Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Aug, 2025 08:02 AM

Naam Jap Ki Mahima: मन की पवित्रता, कर्मों की पवित्रता, शरीर की पवित्रता और वाणी की पवित्रता, ये चार प्रकार की पवित्रता कही गई है। अभिमान, वैर, द्वेष, हिंसा, दंभ, काम, क्रोध, लोभ और ईर्ष्या आदि से मन अपवित्र होता है, इसलिए यथासाध्य इन दुर्गुणों को...
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Naam Jap Ki Mahima: मन की पवित्रता, कर्मों की पवित्रता, शरीर की पवित्रता और वाणी की पवित्रता, ये चार प्रकार की पवित्रता कही गई है। अभिमान, वैर, द्वेष, हिंसा, दंभ, काम, क्रोध, लोभ और ईर्ष्या आदि से मन अपवित्र होता है, इसलिए यथासाध्य इन दुर्गुणों को मन से सदा निकालते रहना चाहिए।
कामना, द्वेष, दंभ, लोभ और अभिमान आदि के कारण जो शास्त्र विरुद्ध कर्म होते हैं, वे कर्म अपवित्र कहलाते हैं। अतएव भगवत अर्पण बुद्धि से और लोकसेवा से विशुद्ध भाव से शास्त्रोक्त कर्म करने चाहिएं। अस्पृश्य पदार्थों के स्पर्श, मृतकादि अशौच और मल-मूत्रादि के त्याग करने पर शरीर अपवित्र होता है। अतएव, जल और स्नान, आचमन आदि से शरीर को पवित्र रखना चाहिए।

असत्य, कड़वे, दूसरों की निंदा या अपनी प्रशंसा से भरे और व्यर्थ के वचनों से वाणी अपवित्र होती है। अतएव सदा-सर्वदा अविकारी, सत्य, मधुर और हितकर वचन बोलने चाहिएं।
पवित्रता का एक सर्वोत्तम उपाय और है, वह है हार्दिक प्रेम के साथ भगवान के पवित्र नाम का सतत स्मरण करना। शास्त्र की अन्यान्य विधियों का पालन करने के साथ ही मन लगाकर भगवान का जप, कीर्तन और स्मरण अवश्य करना चाहिए।
