Edited By Jyoti,Updated: 14 Apr, 2022 10:38 AM
एक पुजारी कई दिनों से यज्ञ कर रहा था, लेकिन उन्हें अग्रिदेव दर्शन नहीं दे रहे थे। तभी उस गांव में राजा विक्रमादित्य पहुंचे। पुजारी का उतरा चेहरा देख कर उन्होंने उसका हाल-चाल पूछा। राजा
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एक पुजारी कई दिनों से यज्ञ कर रहा था, लेकिन उन्हें अग्रिदेव दर्शन नहीं दे रहे थे। तभी उस गांव में राजा विक्रमादित्य पहुंचे। पुजारी का उतरा चेहरा देख कर उन्होंने उसका हाल-चाल पूछा। राजा उसकी परेशानी समझ चुके थे। फिर राजा ने समझाया, ‘‘यज्ञ ऐसे नहीं करते हैं।’’
राजा ने अपना मुकुट उतारकर जमीन पर रखा और संकल्प लिया, ‘‘यदि आज शाम तक अग्रिदेव प्रकट नहीं हुए तो आज से मैं मुकुट धारण नहीं करूंगा। चाहे प्रजा में कितना भी अनाचार फैल जाए।’’
राजा की यह प्रतिज्ञा सुन प्रजावत्सल अग्रिदेव चिंतित हो गए। वे शाम से पहले ही प्रकट हो गए। पुजारी ने उन्हें प्रणाम किया। और उनसे कहा, ‘‘मैं इतने दिनों से प्रयत्न कर रहा था, तब आप क्यों नहीं आए? जबकि राजा के मुकुट उतारते ही आप स्वयं प्रकट हो गए।’’
अग्रिदेव बोले, ‘‘वास्तव में राजा ने जो किया वह दृढ़ता और संकल्प से किया। दृढ़ता और संकल्प से किए गए कार्य में सदा जल्दी सफलता मिलती है। इसीलिए मैं तत्काल प्रकट हो गया।’’