बुढ़िया की एक सीख से शिवाजी ने लगाया अपनी विफलता का अनुमान

Edited By Updated: 29 Jan, 2018 03:54 PM

motivatioal story of chhatrapati shivaji

शिवाजी के बारे में किताबों से बहुत कुछ पढ़ने को मिलता है, जिस से हमें उनके बारे में और इतिहास के बारे में पता चलता है। शिवा जी जैसे और भी बहुत से लोग हैं जो महान कार्य करके महानपुरुष कहलाते हैं।

शिवाजी के बारे में किताबों से बहुत कुछ पढ़ने को मिलता है, जिस से हमें उनके बारे में और इतिहास के बारे में पता चलता है। शिवा जी जैसे और भी बहुत से लोग हैं जो महान कार्य करके महानपुरुष कहलाते हैं। हमारे लिए इन महानपुरुष की परिभाषा अलग ही बन जाती है। लेकिन हम यह नहीं समझ पाते कि असल में ये महानपुरुष हम में से एक होते हैं। इन लोंगो की विचार वाणी, भाव व बुद्धि में विलक्षण गुण होते हैं। इन लोगों को इनके कर्मों के कारण पूजनीय माना जाता है। ये जैसा सोचते है, वैसा ही करते है। जिसके चलतेइ इनके स्वयं के जीवन की घटनाएं अन्य लोंगो के लिए प्ररेणादायक बन जाती हैं। तो आईए जानें शिवा जी के जीवन से जुड़ी एक बहुत महत्वपूर्ण घटना


शिवाजी को बुढ़िया की सीख
बात उन दिनों की है, छत्रपति शिवाजी मुगलों के विरुद्ध छापा मार युद्ध लड़ रहे थे। एक दिन रात को वे थके-हारे एक वनवासी बुढ़िया की झोंपड़ी में जा पहुंचे। उन्होंने कुछ खाने के लिए मांगा। बुढ़िया के घर में केवल चावल थे, सो उसने प्रेम पूर्वक भात पकाया और उसे ही परोस दिया। शिवाजी बहुत भूखे थे, सो झट से भात खाने की आतुरता में उंगलियां जला बैठे। हाथ की जलन शांत करने के लिए फूंकने लगे। यह देख बुढ़िया ने उनके चेहरे की ओर गौर से देखा और बोली-सिपाही तेरी सूरत शिवाजी जैसी लगती है और साथ ही यह भी लगता है कि तू उसी की तरह मूर्ख है।


शिवाजी स्तब्ध रह गए। उन्होंने बुढ़िया से पूछा, "भला तुम शिवाजी को मूर्ख कैसे कह सकती हो उनकी द्वारा की गई मूर्खता तो बताओ और साथ ही मेरी भी।" 

बुढ़िया ने उत्तर दिया, "तुमने किनारे-किनारे से थोड़ा-थोड़ा ठंडा भात खाने की अपेक्षा में बीच के सारे भात में हाथ डाला और उंगलियां जला लीं। यही मूर्खता शिवाजी करता है, वह दूर किनारों पर बसे छोटे-छोटे किलों को आसानी से जीतते हुए शक्ति बढ़ाने की अपेक्षा में बड़े किलों पर धावा बोलता है और हार जाता है।"

बुढ़िया की इस बात को सून शिवाजी को अपनी रणनीति की विफलता का कारण पता चल गया। उन्होंने बुढ़िया की इस सीख को पल्ले बांध ली और पहले छोटे लक्ष्य बनाए और उन्हें पूरा करने की रीति-नीति अपनाई। इस प्रकार उनकी शक्ति बढ़ी और अंततः वे बड़ी विजय पाने में समर्थ हुए। शुभारंभ हमेशा छोटे-छोटे संकल्पों से होता है, तभी बड़े संकल्पों को पूरा करने का आत्मविश्वास जागृत होता है।

सार- इस कहानी से यह ज्ञान मिलता है कि पहले छोटे लक्ष्य बनाएं और फिर बड़े लक्ष्य के बारे में सोचें। ऐसा करने से सफलता जरूर मिलेगी, क्योंकि छोटा लक्ष्य प्राप्त करने पर बड़े लक्ष्य को पाने की ऊर्जा दोगुनी हो जाती है।

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