Chanakya Niti: चाणक्य नीति के अनुसार ये जगहें कर सकती हैं आपके सम्मान का नाश

Edited By Updated: 11 Oct, 2025 02:21 PM

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Chanakya Niti: चाणक्य नीति, महान राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और दार्शनिक आचार्य चाणक्य द्वारा प्रदान किए गए सिद्धांतों का एक अद्भुत संग्रह है। उनकी नीतियाँ न केवल शासन कला पर बल्कि एक व्यक्ति के जीवन में सफलता, सम्मान और आत्म-सुरक्षा के लिए भी...

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Chanakya Niti: चाणक्य नीति, महान राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और दार्शनिक आचार्य चाणक्य द्वारा प्रदान किए गए सिद्धांतों का एक अद्भुत संग्रह है। उनकी नीतियाँ न केवल शासन कला पर बल्कि एक व्यक्ति के जीवन में सफलता, सम्मान और आत्म-सुरक्षा के लिए भी मार्गदर्शक हैं। आचार्य चाणक्य ने अपने नीतिशास्त्र में कुछ ऐसी जगहों और परिस्थितियों का वर्णन किया है, जहाँ जाने या रहने से व्यक्ति के मान-सम्मान और धन-दौलत का विनाश हो सकता है। उनके अनुसार, बुद्धिमानी इसी में है कि व्यक्ति इन स्थानों से दूरी बनाए रखे।

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जहां आजीविका का साधन न हो
चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को उस स्थान पर कभी नहीं रहना चाहिए जहाँ उसके पास अपनी आजीविका चलाने का कोई साधन न हो। जहां जीविका का साधन न हो, वहां नहीं रहना चाहिए।  जब व्यक्ति के पास आय का कोई स्थिर स्रोत नहीं होता, तो वह धीरे-धीरे दूसरों पर निर्भर होने लगता है। आर्थिक निर्भरता से व्यक्ति की स्वतंत्रता और आत्म-सम्मान नष्ट हो जाता है। समाज में उसे हीन दृष्टि से देखा जाने लगता है। गरीबी अक्सर सम्मान को कम करती है।

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जहां लोगों में भय, लज्जा और दान की भावना न हो 
आचार्य चाणक्य ने एक आदर्श समाज के लिए तीन नैतिक गुणों को अनिवार्य बताया है- भय, लज्जा, और दान। जिस स्थान पर इनका अभाव हो, वह त्यागने योग्य है। इसका अर्थ है कानून, शासन, और बड़ों के प्रति आदर का भय। जहां कोई अनुशासन या शासन का डर नहीं होता, वहां अपराध और अराजकता बढ़ जाती है, और सज्जन व्यक्ति का जीवन संकट में पड़ जाता है।

जहां कोई ज्ञानी या विद्वान न हो 
मनुष्य एक सामाजिक और सीखने वाला प्राणी है। चाणक्य मानते हैं कि उस जगह पर रहना व्यर्थ है जहाँ शिक्षा और ज्ञान की परंपरा न हो। जहां वेद, ज्ञान, या कोई धार्मिक संस्था नहीं है, वहां नहीं रहना चाहिए। जिस स्थान पर विद्वान, परोपकारी और समझदार लोग नहीं होते, वहां ज्ञान की कोई कद्र नहीं होती। ऐसे स्थान पर आपका ज्ञान और बुद्धिमत्ता व्यर्थ हो जाती है। ज्ञान की कद्र न होने से ज्ञानी व्यक्ति का सम्मान नहीं होता, और उसका बौद्धिक विकास भी रुक जाता है।

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