सहकारी बैंकों पर होगी RBI की नजर, बैंक डिफॉल्ट होने पर भी सुरक्षित रहेगा आपका पैसा

Edited By Updated: 15 Sep, 2020 03:41 PM

rbi will keep an eye on cooperative banks your money will be safe

जिस तरह से RBI सभी सरकारी और प्राइवेट बैंक को रेगुलेट करता है, उसी तरह से RBI अब सहकारी बैंकों पर भी नजर रखेगा। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस समय देश में 1,482 शहरी सहकारी बैंक और 58 मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव बैंक हैं।

बिजनेस डेस्कः जिस तरह से RBI सभी सरकारी और प्राइवेट बैंक को रेगुलेट करता है, उसी तरह से RBI अब सहकारी बैंकों पर भी नजर रखेगा। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस समय देश में 1,482 शहरी सहकारी बैंक और 58 मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव बैंक हैं। मोदी सरकार के इस नए फैसले से अब RBI इन सभी 1,540 सहकारी बैंकों को रेगुलेट करेगी। बता दें कि बैंकों को रेगुलेट करने का यह पूरा काम RBI की सब्सिडियरी DICGC (Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation) द्वारा किया जाता है।

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अब क्या होगा ग्राहकों पर असर
एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये फैसला ग्राहकों के हित में है क्योंकि अगर अब कोई बैंक डिफॉल्ट करता है तो बैंक में जमा 5 लाख रुपए तक की राशि पूरी तरह से सुरक्षित है। क्योंकि वित्त मंत्री ने एक फरवरी 2020 को पेश किए बजट में इसे 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दिया है। अगर कोई बैंक डूब जाता है या दिवालिया हो जाता है तो उसके जमाकर्ताओं को अधिकतम 5 लाख रुपए ही मिलेंगे, चाहे उनके खाते में कितनी भी रकम हो। DICGC के मुताबिक, बीमा का मतलब यह भी है कि जमा राशि कितनी भी हो ग्राहकों को 5 लाख रुपए मिलेंगे।

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DICGC एक्ट, 1961 की धारा 16 (1) के प्रावधानों के तहत, अगर कोई बैंक डूब जाता है या दिवालिया हो जाता है, तो DICGC प्रत्येक जमाकर्ता को भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होता है। उसकी जमा राशि पर 5 लाख रुपए तक का बीमा होता है। आपका एक ही बैंक की कई ब्रांच में खाता है तो सभी खातों में जमा अमाउंट पैसे और ब्‍याज जोड़ा जाएगा और केवल 5 लाख तक जमा को ही सुरक्षित माना जाएगा। यही नहीं, अगर आपके किसी एक बैंक में एक से अधिक अकाउंट और FD हैं तो भी बैंक के डिफॉल्ट होने या डूब जाने के बाद आपको एक लाख रुपए ही मिलने की गारंटी है। यह रकम किस तरह मिलेगी, यह गाइडलाइंस DICGC तय करता है।

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क्या होगा बैंकों पर असर
एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस फैसले से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि जनता में यह संदेश जाएगा कि उनका पैसा सुरक्षित है। रिज़र्व बैंक यह सुनिश्चित करेगा कि को-ऑपरेटिव बैंकों का पैसा किस क्षेत्र के लिए आवंटित किया जाना चाहिए। इसे प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग भी कहा जाता है।

इन बैंकों के रिज़र्व बैंक के अधीन आने पर इन्हें भी अब आरबीआई के नियम मानने होंगे जिससे देश की मौद्रिक नीति को सफल बनाने में आसानी होगी। साथ ही, इन बैंकों को भी अपनी कुछ पूंजी RBI के पास रखनी होगी। ऐसे में इनके डूबने की आशंका कम हो जाएंगी. सरकार के इस फैसले से जनता का विश्वास देश के को-ऑपरेटिव बैंकों में और बढ़ेगा और देश में बैंकों की वित्तीय हालात ठीक होने के आसार बढ़ेंगे।

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