Dharmik Katha: ‘भगवान’ धर्मस्थलों में ही नहीं, हर जगह मौजूद हैं

Edited By Jyoti,Updated: 17 Nov, 2022 11:51 AM

dharmik katha in hindi

सन् 1909 में जन्मे संत तुकडोजी महाराज का मूल नाम माणिक बांडोजी इंगले था। वह महाराष्ट्र के अमरावती जिले के यावली ग्राम में एक निर्धन परिवार से संबंध रखते थे और आडकोजी महाराज के शिष्य थे। तुकडोजी महाराज एक महान व स्वयंसिद्ध संत थे। उनका प्रारंभिक जीवन

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सन् 1909 में जन्मे संत तुकडोजी महाराज का मूल नाम माणिक बांडोजी इंगले था। वह महाराष्ट्र के अमरावती जिले के यावली ग्राम में एक निर्धन परिवार से संबंध रखते थे और आडकोजी महाराज के शिष्य थे। तुकडोजी महाराज एक महान व स्वयंसिद्ध संत थे। उनका प्रारंभिक जीवन आध्यात्मिक और योगाभ्यास जैसे साधना मार्गों से पूर्ण था।
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उन्होंने अपने प्रारंभिक जीवन का अधिकांश समय रामटेक, सालबर्डी, रामदिघी और गोंदोडा के बीहड़ जंगलों में बिताया। यद्यपि उन्होंने औपचारिक रूप से बहुत ज्यादा शिक्षा नहीं ग्रहण की, किंतु उनकी आध्यात्मिक साधना बहुत ही उच्च स्तर की थी। उनके गीतों में भक्ति और नैतिक मूल्यों की बहुत ही ज्यादा व्यापकता है।

उनकी खंजड़ी अद्वितीय थी और उनके द्वारा उसे बजाया जाना अपने आप में अनूठा था। वह अविवाहित थे। उनका पूरा जीवन जाति, वर्ग, पंथ या धर्म से परे समाज की सेवा के लिए समॢपत था।  वह पूर्ण रूप से आध्यात्मिक जीवन में लीन थे। उनके द्वारा सूक्षमता से मनुष्य के स्वभाव का अवलोकन किया जाता था, ताकि उन्हें उत्थान की राह पर प्रवृत्त किया जा सके।
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उनके पास स्वानुभूति दृष्टि थी और उन्होंने अपने पूरे जीवन में हृदय की पवित्रता और किसी के लिए भी मन में द्वेषभाव न रखने का पाठ पढ़ाया। अपने प्रारंभिक जीवन में वह प्राय: भक्तिपूर्ण गीत गाते थे, हालांकि बीतते समय के साथ-साथ उन्होंने समाज को बतलाया कि भगवान केवल धर्म स्थलों में नहीं रहते, अपितु वे तो हर जगह व्याप्त हैं। उन्होंने अपने अनुयायियों को आत्मबोध के पथ पर चलने की सलाह दी।

तुकडोजी ने सदैव सामूहिक प्रार्थना पर बल दिया, जिसमें जाति-धर्म से परे सभी लोग भाग ले सकें। सम्पूर्ण विश्व में उनकी प्रार्थना पद्धति वस्तुत: अद्वितीय और अतुलनीय थी। उनका दावा था कि उनकी सामूहिक प्रार्थना पद्धति समाज को आपस में भाईचारे और प्रेम की शृंखला में बांध सकने में सक्षम है। 1935 में तुकडोजी ने सालबर्डी की पहाडिय़ों पर महारुद्र यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें तीन लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया। इस यज्ञ के बाद उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई और वह पूरे प्रदेश में सम्माननीय हो गए।
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आष्टि-चिमुर स्वतंत्रता संग्राम राष्ट्रसंत तुकडोजी के ही आह्वान का परिणाम था। इसके चलते  अंग्रेजों द्वारा उन्हें चंद्रपुर में गिरफ्तार कर नारापुर और फिर रायपुर की जेल में 100 दिनों के लिए डाल दिया गया। जेल से छूटने के बाद तुकडोजी ने सामाजिक सुधार आंदोलन चलाकर अंधविश्वास, अस्पृश्यता, मिथ्या-धर्म, गोवध एवं अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने मोझरी नामक गांव में गुरुकुंज आश्रम की स्थापना की।

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