लॉकडाउन के कारण बिगड़ेगा खाने का स्वाद, नमक की हो सकती है कमी

Edited By Updated: 10 May, 2020 04:42 PM

taste of food will deteriorate due to lockdown salt may be lacking

लॉकडाउन के कारण बहुत सारे सेक्टरों में प्रोडक्शन ठप्प पड़ा है। इससे आने वाले समय में अगर लॉकडाउन में और राहत न दी गई तो आम लोगों को बहुत सारी चीजों की कमी का सामना करना पड़ सकता है। इन्हीं चीजों में एक है नमक। नमक की कमी

नई दिल्लीः लॉकडाउन के कारण बहुत सारे सेक्टरों में प्रोडक्शन ठप्प पड़ा है। इससे आने वाले समय में अगर लॉकडाउन में और राहत न दी गई तो आम लोगों को बहुत सारी चीजों की कमी का सामना करना पड़ सकता है। इन्हीं चीजों में एक है नमक। नमक की कमी से आने वाले कुछ महीनों में आपके खाने का स्वाद बिगड़ सकता है। 
 
दरअसल भारतीय समुद्री तटों के किनारे स्थित 'नमक किसान' स्टॉक में कमी का अनुमान जता रहे हैं, क्योंकि कोविड-19 को सीमित करने के लागू लॉकडाउन से उनका प्रॉडक्शन साइकल का एक बड़ा हिस्सा कट गया है। मजदूरों की कमी, यातायात के साधन नहीं होने और एक से दूसरे जिले में आवाजाही पर लगी बंदिशों के चलते नमक बनाने वाली कंपनियों ने कई जगहों पर काम बंद कर दिया है।

अक्टूबर-जून के बीच ज्यादातर उत्पादन
नमक के उत्पादन से जुड़ा काम अक्टूबर से जून के बीच होता है। इसमें से भी अधिकांश उत्पादन मार्च और अप्रैल में होता है। देश का 95 फीसदी नमक उत्पादन गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में होता है, जबकि कुछ उत्पादन महाराष्ट्र, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में होता है। हर साल देश में करीब 200 से 250 लाख टन नमक का उत्पादन होता है।

हर साल 95 लाख टन खपत
इंडियन सॉल्ट मैन्युफैक्चरर्स असोसिएशन (ISMA) के प्रेजिडेंट भारत रावल ने बताया, 'मार्च-अप्रैल हमारा पीक सीजन होता है और इस दौरान हमने करीब 40 दिन गंवा दिए हैं। नमक के उत्पादन क्षेत्र में एक महीने काम न होने की तुलना दूसरी इंडस्ट्रीज के चार अहम महीने बर्बाद होने से हो सकती है।' भारत में खाने-पीने में हर साल करीब 95 लाख टन नमक की खपत होती है। वहीं, करीब 110 से 130 लाख टन नमक की मांग विभिन्न उद्योगों की ओर से आती है, जबकि करीब 58-60 लाख टन नमक का उन देशों को निर्यात किया जाता है, जो इसके लिए पूरी तरह से भारत पर निर्भर हैं।

मांग पूरी करना चुनौतीपूर्ण
उन्होंने बताया, 'अगर हम अगले कुछ दिनों में उत्पादन नहीं बढ़ा पाते हैं तो हमारे पास ऑफ-सीजन (मॉनसून) के दौरान अधिक बफर स्टॉक नहीं बचेगा। इसके अलावा अगर लॉकडाउन हटने के बाद इंडस्ट्रीज की ओर से मांग बढ़ती है, तो उसे पूरा करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है।' सॉल्ट मैन्युफैक्चरर्स को अब सिर्फ देर से मॉनसून सीजन शुरू होने पर ही राहत मिल सकती है। इसके अलावा अगले दो महीनों में तटों तक प्री-मॉनसून बारिश और चक्रवात भी अधिक नहीं आने चाहिए।

जामगनर स्थित एक सॉल्ट मैन्युफैक्चरर और ISMA के सेक्रेटरी पी आर धुर्वी ने बताया, 'मॉनूसन पिछले साल नवंबर तक टिका था, जिसके चलते हमने मौजूदा उत्पादन सीजन की शुरुआत देर से की थी। अब अगर इस साल अनुमान के मुताबिक बारिश पहले आ जाती है, तो सॉल्ट मैन्युफैक्चरर्स के लिए अच्छी मात्रा में बफर स्टॉक जुटा पाना संभव नहीं होगा।'
 

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