भारत में कहां-कहां जन्मे प्लास्टिक बेबी? गर्भ में बच्चे की त्वचा क्यों होती है प्लास्टिक जैसी? जानिए कारण

Edited By Updated: 04 Jun, 2025 02:10 PM

where were plastic babies born in india

'प्लास्टिक बेबी' कोई मेडिकल टर्म नहीं है लेकिन यह शब्द कभी-कभी मीडिया या आम लोगों द्वारा उन नवजात शिशुओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो किसी दुर्लभ आनुवंशिक या जन्मजात त्वचा रोग से पीड़ित होते हैं। इस स्थिति में शिशु की त्वचा चमकदार, मोटी और...

नेशनल डेस्क। 'प्लास्टिक बेबी' कोई मेडिकल टर्म नहीं है लेकिन यह शब्द कभी-कभी मीडिया या आम लोगों द्वारा उन नवजात शिशुओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो किसी दुर्लभ आनुवंशिक या जन्मजात त्वचा रोग से पीड़ित होते हैं। इस स्थिति में शिशु की त्वचा चमकदार, मोटी और प्लास्टिक जैसी दिखाई देती है। यह आमतौर पर कोलॉडियन बेबी सिंड्रोम से संबंधित होती है जो बच्चे की त्वचा के सामान्य विकास में बाधा डालती है। बच्चों में यह स्थिति जन्म के समय या जन्म के कुछ ही घंटों बाद दिखाई दे सकती है।

भारत में कहां-कहां सामने आए हैं 'प्लास्टिक बेबी' के मामले?

भारत में 'प्लास्टिक बेबी' या कोलॉडियन बेबी सिंड्रोम के कुछ मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से कुछ प्रमुख शहर और स्थान शामिल हैं:

➤ पंजाब का अमृतसर
➤ राजस्थान का बीकानेर
➤ उत्तर प्रदेश का बहराइच
➤ बिहार का औरंगाबाद

हालांकि यह रोग अन्य जगहों पर भी पैदा होने वाले शिशुओं में संभव है क्योंकि यह एक आनुवंशिक (जेनेटिक) रोग है। यह रोग माता-पिता से बच्चों को विरासत में मिलता है। यदि माता-पिता दोनों में से किसी एक को भी इस बीमारी का जीन होता है तो उनके बच्चे में भी यह बीमारी होने का खतरा रहता है।

 

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इस बीमारी में बच्चों को किन चीजों का खतरा होता है?

कोलॉडियन बेबी सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे आंतरिक रूप से सामान्य बच्चों जैसे ही होते हैं। उनके शरीर में सारे फंक्शन एक सामान्य रूप से पैदा होने वाले बच्चे जैसे ही होते हैं। हालाँकि इस बीमारी के साथ पैदा होने वाले बच्चों की त्वचा काफी पतली हो जाती है और उनकी त्वचा में स्ट्रेच नहीं होता है।

यह स्थिति बच्चों के शरीर में मूवमेंट को सीमित कर सकती है। जब बच्चा सांस लेता है या शरीर में कोई गतिविधि होती है,तो त्वचा में खिंचाव न होने के कारण क्रैक्स (दरारें) आ सकती हैं। यह एक ऑटोसोमल रिसेसिव आनुवंशिक रोग है जिसका अर्थ है कि माता-पिता दोनों से दोषपूर्ण जीन मिलने पर ही यह रोग बच्चे में प्रकट होता है।

इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है क्योंकि उनकी नाजुक त्वचा संक्रमण और अन्य जटिलताओं के प्रति अधिक संवेदनशील होती है। डॉक्टर और परिवार को बच्चे की त्वचा को लगातार नमी युक्त रखने और उसे बाहरी खतरों से बचाने के लिए विशेष उपाय करने पड़ते हैं।

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