चुनावी बॉन्ड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 अप्रैल को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

Edited By Yaspal,Updated: 21 Mar, 2023 05:02 PM

supreme court to hear petitions challenging electoral bonds on april 11

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजने के मसले पर 11 अप्रैल को सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजने के मसले पर 11 अप्रैल को सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा की पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मामले को 11 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।

याचिकाकर्ताओं में शामिल ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने मामले को संविधान पीठ के समक्ष भेजने की गुहार लगाते हुए कहा, ‘‘जब यह एक संविधान पीठ होगी, तभी हमें लाभ होगा। सबसे बड़ी बात यह कि इससे किसी का नुकसान नहीं होगा। हां, यह मुद्दा हमारे लोकतांत्रिक अस्तित्व की जड़ों तक जाता है। चुनावी बांड के तौर पर अब तक 12,000 करोड़ रुपये और इसका दो तिहाई से अधिक सबसे बड़ी पार्टी को जाता है।''

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता शादान फरासत ने कहा कि इस मामले में एक पहलू राजनीतिक दलों के वित्त के आधार से संबंधित है। इस विषय पर एक आधिकारिक घोषणा की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि अदालत के विचार के लिए तैयार किए गए सवालों के मद्देनजर यह पीठ इस मामले को एक संविधान पीठ द्वारा विचार करने पर विचार कर सकती है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र का पक्ष रख रही एक अधिवक्ता से पूछा कि क्या वह इस मामले को संविधान पीठ को सौंपने के पहलू पर बहस करने के लिए तैयार हैं। इस पर अधिवक्ता ने कहा कि अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी (उस वक्त अदालत में मौजूद नहीं थे) अदालत के समक्ष तकर् दे सकते इस मामले को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए या नहीं। केंद्र ने 14 अक्टूबर 2022 को शीर्ष अदालत को बताया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना राजनीतिक फंडिंग का बिल्कुल पारदर्शी तरीका है। इसमें काले धन की कोई संभावना नहीं है। एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और अन्य ने अपारदर्शी होने के कारण 02 जनवरी-2018 को शुरू की गई केंद्र की चुनावी बांड योजना की वैधता को राजनीतिक चंदे के स्रोत के रूप में चुनौती दी है।

शीर्ष अदालत ने 27 मार्च 2021 को एक आदेश में इस आरोप को खारिज कर दिया था कि यह योजना पूरी तरह से अपारदर्शी है। इस आशंका को कि विदेशी कॉर्पोरेट घराने बांड खरीद सकते हैं और देश में चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास कर सकते हैं, अदालत ने ‘गलत' करार दिया था। यह माना गया कि योजना के खंड 3 के तहत बांड केवल एक व्यक्ति द्वारा खरीदे जा सकते हैं, जो भारत का नागरिक है या यहां निगमित या स्थापित कंपनी है। अदालत ने यह भी गौर किया कि केवल बैंकिंग चैनलों के माध्यम से होने वाले बांडों की खरीद और नकदीकरण हमेशा उन दस्तावेजों में परिलक्षित होता है जो अंतत: सार्वजनिक होता है।

 

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