Edited By Prachi Sharma,Updated: 26 Nov, 2023 08:15 AM
एक राजा अपनी न्यायप्रियता के लिए विख्यात था। एक बार उसके पास एक जटिल मामला न्याय हेतु आया। मामला किसी भिखारी का था। घटना कुछ
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Inspirational Context: एक राजा अपनी न्यायप्रियता के लिए विख्यात था। एक बार उसके पास एक जटिल मामला न्याय हेतु आया। मामला किसी भिखारी का था। घटना कुछ इस प्रकार थी कि भिखारी को मार्ग में एक बटुआ पड़ा मिला, जिसमें 100 मोहरें थीं।
वह उन्हें सरकारी विभाग में जमा कराने चल दिया परंतु उसे रास्ते में एक सौदागर मिला, जो उससे बोला, “बटुआ उसका है और वह उसकी ईमानदारी के लिए उसे आधी मोहरें देगा।
भिखारी ने बटुआ उस सौदागर को सौंप दिया, पर पैसे मिलते ही सौदागर के मन में बदनीयती आ गई।
उसी भाव से वह भिखारी से बोला, “अरे इसमें तो 200 मोहरें थीं, तुमने आधी रख ली हैं।
भिखारी ईमानदार था, वह झूठा इल्जाम स्वीकार न कर सका। इसलिए वह न्याय मांगने राजदरबार पहुंचा।
राजा बात सुनते ही समझ गया कि सौदागर बेईमान है और वह बोला, “सौदागर ! भिखारी यह बटुआ सरकारी कोष में जमा कर रहा था, इससे यह तय है कि वह पैसे नहीं रखना चाहता था। तुम कहते हो कि तुम्हारे बटुए में 200 मोहरें थीं और इसमें से 100 निकलीं तो इसका मतलब यह बटुआ तुम्हारा नहीं है और भिखारी को किसी और का बटुआ मिला है।
भिखारी को मिले बटुए का आधा हिस्सा राजकोष में रख लिया जाए और आधा उसे पुरस्कार स्वरूप दे दिया जाए। जहां तक तुम्हारे बटुए का प्रश्न है तो वह जब मिलेगा, तुम्हें वापस कर दिया जाएगा।
लालची सौदागर हाथ मलता रह गया क्योंकि बटुआ उसी का था, पर ज्यादा पाने के लालच में वह अपनी ही दौलत गंवा बैठा था।