दुनिया भर में क्यों आ रहे इतने भूकंप? रिपोर्ट में सच आया सामने

Edited By Parveen Kumar,Updated: 14 May, 2025 06:53 PM

why are there so many earthquakes around the world

वाशिंगटन से एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें कहा गया है कि भूकंप और परमाणु हथियार परीक्षण के झटके को पहचानना अब और भी मुश्किल हो गया है। लॉस एलामोस लैब के वैज्ञानिकों ने इस विषय पर एक रिसर्च में खुलासा किया है कि कुछ भूकंप दरअसल छिपे हुए...

नेशनल डेस्क: वाशिंगटन से एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें कहा गया है कि भूकंप और परमाणु हथियार परीक्षण के झटके को पहचानना अब और भी मुश्किल हो गया है। लॉस एलामोस लैब के वैज्ञानिकों ने इस विषय पर एक रिसर्च में खुलासा किया है कि कुछ भूकंप दरअसल छिपे हुए परमाणु परीक्षणों के कारण हो सकते हैं। इस नए अध्ययन ने दुनिया भर के सुरक्षा विशेषज्ञों को हैरान कर दिया है, क्योंकि अब यह पता चला है कि भूकंप और परमाणु धमाके के झटके के बीच फर्क करना बेहद कठिन हो सकता है, खासकर जब दोनों एक ही समय पर या आस-पास में हों।

भूकंप और परमाणु परीक्षण के झटकों में अंतर की समस्या

वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप और परमाणु धमाके के झटके के बीच इतना मेल हो सकता है कि उन्हें अलग करना मुश्किल हो जाए। इस अध्ययन के मुताबिक, अगर भूकंप और परमाणु धमाके एक ही समय पर या बहुत नजदीक हो, तो सबसे आधुनिक डिटेक्टर भी धोखा खा सकते हैं और सही से यह नहीं पहचान पाएंगे कि हुआ क्या था। हालांकि आजकल के पास बेहद उन्नत तकनीक है, लेकिन फिर भी यह समस्या बरकरार है।

नॉर्थ कोरिया का उदाहरण

इस रिसर्च में नॉर्थ कोरिया का उदाहरण भी दिया गया है, जिसने पिछले 20 सालों में छह परमाणु परीक्षण किए हैं। इन परीक्षणों के दौरान, जिस स्थान पर परीक्षण किए गए, वहां भूकंप मापने वाले उपकरण लगाए गए थे। इन उपकरणों ने यह दर्शाया कि वहां नियमित रूप से छोटे-छोटे भूकंप आते रहे हैं। इस जानकारी से यह सिद्ध होता है कि परमाणु परीक्षण और भूकंप के झटके इतने समान हो सकते हैं कि यह पहचानना बेहद कठिन हो जाता है कि असल में क्या हुआ है। नॉर्थ कोरिया के मामले में यह दिखाता है कि परमाणु परीक्षण के झटके भूकंप के झटकों से मिल सकते हैं, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह टेस्ट असल में कोई सिक्रेट परमाणु परीक्षण था?

वैज्ञानिकों का नया तरीका

इस समस्या को हल करने के लिए वैज्ञानिक जोशुआ कारमाइकल और उनकी टीम ने एक खास तरीका अपनाया, जिससे भूकंप की तरंगों (पी-तरंगों और एस-तरंगों) का अध्ययन किया जा सके। इस अध्ययन में उन्होंने एक ऐसी तकनीक विकसित की जो लगभग 97% मामलों में 1.7 टन के छिपे हुए धमाके को सही तरीके से पहचान सकती है। लेकिन यह तकनीक तब नाकाम हो जाती है, जब भूकंप और परमाणु धमाके के झटके 100 सेकंड के भीतर और 250 किलोमीटर के दायरे में आते हैं। ऐसे मामलों में उनकी तकनीक केवल 37% बार ही सही पहचान कर पाती है।

सुरक्षा पर गंभीर असर

इस रिसर्च का सबसे बड़ा नतीजा यह है कि यदि भूकंप और परमाणु परीक्षण के झटके एक साथ आ जाएं, तो यह पहचानना अत्यंत कठिन हो सकता है। इसका सबसे बड़ा खतरा यह है कि जिन इलाकों में पहले से भूकंप आते हैं, वहां अब परमाणु परीक्षण छुपाकर करना और भी आसान हो जाएगा। इसका मतलब है कि सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह एक नई चुनौती बन सकती है। परमाणु परीक्षणों को छुपाना अब और भी सरल हो सकता है, और इससे दुनिया की सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ सकता है।

दुनियाभर के सुरक्षा विशेषज्ञों के लिए चिंता

यह नया शोध सुरक्षा विशेषज्ञों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन चुका है। परमाणु परीक्षणों को अब छुपाना और भी आसान हो सकता है, क्योंकि भूकंप के साथ उनके झटकों को पहचानने में कई मुश्किलें आ सकती हैं। इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि किसी देश ने किसी संवेदनशील इलाके में परमाणु परीक्षण किया, तो क्या दुनिया के बाकी देश उसे पहचानने में सक्षम होंगे?

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