झंडा चढ़ाने के साथ आरंभ हुआ बाबा बालक नाथ जी का चैत्र मेला

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Mar, 2020 08:53 AM

baba balak nath mela

देव भूमि हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध सिद्धपीठ सिद्ध श्री बाबा बालक नाथ मंदिर में चैत्र मेला आरंभ हो गया। इस मौके पर दियोट सिद्ध गुफा में महंत राजिंद्र गिरि जी, मंदिर पुजारियों, प्रशासनिक अधिकारियों और

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जालन्धर/लोहियां खास (मनजीत): देव भूमि हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध सिद्धपीठ सिद्ध श्री बाबा बालक नाथ मंदिर में चैत्र मेला आरंभ हो गया। इस मौके पर दियोट सिद्ध गुफा में महंत राजिंद्र गिरि जी, मंदिर पुजारियों, प्रशासनिक अधिकारियों और भक्तजनों द्वारा पूजा-अर्चना और हवन यज्ञ करने के बाद झंडा चढ़ाया गया। इसी तरह शाहतलाई में भी पूजा-अर्चना और झंडे की रस्म अदा की गई। चैत्र मेला 13 अप्रैल तक चलेगा। इस दौरान बाबा जी का मन्दिर 24 घंटे खुला रहेगा व लंगर भी चोबीस घंटे चलते रहेंगे। 

इस मौके पर ओ.पी. लखनपाल मंदिर अधिकारी, पंडित मदन लाल, प्रदीप कुमार, नरेश कुमार, सुनील कुमार, अशोक कुमार, चंद्र प्रकाश, रकेश रत्न, चरनजीत लोहियां, कश्मीरी लाल, परमजीत सिंह, सरूप सिंह, सूबा, हनी और अन्य सैंकड़ों की तादाद में भक्तजन मौजूद थे।  

ऐस किए जाते हैं दर्शन
साल भर  विशेष कर चैत्र  में बाबा जी दर्शन के लिए आने वाले भक्त पुरातन समय से चली आ रही परंपरा के अनुसार सब से पहले शाहतलाई में माता रतनो के मंदिर (जहां बाबा जी ने चिमटा मार कर बारह साल की लस्सी और रोटियां निकाली थीं) में माथा टेकते हैं फिर इसी नगर के गरूणा झाड़ी मंदिर (जहां बाबा जी ने गुरु गोरखनाथ जी को कला दिखाते हुए मोर की सवारी कर उडारी मारी थी) में माथा टेक कर गुफा दर्शन के लिए दियोटसिद्ध गुफा की ओर जाते हैं। रास्ते में पड़ती चरण गंगा के किनारे धूना लगा कर बाबा जी की चौकी लगते हुए आगे बढ़ते हैं। गुफा दर्शन के बाद भक्त राजा भरथरी मंदिर, चरण पादुका और महंत निवास में माथा टेक कर यात्रा का समापन करते हैं। माना जाता है कि राजा भरथरी के मन्दिर में माथा टेकने से यात्रा ही सफल होती है। चैत्र मास में बाबा जी के दर्शन के लिए देश-विदेश और विशेष कर पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, यू. पी. और अन्य राज्यों में भक्तजन संग लेकर बाबा जी के दर्शन कर झोलियां भरते हैं। 

बाबा जी की अमर कहानी
भक्त बाबा जी का नाम  पौणाहारी, दूधाधारी, कलाधारी, धूणे वाला, झोलियां वाला, रतनों दा पाली, जटाधारी, चिमटे वाला, गुफा दा वासी जैसे अनेक नामों से जपते हैं। पुरातन कथाओं के आधार पर बाबा बालक नाथ जी ने चारों युगों में शिव भोले नाथ की भक्ति की और माता धर्मो की ओर से बताए रास्ते पर चलते हुए  माता पार्वती के आशीर्वाद से बाबा जी ने शिव भोले नाथ जी के दर्शन किए। भोले नाथ जी ने बाबा जी को अमर होने के वरदान देते हुए शिव दर्शन के लिए रास्ता बताने वाली माता धर्मो की कलियुग में बारह साल सेवा करने के लिए कहा। इसके चलते कलियुग में बाबा बालक नाथ जी का जन्म गुजरात के जिला जूनागढ़ में माता लक्ष्मी और पिता विष्णु के घर हुआ। बाल अवस्था में ही गुरु दतात्रेय को अपना गुरु बनाकर पिछले जन्म का कर्ज चुकाने के लिए बाबा जी माता रतनो के घर हिमाचल प्रदेश के जिला हमीरपुर के नगर शाहतलाई में आ गए।  शाहतलाई में बाबा जी ने माता रतनो की सेवा करते हुए बारह साल तक गऊएं चराई और बारह साल पूरे होने पर माता रतनो और गुरु गोरखनाथ जी को कला दिखाते हुए मोर की सवारी कर धौलगिरि पर्वत पर जा बिराजे, जिसको आज दियोट सिद्ध के नाम से जाना जाता है। जहां बाबा जी ने राजा भरथरी के साथ शिव भक्ति की। इसी तपस्थल पर करोड़ों भगत अपनी झोलियां भरते हैं। 


 

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