Motivational Concept: महाराणा प्रताप के प्रति सेवकों की सच्ची निष्ठा

Edited By Updated: 29 Aug, 2022 11:09 AM

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महाराणा प्रताप मुगलों से टक्कर लेते हुए अपने स्वामी भक्त भाटों और सेवकों के साथ जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों में भटक रहे थे। एक दिन उनका एक भाट इस निर्वासित जीवन से घबराकर महाराणा का साथ छोड़कर अकबर के दरबार में पनाह मांगने जा पहुंचा।

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महाराणा प्रताप मुगलों से टक्कर लेते हुए अपने स्वामी भक्त भाटों और सेवकों के साथ जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों में भटक रहे थे। एक दिन उनका एक भाट इस निर्वासित जीवन से घबराकर महाराणा का साथ छोड़कर अकबर के दरबार में पनाह मांगने जा पहुंचा।

अकबर के सम्मुख उसने अपने सिर से पगड़ी उतारकर बगल में दबाई और फिर सिर झुकाकर बादशाह का अभिवादन किया। भाट की इस हरकत पर अकबर रोष से बोले, ‘‘अरे नादान, तू इतना भी नहीं जानता कि बादशाहों के सम्मुख उनकी शान में पगड़ी समेत झुका जाता है। फिर तूने ऐसा दुस्साहस कैसे किया?’’

बादशाह के खौफ से डरे बिना भाट ने नम्रता से जवाब दिया, ‘‘जहांपनाह, आपके दरबार के नियम जानते हुए भी ऐसा करना मेरी विवशता है। यह पगड़ी हमारे महाराणा प्रताप द्वारा हमें प्रदान की गई है।’’
 

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जब उन महाराणा का शीश आपके सम्मुख न झुक सका तो उनके द्वारा दी गई पगड़ी को मैं आपके आगे कैसे झुकने देता। 

मैंने तो विश्वासघात करते हुए आपके सामने घुटने टेक दिए हैं, मगर उनकी पगड़ी की शान ही अलग है। अकबर भी उनकी पगड़ी की शान की बानगी सुनकर प्रशंसा किए बिना न रह सका।

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