Panihati Dahi Chida Festival: यहां का विशेष प्रसाद पाने के लिए उमड़ता है भक्तों का हजूम, जानें क्यों

Edited By Updated: 03 Jun, 2025 07:12 AM

panihati dahi chida festival

राधारानी की नगरी वृन्दावन में बन रहे विश्व के सबसे ऊंचे चंद्रोदय मंदिर में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को आयोजित पानीहाटी दही चूड़ा महोत्सव का विशेष प्रसाद पाने के लिए भक्तों का हजूम जुड़ जाता है। मान्यता है कि विशेष प्रसाद के ग्रहण करने से...

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राधारानी की नगरी वृन्दावन में बन रहे विश्व के सबसे ऊंचे चंद्रोदय मंदिर में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को आयोजित पानीहाटी दही चूड़ा महोत्सव का विशेष प्रसाद पाने के लिए भक्तों का हजूम जुड़ जाता है। मान्यता है कि विशेष प्रसाद के ग्रहण करने से गुरू भक्ति की कुंडलिनी जागृत होती है। यह महोत्सव इस बार दो जून यानी आज मनाया जाएगा।  

 

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इस पावन दिन ही बलराम जी के अवतार तथा चैतन्य महाप्रभु के अंतर्गत सखा नित्यानंद प्रभु ने रघुनाथ दास गोस्वामी को आशीर्वाद देने से पहले उनकी परीक्षा उन्हें दंड यानी सजा देकर ली थी। इस संबंध में पौराणिक दृष्टान्त देते हुए चंद्रोदय मंदिर वृन्दावन के अध्यक्ष चंचलापति दास ने बताया कि रघुनाथ दास गोस्वामी का जन्म पश्चिम बंगाल के 24 परगना क्षेत्र के पानीहाटी नामक स्थान में एक जमींदार परिवार में हुआ था। यद्यपि उनके पिता ने उनका विवाह कम आयु में ही कर दिया था। वैराग्य के भाव होने के कारण उनकी इच्छा थी कि वे चैतन्य महाप्रभु की सेवा में लग जाए तथा इसके लिए उन्होंने काफी प्रयास भी किया था मगर वे जगन्नाथपुरी में चैतन्य महाप्रभु से मिलने नहीं जा पाए। 

उन्होंने बताया कि एक बार रघुनाथ दास गोस्वामी को पता चला कि नित्यानंद प्रभु पानीहाटी में आए हैं तो उन्होेंने निश्चय किया कि वे उनके दर्शन के लिए वहां जाएंगे। इसके बाद वे न केवल वहां गए बल्कि बरगद के पेड़ की आड़ से नित्यानन्द प्रभु को देख रहे थे। 

उनमें एक समर्पित शिष्य के भाव देखकर नित्यानन्द प्रभु ने उन्हें अपने पास बुलाया और उनसे कहा कि चोरी से देखने की जगह वे सीधे भी आ सकते थे, चूंकि उन्होंने चोरी से देखने का अनुचित कार्य किया है इसलिए उन्हे यह सजा दी कि वे पानीहाटी के अधिक से अधिक संतों को दही चूड़ा खिलाये। रघुनाथ दास गोस्वामी ने जब उनकी आज्ञा का पालन कर दिया और तमाम संतों को दही चूड़ा खिला दिया तो नित्यानन्द प्रभु ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया था। इस महोत्सव को दही चूड़ा महोत्सव भी कहा जाता है।

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इतिहास साक्षी है कि महान संत रघुनाथ दास गोस्वामी बाद में वृन्दावन आए और वृन्दावन से राधाकुण्ड चले गए। जहां पर अपनी भजनकुटी में उन्होंने लम्बे समय तक न केवल भजन किया बल्कि गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के कई ग्रन्थ लिखे थे। उनकी भजनकुटी गिरिराज जी की परिक्रमा करने वाले करोड़ों भक्तों को आज भी प्रेरणा देती है तथा परिक्रमा के दौरान जब वे राधाकुण्ड पहुंचते हैं और वे इस महान संत की भजनकुटी में अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। वर्तमान में संत कृष्णदास इस भजन कुटी में भजन कर रहे हैं।   
पानीहाटी दही चूड़ा महोत्सव में आयोजित कार्यक्रम के बारे में जनसंपर्क अधिकारी अभिषेक मिश्र ने बताया कि इस दिन प्रातः कालीन पूजन अर्चन के बाद सायं गौरांग प्रभु और नित्यानन्द प्रभु के श्री विग्रहों को पालकी द्वारा मंदिर प्रांगण में कल्याणी पर लाया जाता है। जहां पर वैदिक मंत्रों के साथ मध्य जलाभिषेक और पुष्प महाभिषेक कराया जाता है। इस दिन निताई गौरांग को बहुत ही आकर्षक पोशाक धारण कराई जाती है और विग्रहों का देशी और विदेशी पुष्पों से अनूठा श्रंगार किया जाता है तथा विग्रहों को नौका विहार के लिए ले जाया जाता है। वहां पर हरिनाम संकीर्तन के मध्य दोनों ही विग्रहों पर पुन: पुष्प अर्पण किया जाता है। कार्यक्रम का समापन शंखध्वनि के मध्य महाआरती और फिर विशेष रूप से तैयार किये गए दही चूड़ा प्रसाद के वितरण से होता है। कुल मिलाकर कार्यक्रम श्रद्धा और शुचिता से इतना सराबोर होता है कि पूरे कार्यक्रम में एक प्रकार से भक्ति रस की गंगा प्रवाहित होती रहती है।

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