जब टूटा ‘कालिदास’ का घमंड, शिक्षा से ज्ञान आता है अहंकार से नहीं

Edited By Jyoti,Updated: 21 Nov, 2022 04:24 PM

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महाकवि कालिदास के कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था। शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था। अपार प्रतिष्ठा और सम्मान पाकर कालिदास को अपनी विद्वता का घमंड हो गया। एक बार पड़ोसी राज्य में शास्त्रार्थ का निमंत्रण पाकर कालिदास सम्राट...

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महाकवि कालिदास के कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था। शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था। अपार प्रतिष्ठा और सम्मान पाकर कालिदास को अपनी विद्वता का घमंड हो गया। एक बार पड़ोसी राज्य में शास्त्रार्थ का निमंत्रण पाकर कालिदास सम्राट विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर रवाना हुए।
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गर्मी का मौसम था। धूप काफी तेज थी और कालिदास को प्यास लग गई। थोड़ी तलाश करने पर उन्हें एक  टूटी झोंपड़ी दिखाई दी। झोंपड़ी के सामने एक कुआं भी था। उसी समय झोंपड़ी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर निकली। बच्ची ने कुएं से पानी भरा और वहां से जाने लगी।कालिदास उसके पास जाकर बोले, ‘‘बालिके, बहुत प्यास लगी है, जरा पानी पिला दो।’’

बच्ची ने पूछा, ‘‘मैं आपको जानती नहीं, पहले परिचय दीजिए।’’

कालिदास को लगा मुझे कौन नहीं जानता भला, परिचय देने की क्या आवश्यकता? फिर भी प्यास से बेहाल थे, तो बोले, ‘‘बालिके तुम अभी छोटी हो इसलिए मुझे नहीं जानती। घर में कोई बड़ा हो तो उसको भेजो। वह मुझे देखते ही पहचान लेगा। मेरा बहुत दूर-दूर तक नाम और सम्मान है। मैं बहुत विद्वान व्यक्ति हूं।’’

कालिदास के घमंड भरे वचनों से अप्रभावित बालिका बोली, ‘‘संसार में सिर्फ दो ही बलवान हैं और उन दोनों को मैं जानती हूं। अपनी प्यास बुझानी है तो उन दोनों के नाम बताएं।’’

थोड़ा सोचकर कालिदास बोले, ‘‘मुझे नहीं पता, तुम ही बता दो, मगर मुझे पानी पिला दो। बालिका बोली, ‘‘दो बलवान हैं ‘अन्न’ और ‘जल’। भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़े बलवान को भी झुका दें। देखिए प्यास ने आपकी क्या हालत बना दी है।’’
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कालिदास चकित रह गए। बड़े-बड़े विद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास एक बच्ची के सामने निरुत्तर खड़े थे। बालिका ने पुन: पूछा, ‘‘सत्य बताएं कौन हैं आप?’’

कालिदास थोड़े नरम होकर बोले, ‘‘मैं बटोही हूं।’’ 

मुस्कुराते हुए बच्ची बोली, ‘‘आप अभी भी झूठ बोल रहे हैं। संसार में दो ही बटोही हैं। बताइए वे दोनों कौन हैं?’’

तेज प्यास ने पहले ही कालिदास की बुद्धि क्षीण कर दी थी, पर लाचार होकर उन्होंने फिर से अनभिज्ञता व्यक्त कर दी। बच्ची बोली, ‘‘एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना थके जाने वाला बटोही कहलाता है। बटोही दो हैंं, चंद्रमा और सूर्य। आप तो थक गए हैं, भूख-प्यास से बेदम हैं। आप कैसे बटोही हो सकते हैं।’’

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इतना कह कर बालिका ने पानी से भरा मटका उठाया और झोंपड़ी के भीतर चली गई। अब तो कालिदास और भी दुखी हो गए। इतने अपमानित वह जीवन में कभी नहीं हुए। प्यास से शरीर की शक्ति घट रही थी, दिमाग चकरा रहा था। उन्होंने आशा से झोंपड़ी की तरफ देखा, तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली। उसके हाथ में खाली मटका था, वह कुएं से पानी भरने लगी।

अब तक काफी विनम्र हो चुके कालिदास बोले, ‘‘माते, पानी पिला दीजिए, बड़ा पुण्य होगा।’’

स्त्री बोली, ‘‘बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं, अपना परिचय दो तो मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।’’

कालिदास ने कहा, ‘‘मैं मेहमान हूं, कृपया पानी पिला दें।’’

स्त्री बोली, ‘‘तुम मेहमान कैसे हो सकते हो? संसार में दो ही मेहमान हैं धन और यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम?’’
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अब तक के सारे तर्कों से पराजित हताश कालिदास बोले, ‘‘मैं सहनशील हूं। अब पानी पिला दें।’’

स्त्री ने कहा, ‘‘नहीं-नहीं सहनशील तो दो ही हैं, धरती और पेड़।’’

कालिदास लगभग मूर्छा की स्थिति में आ गए। तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले, ‘‘मैं हठी हूं।’’

स्त्री बोली, ‘‘फिर असत्य। हठी तो दो ही हैं- नख और केश। कितना भी काटो, बार-बार निकल आते हैं।’’

पूरी तरह पराजित हो चुके कालिदास ने कहा, ‘‘मैं मूर्ख हूं।’’

नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो, मूर्ख दो ही हैं। पहले राजा, जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है और दूसरा दरबारी, जो राजा को प्रसन्न करने के लिए गलत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।’’

कालिदास वृद्धा के पैरों में गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे। वृद्धा ने कहा, ‘‘उठो वत्स।’’ आवाज सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थीं। कालिदास पुन: नतमस्तक हो गए। माता ने कहा, ‘‘शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार। तुमने मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे। इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए स्वांग करना पड़ा।’’
इस प्रकार कालिदास को अपनी नश्वर विद्वता का भान हो गया।

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