Muni Shri Tarun Sagar: क्या यही जिंदगी है ?

Edited By Updated: 14 Jul, 2025 02:01 PM

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असली-लक्ष्मी रूठ जाएगी सूर्योदय  के साथ ही बिस्तर छोड़ देना चाहिए, ऐसा न करने से सिर पर पाप चढ़ता है। महिलाएं जो कि घर की लक्ष्मी हैं, इन लक्ष्मियों को सूर्योदय के साथ ही उठ जाना चाहिए।

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असली-लक्ष्मी रूठ जाएगी
सूर्योदय  के साथ ही बिस्तर छोड़ देना चाहिए, ऐसा न करने से सिर पर पाप चढ़ता है। महिलाएं जो कि घर की लक्ष्मी हैं, इन लक्ष्मियों को सूर्योदय के साथ ही उठ जाना चाहिए। लक्ष्मण थोड़ी देर से उठे तो चल जाएगा, पर लक्ष्मी का देर से उठना नहीं चलेगा। जिन घर-परिवारों में लक्ष्मण के साथ लक्ष्मी भी देर सुबह तक सोई पड़ी रहती है, उन घरों की ‘असली-लक्ष्मी’ रूठ जाया करती है और घर छोड़ कर चली जाया करती है।

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सब कुछ अमानत
दुनिया में तुम्हारा अपना कोई नहीं है। जो कुछ भी तुम्हारा है, तुम्हारे पास है, वह बतौर अमानत है। बेटा है तो बहू की अमानत है। बेटी है तो दामाद की अमानत है। शरीर श्मशान की और जिन्दगी मौत की अमानत है। तुम देखना- एक दिन बेटा बहू का हो जाएगा और बेटी को दामाद ले जाएगा, शरीर श्मशान की राख में मिल जाएगा और जिंदगी मौत से हार जाएगी। तो अमानत को अमानत समझकर ही उसकी सार-संभाल करना, उस पर मिलकीयत का ठप्पा मत लगा देना।  

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क्या यही जिंदगी है
पानी पर खींची गई लकीर की कोई उम्र नहीं होती। जीवन भी लगभग ऐसा ही है। पता नहीं कब कूच करने का नगाड़ा बज जाए। अत: काम छोड़ कर सत्संग में बैठना चाहिए और कर्म-ध्यान करना चाहिए। अगर ‘आज’ ऐसा नहीं किया तो ‘कल’ बहुत बुरा होगा। सोमवार को जन्म हुआ, मंगलवार को बड़े हुए, बुधवार को विवाह हुआ, गुरुवार को बच्चे हुए, शुक्रवार को बीमार पड़ गए, शनिवार को अस्पताल गए और रविवार को चल बसे। मैं पूछता हूं - क्या यही जिंदगी है?

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पेशे को घर न लाएं
आप घर से बाहर भले ही डॉक्टर, वकील, व्यापारी और बुद्धिजीवी बने रहें लेकिन शाम को जब घर पहुंचें तो अपने पेशे को बाहर छोड़कर ही घर में प्रवेश करें। कारण कि वहां तुम्हारे दिमाग की नहीं, दिल की जरूरत है। घर पर कोई मरीज, मुवक्किल, ग्राहक थोड़ी न तुम्हारा इंतजार कर रहा है, जो तुम डॉक्टर, वकील या व्यवसायी बनकर घर लौट रहे हो। वहां तो एक मां को अपने बेटे का, पत्नी को अपने पति का और बच्चों को अपने पिता का इंतजार है। शाम को अपने घर पिता, पति और पुत्र की हैसियत से ही लौटना चाहिए।

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