Pradosh Vrat: आज पूजा के बाद करें ये आरती, महादेव करेंगे हर इच्छा पूरी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Mar, 2023 07:52 AM

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कलयुग में प्रदोष व्रत को बहुत ही मंगलकारी माना गया है। इस दिन भगवान शिव और पार्वती को खुश करके हर मनचाही इच्छा पूरी की जा सकती है।

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Pradosh Vrat 2023: कलयुग में प्रदोष व्रत को बहुत ही मंगलकारी माना गया है। इस दिन भगवान शिव और पार्वती को खुश करके हर मनचाही इच्छा पूरी की जा सकती है। प्रदोष व्रत को त्रियोदशी के नाम से भी जाना जाता है। प्रदोष समय में पूजा का दोगुना फल मिलता है। सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव प्रदोष के समय कैलाश पर्वत पर स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं। इस समय पर की गई पूजा से भगवान अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। पूजा के बाद उनकी आरती करना बहुत ही शुभ माना गया है। बिना आरती के पूजा सफल नहीं मानी जाती। तो आइए जानते हैं कौन से मुहूर्त में पूजा करनी चाहिए-

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Pradosh Vrat muhurat प्रदोष व्रत मुहूर्त: हिंदू कैलेंडर के अनुसार 19 मार्च को त्रयोदशी तिथि का आरंभ सुबह 8 बजकर 8 मिनट पर होगा और 20 मार्च को 4 बजकर 56 मिनट पर इसका समापन होगा। प्रदोष काल को सबसे उत्तम माना गया है। 19 मार्च को प्रदोष काल 6 बजकर 35 से 8 बजकर 55 मिनट तक रहेगा।

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Pradosh Vrat Puja Method प्रदोष व्रत पूजा विधि: महादेव को भोले भंडारी भी कहा जाता है। उनको प्रसन्न करना बहुत ही आसान है। प्रदोष काल के समय शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाएं। इसके बाद दूध, दही, शहर और जल अर्पित करें। फिर भगवान शिव को चंदन का तिलक, अक्षत, भस्म आदि अर्पित करें। फिर शमी के पत्ते, बेलपत्र, रुद्राक्ष आदि चढ़ाएं। घी का दीपक जलाकर प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें और उसके बाद इस आरती के साथ पूजा को संपन्न करें।

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Aarti of Lord Shiva भगवान शिव की आरती
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ 

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