Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Jun, 2025 02:00 PM

Powers of the Soul: आत्मिक बल बढ़ने से शारीरिक तथा मानसिक शक्तियां संवर्धित होती हैं। इस हेतु सर्वप्रथम अंतर्ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। अंतर्ज्ञान को आत्म ज्ञान भी कहा जा सकता है क्योंकि आत्मा ही अंततत्व है। किसी भी वस्तु को सम्यक रूप से न पहचानने तक...
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Powers of the Soul: आत्मिक बल बढ़ने से शारीरिक तथा मानसिक शक्तियां संवर्धित होती हैं। इस हेतु सर्वप्रथम अंतर्ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। अंतर्ज्ञान को आत्म ज्ञान भी कहा जा सकता है क्योंकि आत्मा ही अंततत्व है। किसी भी वस्तु को सम्यक रूप से न पहचानने तक व्यक्ति उसके लाभ से वंचित रहता है। पूर्वज घर के किसी कोने में अकूत धन गाढ़ जाएं और उनके वंशजों को वह मालूम न हो, तो उसका समुचित उपयोग कर लाभ नहीं उठाया जा सकता।

इसी प्रकार आत्मा में भी ईश्वरीय तत्व है, परंतु उसे न जानने की स्थिति में उसका पूर्ण फायदा नहीं पाया जा सकता। आत्मा को जानो अर्थात अपने आप को पहचानो।

आत्मा को जानने के लिए सर्वप्रथम शरीर से इसकी पृथकता जाननी पड़ेगी। शरीर का नाश होता है परंतु आत्मा अजर-अमर-अविनाशी है। शरीर के मान-अपमान, सुख-दुख, जन्म-मरण को अपना मानना भी गलत है। सभी इन्द्रियां शरीर का अंग हैं। इन्हें अपना मानकर इनसे सुख-दुख का अनुभव करना भ्रम है।

मनन करने वाला मन भी आत्मा से पृथक है। अन्यथा यह नहीं कहा जा सकता कि मेरे मन में अमुक विचार आया। मन के लिए यह कथन करने वाला मन से अलग ही सिद्ध होता है। इस प्रकार आत्मा शरीर, इंद्रियां और मन नहीं है। आत्मा इन सबसे अलग और असीम शक्ति की अधिष्ठात्री है, किंतु मोह का आवरण इस पर छाया रहता है इसलिए मनुष्य अपने को मन तथा इंद्रियों के वश में समझता है।

अंतर्ज्ञान द्वारा मनुष्य को दृढ़ निश्चय कर लेना चाहिए कि उसकी आत्मा में अनंत शक्ति है। मन तथा इन्द्रियां सभी उसके अनुचर हैं। आत्मा की अनुमति के बिना उनमें हिलने-डुलने का भी सामर्थ्य नहीं है।

अनादि काल से चौरासी लाख जीवयोनियों में भटकते हुए आत्मा ने अनेक पर्यायों में परिभ्रमण किया है, परंतु कभी मानव शरीर के जैसा अन्य कोई शरीर नहीं मिला, जिसके द्वारा आत्मा तथा परमात्मा को जाना जा सकता, साधना करना संभव होता और सद्गुणों का विकास चरम सीमा तक किया जाता।

इस ज्योतिपुंज आत्मा को जगाने तथा दुर्लभ मनुष्य जन्म प्राप्ति के सुअवसर को व्यर्थ न गंवाने की प्रेरणा सभी महापुरुषों और धर्म विशारदों ने दी है।

संसार रूपी समुद्र से पार उतरने के लिए शरीर जलयान है। मानव भव शाश्वत सुख प्राप्ति का स्वर्णिम अवसर है। बीता हुआ क्षण वापस लौटकर नहीं आता इसलिए आत्मा को जाग्रत करने का मौका कभी चूकना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा संयोग बार-बार नहीं बनता।
