Adani Group से Mutual Funds ने घटाई हिस्सेदारी, 8 कंपनियों में ₹1160 करोड़ के शेयर बेचे

Edited By jyoti choudhary,Updated: 16 May, 2025 03:45 PM

mutual funds distance themselves from adani group

अप्रैल 2025 में म्यूचुअल फंड्स ने अडानी समूह की कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी में उल्लेखनीय कटौती की है। आंकड़ों के अनुसार, फंड हाउसों ने सामूहिक रूप से अडानी समूह की आठ लिस्टेड कंपनियों में 1,160 करोड़ रुपए से अधिक के शेयर बेच दिए हैं। इस वजह से...

बिजनेस डेस्कः अप्रैल 2025 में म्यूचुअल फंड्स ने अडानी समूह की कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी में उल्लेखनीय कटौती की है। आंकड़ों के अनुसार, फंड हाउसों ने सामूहिक रूप से अडानी समूह की आठ लिस्टेड कंपनियों में 1,160 करोड़ रुपए से अधिक के शेयर बेच दिए हैं। इस वजह से समूह की सात कंपनियों में म्यूचुअल फंड्स की होल्डिंग में गिरावट दर्ज की गई है। अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस और अंबुजा सीमेंट्स सबसे ज्यादा प्रभावित कंपनियों में शामिल हैं, जहां क्रमशः 346 करोड़, 302 करोड़ और 241 करोड़ रुपए की हिस्सेदारी घटाई गई है।

म्यूचुअल फंड्स ने इन अडानी कंपनियों से घटाई हिस्सेदारी

इसके अलावा, म्युचूअल फंड हाउसेज ने एसीसी में लगभग ₹124 करोड़, अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (SEZ) में ₹7.7 करोड़ और अडानी टोटल गैस में ₹3.43 करोड़ मूल्य के शेयर बेचे गए।

हालांकि, पूरे समूह में अडानी पावर एकमात्र ऐसी कंपनी रही, जहां फंड हाउसों ने रुचि दिखाते हुए ₹102 करोड़ का नया निवेश किया और अपनी हिस्सेदारी थोड़ी बढ़ाई।

मार्च 2025 में भी म्यूचुअल फंड्स ने अडानी ग्रुप की अधिकतर कंपनियों में हिस्सेदारी घटाई थी। उस समय अडानी ग्रीन एनर्जी और अडानी एंटरप्राइजेज को छोड़कर बाकी कंपनियों में शुद्ध बिकवाली देखने को मिली थी। इससे पहले फरवरी में म्यूचुअल फंड्स ने समूह की आठ कंपनियों से करीब ₹321 करोड़ की हिस्सेदारी घटाई थी।

बिकवाली की वजह क्या है?

मार्केट विशेषज्ञों का मानना है कि म्यूचुअल फंड्स द्वारा अडानी समूह की कंपनियों में की गई बिकवाली के पीछे कई प्रमुख कारण हैं। इनमें सबसे बड़ा कारण हायर वैल्युएशन यानी ऊंची कीमत पर ट्रेड हो रहे शेयर हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि अडानी ग्रुप की कई कंपनियों के शेयर अपने-अपने सेक्टर की अन्य कंपनियों की तुलना में काफी महंगे हो गए हैं, जिससे फंड मैनेजर्स ने मुनाफावसूली को प्राथमिकता दी।

इसके अलावा, रेगुलेटरी जांच, गवर्नेंस से जुड़ी चिंताएं और सेक्टर-विशिष्ट जोखिम भी ऐसी वजहें हैं, जिन्होंने म्यूचुअल फंड्स को सतर्क रुख अपनाने के लिए मजबूर किया है।
 

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