Edited By Jyoti,Updated: 19 Sep, 2022 11:24 AM
बालक राम अपनी मां के साथ मामा के पास रहता था। पेशवा विद्वानों के साथ ही विद्यार्थियों को भी दक्षिणा देते थे ताकि उनके राज्य में शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो। एक दिन राम के मामा उसे पेशवा के दरबार में लेकर गए। वहां विद्वानों को दक्षिणा दी जा रही थी।...
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बालक राम अपनी मां के साथ मामा के पास रहता था। पेशवा विद्वानों के साथ ही विद्यार्थियों को भी दक्षिणा देते थे ताकि उनके राज्य में शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो। एक दिन राम के मामा उसे पेशवा के दरबार में लेकर गए। वहां विद्वानों को दक्षिणा दी जा रही थी। राम अपने मामा से बोला, ‘‘मामा, हम तो पढ़े-लिखे नहीं हैं। हमें झूठ बोलकर दक्षिणा नहीं लेनी चाहिए।’’
मामा बोले, ‘‘सब इसी तरह झूठ बोल कर दक्षिणा लेते हैं।’’
मामा ने विद्वानों को दी जा रही दक्षिणा ले ली। दक्षिणा देने वाला राम की ओर देख कर बोला, ‘‘क्यों बेटा पढ़ते हो न।’’
प्रतिनिधि ने दक्षिणा उसके हाथ पर रख दी। राम प्रतिनिधि से बोला, ‘‘श्रीमान, मैं नहीं पढ़ता। लो अपनी दक्षिणा।’’
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मामा गुस्से में बालक को पीटता हुआ घर ले आया। मां को सारी बात पता चली तो उसने राम का साथ दिया। इस पर राम बोला, ‘‘मां, मैं अब पढूंगा। मैं काशी जी जाऊंगा और शास्त्री बनकर लौटूंगा।
तू कहती थी न कि मेरे पिता जी भी काशी से शास्त्री बनकर लौटे थे। श्रीमान पेशवा साहब ने उन्हें सोने की बालियां पहनाई थीं। मुझे भी पहनाएंगे।’’
और सचमुच यह बालक एक दिन काशी से शास्त्री बनकर लौटा। मराठों के इतिहास में यह बालक ‘राम शास्त्री’ के नाम से प्रसिद्ध है।