Edited By Rohini Oberoi,Updated: 07 Oct, 2025 04:10 PM

उत्तराखंड की खूबसूरत सरोवर नगरी नैनीताल जो कभी देश-विदेश के सैलानियों से भरी रहती थी वह अब सन्नाटे में डूबी नजर आ रही है। स्थानीय होटल व्यवसायियों और दुकानदारों के अनुसार इस बार नवरात्रि और दशहरे के सीजन में भी पर्यटकों की संख्या में भारी कमी दर्ज...
नेशनल डेस्क। उत्तराखंड की खूबसूरत सरोवर नगरी नैनीताल जो कभी देश-विदेश के सैलानियों से भरी रहती थी वह अब सन्नाटे में डूबी नजर आ रही है। स्थानीय होटल व्यवसायियों और दुकानदारों के अनुसार इस बार नवरात्रि और दशहरे के सीजन में भी पर्यटकों की संख्या में भारी कमी दर्ज की गई है। इस साल का बंगाली सीजन (दुर्गापूजा सीजन) भी पूरी तरह से फीका रहा है।
क्यों नैनीताल से मुंह मोड़ रहे हैं पर्यटक?
स्थानीय निवासियों और दुकानदारों ने नैनीताल के पर्यटन संकट के पीछे के तीन मुख्य कारण बताए हैं:

दुकानदार रमन ने बताया कि शहर में पार्किंग का शुल्क ₹500 और टोल टैक्स ₹300 कर दिया गया है। शहर में आने वाले पर्यटकों पर ₹800 का अतिरिक्त भार पड़ रहा है जिस वजह से पर्यटक नैनीताल आने से बच रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी नैनीताल को सबसे महंगा शहर बताया जा रहा है जिससे इसकी छवि नकारात्मक बन रही है।
दुकानदार मनीष जोशी के अनुसार स्थानीय प्रशासन और पुलिस द्वारा ट्रैफिक नियमों को लेकर सख्त रुख अपनाया जा रहा है। बाहर से आने वाले पर्यटकों की गाड़ी रोड किनारे खड़ी करने पर जैमर लगा दिया जाता है और भारी जुर्माना किया जाता है जिससे पर्यटक दोबारा यहाँ आने से कतरा रहे हैं।
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बंगाली पर्यटक जो दुर्गापूजा सीजन में नैनीताल की जान होते थे उन्होंने इस बार सिक्किम, दार्जिलिंग और उत्तर बंगाल के हिल स्टेशनों को तरजीह दी है। गुजराती सैलानी भी अब मनाली और कश्मीर की ओर रुख करना पसंद कर रहे हैं। दुकानदार पिंकी भोटिया के अनुसार गर्मियों का सीजन भी ठप रहा था और अब बंगाली टूरिस्ट भी नदारद हैं।

लगातार घटनाओं ने तोड़ी पर्यटन की कमर
नैनीताल होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह बिष्ट ने बताया कि इस साल लगातार कई घटनाओं ने नैनीताल के पर्यटन को गहरा झटका दिया है जिसके चलते पूरा काम ठप रहा है। पहले पहलगाम आतंकी हमले के बाद नैनीताल खाली हुआ था। उसके बाद नैनीताल में हुई सांप्रदायिक तनाव की घटना ने पर्यटन को बुरी तरह प्रभावित किया। मानसून के दौरान लैंडस्लाइड (भूस्खलन) की घटनाओं ने भी पर्यटकों को पहाड़ों से दूर कर दिया। होटल व्यवसायियों को अब दिवाली के दौरान गुजराती और महाराष्ट्र के पर्यटकों से उम्मीद है कि उनकी संख्या बढ़ेगी और उनका काम फिर से पटरी पर लौटेगा।