Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 03 Jul, 2025 04:42 PM

चीन एक बार फिर दुनिया की नजरों में है, लेकिन इस बार वजह हैरान कर देने वाली है। एक नई रिपोर्ट के मुताबिक चीन, झिंजियांग क्षेत्र में उइगर मुसलमानों के शरीर से जबरन अंग निकालने के लिए मेडिकल केंद्रों की संख्या तीन गुना करने की योजना पर काम कर रहा है।...
नेशनल डेस्क: चीन एक बार फिर दुनिया की नजरों में है, लेकिन इस बार वजह हैरान कर देने वाली है। एक नई रिपोर्ट के मुताबिक चीन, झिंजियांग क्षेत्र में उइगर मुसलमानों के शरीर से जबरन अंग निकालने के लिए मेडिकल केंद्रों की संख्या तीन गुना करने की योजना पर काम कर रहा है। साल 2030 तक झिंजियांग में ऐसे 6 नए केंद्र बनाए जा रहे हैं, जिससे यहां कुल 9 मेडिकल फैसिलिटीज हो जाएंगी – जो किसी भी अन्य चीनी प्रांत से कहीं ज्यादा हैं। यह कदम चीन की मानवाधिकार नीति और अल्पसंख्यकों के प्रति उसके रवैये को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह खबर ब्रिटेन की प्रतिष्ठित मीडिया संस्था द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के जरिए सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार चीन, हिरासत में लिए गए उइगर मुसलमानों को इन केंद्रों में ले जाकर उनके अंग निकालता है, वह भी जबरन। यह पूरी प्रक्रिया उनकी इच्छा के विरुद्ध होती है और कई बार ऐसा पाया गया है कि अंग निकालते समय कैदियों को धीरे-धीरे मौत के घाट उतार दिया जाता है।
केंद्रों की संख्या में 3 गुना वृद्धि क्यों?
विशेषज्ञों के मुताबिक, चीन की नेशनल मेडिकल अथॉरिटी की झिंजियांग विंग इस पूरी योजना की अगुवाई कर रही है। उनका लक्ष्य है कि 2030 तक 6 और नए अंग प्रत्यारोपण केंद्र बनाए जाएं, जिससे कुल संख्या 9 हो जाएगी। यह केवल एक चिकित्सा विस्तार नहीं, बल्कि उइगर मुसलमानों के शोषण का विस्तार माना जा रहा है। जहां एक ओर चीन स्वैच्छिक अंगदान योजना की बात करता है, वहीं रिपोर्टों से पता चलता है कि अधिकांश अंग स्वेच्छा से नहीं बल्कि जबरन लिए गए हैं।
चीन पर पहले भी लग चुके हैं गंभीर आरोप
यह पहली बार नहीं है जब चीन पर इस तरह के आरोप लगे हैं। 2019 में लंदन में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने पाया था कि चीन में हर साल 1 लाख से ज्यादा अंगों को निकाला जाता है। जबकि चीन ने आधिकारिक रूप से कहीं कम संख्या दर्ज की है। जांच में यह भी सामने आया था कि जिन लोगों के अंग निकाले जाते हैं, वे मुख्यतः धार्मिक व जातीय अल्पसंख्यक होते हैं, खासकर उइगर मुसलमान। और इन अंगों को अमीर मरीजों को ऊंची कीमत पर बेचा जाता है, जो दसियों हजार पाउंड तक देने को तैयार होते हैं।
उइगरों के लिए नहीं बचा कोई विकल्प
झिंजियांग में रहने वाले उइगर मुसलमान पहले ही धार्मिक आज़ादी, सामाजिक भेदभाव और नजरबंदी शिविरों का शिकार हो रहे हैं। और अब उनके सामने शारीरिक अस्तित्व का संकट भी खड़ा हो गया है। मानवाधिकार संगठनों और विशेषज्ञों ने चीन के इस कदम को नरसंहार के बराबर बताया है। वे लगातार मांग कर रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस पर ध्यान दे और दबाव बनाए ताकि यह अमानवीय कृत्य रोका जा सके।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की जरूरत
हालांकि चीन ने इन सभी आरोपों को नकारा है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं और मानवाधिकार संगठन अब इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक मंचों पर उठाने की तैयारी कर रहे हैं। यह मामला केवल चीन का आंतरिक मामला नहीं, बल्कि पूरी मानवता से जुड़ा मुद्दा है। अगर समय रहते इस पर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह काला कारोबार और गहराता जाएगा।