी कराइकाल से होकर गुजरती है, जो पुडुचेरी का हिस्सा है। इसलिए इस नदी के जल के बंटवारे को लेकर इन चारों राज्यों में विवाद का एक लंबा इतिहास रहा है। चारों राज्य ही इस नदी पर अपना अधिकार जताते आ रहे हैं।

कावेरी विवाद का पूरा घटनाक्रम:
-कावेरी नदी के पानी को लेकर पहला समझौता मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर राज के बीच 1892 में हुआ और दूसरा 1924 में।

-1924 में हुआ दूसरा समझौता 1974 में समाप्त हुआ।

-मई 1990 को उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र को कावेरी जल विवाद पंचाट गठित करने का आदेश दिया। तमिलनाडु 1970 से ही इसकी मांग कर रहा था। 

-2 जून 1990 को केन्द्र ने कावेरी जल विवाद पंचाट के गठन की अधिसूचना जारी की।

-जनवरी 1991 में कावेरी जल विवाद पंचाट ने अंतरिम राहत संबंधी तमिलनाडु की अर्जी खारिज की; तमिलनाडु इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंचा।

-अप्रैल 1991 उच्चतम न्यायालय ने कावेरी जल विवाद पंचाट को निर्देश दिया कि वह अंतरिम राहत के लिए तमिलनाडु की अर्जी पर विचार करे।  

-जून में कावेरी जल विवाद पंचाट ने अंतरिम फैसला सुनाया। कर्नाटक को 205 टीएमसीफुट पानी छोडऩे का आदेश।

-कर्नाटक ने आदेश रद्द करने के लिए अध्यादेश जारी किया। उच्चतम न्यायालय ने हस्तक्षेप किया, कर्नाटक के अध्यादेश को रद्द किया और कावेरी जल विवाद पंचाट का अंतरिम आदेश बरकरार रखा। कर्नाटक ने इसे मानने से इनकार किया।

-11 दिसंबर 1991 को अंतरिम फैसला भारत सरकार के गजट में प्रकाशित हुआ।

-अगस्त 1998 को केन्द्र ने कावेरी नदी प्राधिकरण का गठन किया, ताकि कावेरी जल विवाद पंचाट का अंतरिम फैसला लागू करना सुनिश्चित हो सके।

-8 सितंबर 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता वाले कावेरी नदी प्राधिकरण ने कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए 9,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया। 

-5 फरवरी 2007 को कावेरी जल विवाद पंचाट ने 17 साल बाद अंतिम फैसला सुनाया।

-पंचाट ने तमिलनाडु के पानी देने के संबंध में मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर राज के बीच 1892 और 1924 में हुए दोनों समझौतों को वैध बताया।

-19 सितंबर 2012 को सातवें कावेरी नदी प्राधिकरण में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कर्नाटक को निर्देश दिया कि वह बिलिगुंडलु बांध के लिए तमिलनाडु को 9,000 क्यूसेक पानी छोड़े।

-28 सितंबर 2012 को उच्चतम न्यायालय ने कावेरी नदी प्राधिकरण में प्रधानमंत्री का निर्देश नहीं मानने पर कर्नाटक सरकार को फटकार लगाई। 

-19 मार्च 2013 को तमिलनाडु ने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया कि वह जल संसाधन मंत्रालसय को कावेरी प्रबंधन बोर्ड के गठन का निर्देश दे। 

-10 मई को उच्चतम न्यायालय ने कावेरी का पानी छोड़े जाने की निगरानी के लिए केन्द्र से पैनल गठित करने को कहा। 

-28 मई को तमिलनाडु उच्चतम न्यायालय पहुंचा, कावेरी जल विवाद पंचाट का आदेश पालन नहीं करने के लिए कर्नाटक से 2,480 करोड़ रुपए का मुआवजा मांगा।

-12 जून को कावेरी निगरानी समिति ने कावेरी जल विवाद पंचाट के आदेशानुसार कर्नाटक को कावेरी का पानी छोड़े जाने का निर्देश देने के लिए तमिलनाडु की अर्जी के बारे में कहा कि यह व्यावहारिक नहीं है। 

-14 जून को तमिलनाडु ने कावेरी निगरानी समिति पर कर्नाटक के रूख को लेकर तमिलनाडु ने अवमानना का मुकदमा करने का फैसला किया।

-26 जून को कावेरी प्रबंधन बोर्ड के गठन की मांग लेकर तमिलनाडु उच्च्तम न्यायालय पहुंचा। 

-28 जून को तमिलनाडु ने उच्चतम न्यायालय में कर्नाटक के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की।

-18 नवंबर 2015 को कर्नाटक ने कावेरी का पानी छोड़े जाने संबंधी तमिलनाडु की अर्जी का विरोध किया। 

-2 सितंबर 2016 को उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक से कहा कि वह तमिलनाडु को कावेरी का पानी देने के संबंध में विचार करे। 

-5 सितंबर को उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक को आदेश दिया, अगले 10 दिनों तक रोजाना तमिलनाडु को 15,000 क्यूसेक पानी छोड़े।  

-7 सितंबर को उच्चतम न्यायालय के आदेश पर कर्नाटक ने तमिलनाडु के लिए कावेरी का पानी छोडऩा शुरू किया। 

-11 सितंबर को कर्नाटक ने तमिलनाडु को पानी देने वाले आदेश में संशोधन का अनुरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय में अर्जी दी। 

-12 सितंबर को उच्च्तम न्यायालय ने 5 सितंबर के आदेश को खत्म करने संबंधी कर्नाटक की याचिका रद्द की। हालांकि, रोजाना छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा 15,000 क्यूसेक से घटाकर 12,000 क्यूसेक करने को कहा।

-19 सितंबर को कावेरी निगरानी समिति ने कर्नाटक को महीने के बकाया दिनों में रोजाना 3,000 क्यूसेक पानी छोड़ने को कहा।

-14 जुलाई 2017 को उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह दोनों राज्यों के लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए मामले पर संतुलित तरीके से विचार करेगा। कर्नाटक ने अनुरोध किया तमिलनाडु को 192 टीएमसीफुट के स्थान पर 132 टीएमसीफुट पानी दिया जाए।

-20 सितंबर को उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा।

-16 फरवरी 2018 को उच्चतम न्यायालय ने अंतिम फैसला सुनाया। कर्नाटक को प्रतिवर्ष तमिलनाडु के लिए 404.25 टीएमसीफुट पानी छोड़ने को कहा। कावेरी जल विवाद पंचाट ने पहले तमिलनाडु को 419 टीएमसीफुट पानी देने को कहा था।  उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कावेरी जल पर उसका फैसला अगले 15 साल तक प्रभावी रहेगा।

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