Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Jan, 2023 09:46 AM
अवंतिका देश का राजा रवि सिंह, महात्मा आशुतोष पर बड़ी श्रद्धा रखता था। वह उनसे मिलन रोज उनकी कुटिया में जाता था।
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अवंतिका देश का राजा रवि सिंह, महात्मा आशुतोष पर बड़ी श्रद्धा रखता था। वह उनसे मिलन रोज उनकी कुटिया में जाता था। वह हर बार महात्मा जी को अपने महल में आने के लिए निमंत्रण देता था, किन्तु महात्मा जी आने से मना कर देते थे। एक दिन राजा रवि सिंह ने महात्मा जी को महल ले जाने के लिए जिद कर ली। तब महात्मा ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे महल में दुर्गंध महसूस होती है। रवि सिंह अपने महल लौट आए, लेकिन काफी देर तक महात्मा की बातों पर विचार करते रहे।’’
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कुछ दिनों के बाद राजा रवि सिंह फिर महात्मा जी के पास पहुंचे और महात्मा, राजा को पास के एक गांव में घुमाने ले गए। दोनों जंगल पार करते हुए उस गांव में पहुंचे। उस गांव में कई जगह पशुओं की बस्ती थी और गांव में चमड़े के कई कारखाने भी थे जिस कारण पूरे गांव में चमड़े की दुर्गंध आ रही थी। जब वह दुर्गंध सहन करने योग्य नहीं रह गई तो राजा ने महात्मा जी से कहा, यह दुर्गंध बर्दाश्त नहीं होती। तब महात्मा ने कहा, यहां तो पूरा गांव बसा हुआ है, लेकिन दुर्गंध सिर्फ आप ही को आ रही है। दुर्गंध की कोई भी व्यक्ति शिकायत नहीं कर रहा है।
राजा ने कहा कि ये लोग इसके आदी हो चुके हैं, किन्तु मैं नहीं।
तब महात्मा जी ने कहा, राजन तुम्हारे महल का भी यही हाल है जहां पर विषय और विलासिता की दुर्गंध फैली हुई है। तुम इसके आदी हो चुके हो लेकिन मुझे वहां जाने की कल्पना से भी कष्ट होता है। जब हम किसी वातावरण, व्यवहार के आदी हो जाते हैं तो हमारी दृष्टि संकुचित हो जाती है। इसलिए जब तक वातावरण से दूर होकर विचार एवं चिंतन न करें तब तक हमें सही-गलत का ज्ञान नहीं हो सकता।