Edited By Rohini Oberoi,Updated: 08 Oct, 2025 10:42 AM

करवा चौथ का नाम सुनते ही हर विवाहित महिला के मन में एक विशेष उत्साह उमड़ आता है। यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है जो इस वर्ष 10 अक्टूबर शुक्रवार को पड़ रहा है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, सुख और...
नेशनल डेस्क। करवा चौथ का नाम सुनते ही हर विवाहित महिला के मन में एक विशेष उत्साह उमड़ आता है। यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है जो इस वर्ष 10 अक्टूबर शुक्रवार को पड़ रहा है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, सुख और समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और माता करवा की पूजा करती हैं।
छलनी से चंद्रमा दर्शन: क्या है इसका महत्व?
शाम ढलते ही सजी-धजी महिलाएं पूजा की थाली में दीप, मिठाई, करवा (जल का पात्र) और छलनी सजाती हैं। रात को जब चंद्रमा निकलता है तब महिलाएं सबसे पहले छलनी से चांद को देखती हैं और फिर उसी छलनी से अपने पति का चेहरा निहारकर अपना व्रत खोलती हैं।

परंपरा के पीछे की मान्यता
माना जाता है कि छलनी में हजारों छेद होते हैं। जब विवाहित महिला छलनी से चंद्रमा को देखती है तो छेदों की संख्या में चंद्रमा के जितने प्रतिबिंब दिखाई देते हैं उतनी ही पति की आयु बढ़ जाती है। इस परंपरा के बिना करवा चौथ का निर्जला व्रत अधूरा माना जाता है इसलिए छलनी का उपयोग अनिवार्य है।

गणेशजी का शाप और चंद्र दर्शन
करवा चौथ पर छलनी का उपयोग करने के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है जिसका संबंध चंद्र देव को मिले एक शाप से है:
चंद्रमा का अहंकार: एक बार चंद्र देव को अपनी सुंदरता पर बहुत अहंकार आ गया था और उन्होंने भगवान गणेशजी के रूप-रंग का मजाक उड़ाया।
गणेशजी का शाप: चंद्र देव की बातों से क्रोधित होकर गणेशजी ने उन्हें शाप दे दिया। उन्होंने कहा कि जो भी मनुष्य चंद्रमा को देखेगा उस पर दोष लगेगा और कलंक का सामना करना पड़ सकता है।

शाप का निवारण: अपनी गलती का एहसास होने पर चंद्र देव ने गणेशजी से क्षमा मांगी। तब गणेशजी ने शाप की अवधि को कम करके केवल एक दिन के लिए कर दिया और वह तिथि है भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी (जिसे कलंक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है)।
इस घटना के बाद लोगों के मन में यह डर बैठ गया कि किसी भी चौथ की रात को चंद्रमा को सीधी आंखों से नहीं देखना चाहिए। यही वजह है कि करवा चौथ पर छलनी की आड़ लेकर चंद्रमा के दर्शन किए जाते हैं ताकि अशुभ दोष से बचा जा सके और व्रत पूर्ण हो।