Edited By Jyoti,Updated: 22 Oct, 2022 11:54 AM

नदी के किनारे कुछ बच्चे रेत से घर बना रहे थे। खेल-खेल में किसी बच्चे का पांव रेत से बने किसी घर पर लग जाता तो वह नाराज हो जाता। इस बात को लेकर बच्चे आपस में झगड़ पड़ते। यही नहीं जिस बच्चे का घर टूटता, बदले में वह दूसरे बच्चे का घर तोड़ देता।
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नदी के किनारे कुछ बच्चे रेत से घर बना रहे थे। खेल-खेल में किसी बच्चे का पांव रेत से बने किसी घर पर लग जाता तो वह नाराज हो जाता। इस बात को लेकर बच्चे आपस में झगड़ पड़ते। यही नहीं जिस बच्चे का घर टूटता, बदले में वह दूसरे बच्चे का घर तोड़ देता। बदले की भावना का यह क्रम इसी तरह चलता रहता। कभी कोई किसी का घर तोड़ता तो कभी कोई किसी का। इस तरह बच्चे रेत का घर बनाते और तोड़ते रहते, साथ ही झगड़ते भी रहते।
महात्मा गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ खड़े चुपचाप यह सब देख रहे थे। बच्चे अपने खेल और खेल के बीच झगड़े में मगन थे। उनमें से किसी भी बच्चे का ध्यान महात्मा बुद्ध और उनके शिष्यों की तरफ नहीं गया। थोड़ी देर बाद एक स्त्री आकर बच्चों से कहती है, ‘‘शाम हो गई है। सूरज छिपने वाला है। अब सभी बच्चे अपने-अपने घर जाओ। तुम सबकी माताएं घर पर तुम्हारा इंतजार कर रही हैं।’’
बच्चों ने चौंकते हुए देखा कि दिन बीत गया है।
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यह सब सोच कर वे अपने-अपने घरों की ओर जाने लगे। लेकिन यह क्या वे घर जाने से पहले अपने बनाए घरों को खुद ही तोड़कर जा रहे हैं। बिना इस बात की परवाह किए कि थोड़ी देर पहले वे घर तोडऩे पर आपस में झगड़ा कर रहे थे। उस समय उन बच्चों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि कौन किसका घर तोड़ रहा है। सब बच्चे भागते हुए अपने घरों की ओर चल दिए।
भगवान बुद्ध ने यह देख कर अपने शिष्यों से कहा, ‘‘तुम मानव जीवन की कल्पना बच्चों के इस खेल से कर सकते हो। तुम्हारे बनाए ये घर, शहर सब ऐसे ही रह जाते हैं। तुम्हें एक दिन यह सब यहीं छोड़कर जाना होता है। तुम जिंदगी की भागदौड़ में सब भूल जाते हो और खुद से कभी मिल नहीं पाते। सबका जाना तय है इसलिए कभी भी समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। हमेशा वर्तमान में ही जीना चाहिए।’’