Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Jan, 2024 09:06 AM
पशुता और दिव्यता
रोते हुए पैदा होना दुर्भाग्य नहीं है, बल्कि रोते-रोते जीना और रोते-रोते ही मर जाना दुर्भाग्य है। हम भले ही रोते हुए पैदा हुए हों, पर जिंदगी की
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पशुता और दिव्यता
रोते हुए पैदा होना दुर्भाग्य नहीं है, बल्कि रोते-रोते जीना और रोते-रोते ही मर जाना दुर्भाग्य है। हम भले ही रोते हुए पैदा हुए हों, पर जिंदगी की सफलता तो इसी में है कि हंसते-हंसते दुनिया से विदा लें। मनुष्य में पशुता और दिव्यता ये दो शक्तियां निवास करती हैं। मनुष्य को गिरना नहीं है बल्कि ऊपर उठना है। वह ऊपर उठे तो देवता हो सकता है और नीचे गिरे तो पशु हो सकता है।
संसारी और संत
आज को सफल बनाओ। कल अपने आप ही सफल हो जाएगा। जन्म को सुधारो, मृत्यु अपने आप ही सुधर जाएगी। जीवन का गणित कुछ उल्टा है। जीवन के गणित में वर्तमान को सुधारो तो भविष्य सुधरता है और जीवन को सुधारो तो मृत्यु सुधरती है। संसारी और संत में इतना ही अंतर है कि संत आज को सफल बनाने में व्यस्त है और संसारी कल को सफल बनाने में मस्त है।
क्रोध को मंद रखें
जवान और बुजुर्गों के लिए मेरी एक नसीहत है, अगर आप जवान हैं, तो आप अपने क्रोध को मंद रखें, नहीं तो आपका करियर चौपट हो जाएगा और अगर आप बुजुर्ग हैं तो क्रोध करना एकदम बंद कर दें, वरना आपका बुढ़ापा बिगड़ जाएगा। क्रोध के तेवर कम करने हैं तो चुप रहने की आदत डालिए। बड़ा मजा आएगा। क्रोधी थोड़ी देर फूं-फां करके खुद-ब-खुद ढीला पड़ जाएगा।
जिंदगी में ब्रेक जरूरी
जैसे गाड़ी में ब्रेक जरूरी है, वैसे ही जिंदगी में भी ब्रेक जरूरी है। गुरु जिंदगी की गाड़ी का ब्रेक है। बिना ब्रेक के गाड़ी बेकार है और बिना गुरु के जिंदगी बेकार है। जिंदगी में एक गुरु जरूरी है, फिर चाहे वह मिट्टी का द्रोणाचार्य ही क्यों न हो। गुरु एक तरह से फैमिली डॉक्टर है, जो मन का इलाज करता है। तन भी कभी-कभार बीमार होता है, पर मन तो सदा बीमार है। इसकी औषधि गोली नहीं, सद्गुरु की बोली है।