बजंरगबली का ये शक्तिशाली पाठ दिलाएगा हर संकट से मुक्ति

Edited By Jyoti,Updated: 05 Feb, 2019 01:21 PM

sankat mochan hanuman ashtak

हनुमान अष्टक: हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा की जाती है। पौराणिक ग्रंथों में बजरंगबली को भगवान शंकर का ही स्वरूप कहा गया है। इसलिए कहा जाता है कि भगवान शिव शंकर की ही तरह इन्हें बहुत जल्दी से प्रसन्न किया जा सकता...

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हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा की जाती है। पौराणिक ग्रंथों में बजरंगबली को भगवान शंकर का ही स्वरूप कहा गया है। इसलिए कहा जाता है कि भगवान शिव शंकर की ही तरह इन्हें बहुत जल्दी से प्रसन्न किया जा सकता है। हनुमान चालीस के पाठ के बारे में तो सब जानते ही होंगे। इसके निरंतर जाप से व्यक्ति की हर तरह की परेशानी से छुटकारा पाया जा सकता है। लेकिन इसके अलावा भी ज्योतिष में इनसे संबंधित एक और पाठ का वर्णन किया गया है जिसका जाप करने से जातको सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। आइए जानते हैं कौन सा है ये पाठ-  
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ज्योतिष के अनुसार संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ करना बहुत लाभदायक माना जाता है। कहते हैं कि मंगलवार के दिन हनुमान अष्टक के विधिवत पाठ से शारीरिक कष्ट भी दूर होते हैं। लेकिन बहुत से लोगों को हनुमान अष्टक का पाठ कैसे करना चाहिए, इससे बारे में जानकारी नहीं होती। जिस के चलते वो इसे करने से डरते हैं। तो हम आपको बता दें कि कुछ महान विद्वानों का कहना है कि हनुमान अष्टक पाठ को करने के लिए कोई विशेष नियम नहीं है। इसका पाठ कभी भी, कहीं भी किया जा सकता है। मगर आप तुरंत इसके शुभ फल को पाना चाहते हैं तो इसके लिए एक शास्त्रीय तरीका मौज़ूद है। यहां जानें हनुमान अष्टक मंत्र और उसकी विधि- 

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हनुमान अष्टक की खास विधि:

सबसे पहले इस पाठ को करने से पहले जहां भी बैठकर पाठ करना हो वहां हनुमान जी की एक तस्वीर के साथ-साथ ही श्रीराम का चित्र ज़रूर स्थापित करें।

फिर दोनों तस्वीरों के सामने घी का दिया जलाएं और साथ में एक तांबे के गिलास में पानी भरकर रख दें। इसके बाद पूरे मन से हनुमान बाहुक का पाठ करें।

जब पाठ समाप्त हो जाए तो तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीड़ित व्यक्ति को पिला दें या जिसके लिए यह पाठ किया हो उसे पिला दें। ज्योतिष के अनुसार इनकी पूजा करते समय पानी के साथ-साथ हनुमान जी को तुलसी के पत्ते भी अर्पित किए जा सकते हैं। कहते हैं तुलसी के पावन पत्ते पूजा को अधिक सकारात्मक बनाते हैं। पाठ पूरा करने के बाद इन पत्तों का सेवन करने से सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। बता दें कि ज़रूरी नहीं है कि केवल कष्ट होने पर ही इसका पाठ करना चाहिए, रोज़ाना भी हनुमान बाहुक का पाठ करना फलदायी होता है।
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हनुमान अष्टक

बाल समय रवि भक्षि लियो, तब तीनहुं लोक भयो अंधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।1।
देवन आनि करी विनती तब, छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।2।
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारौ।
चौंकि महामुनि शाप दियो तब, चाहिए कौन विचार विचारो।3।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।4।

अंगद के संग लेन गये सिय, खोज कपीस ये बैन उचारो।
जीवत ना बचिहों हमसों, जु बिना सुधि लाये यहां पगुधारो।5।
हेरि थके तट सिन्धु सबै तब, लाय सिया, सुधि प्राण उबारो।
को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।6।
रावन त्रास दई सिय की, सब राक्षसि सों कहि शोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो।7।
चाहत सीय अशोक सों आगि, सो दे प्रभु मुद्रिका शोक निवारो।
 को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।8।
बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्रान तजे सुत रावन मारो।
ले गृह वैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सुबीर उपारो।9।
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आन संजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।10।
रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग की फाँस सबै सिर डारौ।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयौ यह संकट भारो।11।
आनि खगेश तबै हनुमान जी, बन्धन काटि सो त्रास निवारो।
को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।12।
बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देविहिं पूजि भली विधि सों, बलि देहुं सबै मिलि मंत्र विचारो।13।
जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।
को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।14।
काज किये बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि विचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसौं नहिं जात है टारो।15।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कुछ संकट होय हमारो।
को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।16।

संकटमोचन हनुमान अष्टक दोहा:

लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दनव दलन, जय जय जय कपि सूर।।
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