Shardiya Navratri: मां दुर्गा की स्तुति के लिए नवरात्र हैं सर्वोत्तम मुहूर्त, जानें इसका महत्व

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Oct, 2023 07:39 AM

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शक्ति ही सृष्टि का आधार मूल है और नवरात्र उसमें सर्वोत्तम मुहूर्त हैं। नवरात्र में मां की स्तुति का विशेष महात्म्य है।

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Shardiya Navratri 2023: शक्ति ही सृष्टि का आधार मूल है और नवरात्र उसमें सर्वोत्तम मुहूर्त हैं। नवरात्र में मां की स्तुति का विशेष महात्म्य है।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:॥
जो देवी सब जीवों में शक्ति, सामर्थ्य रूप में रहती हैं, उन्हें नमस्कार है, नमस्कार है, नमस्कार है।

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असुरों के संहार के लिए देवताओं ने शक्ति का आह्वान किया। उसी जगत-जननी की आराधना हम नवरात्र के दौरान करते हैं। वह शक्ति, जिनके बिना त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी अपूर्ण हैं, उस सम्पूर्ण शक्ति का नाम है देवी भगवती दुर्गा।

आध्यात्मिक, नैतिक व सांसारिक दृष्टिकोण से नवरात्रों की बहुत महिमा है। आदिकाल से ही देव, दानव एवं मानव शक्ति प्राप्त करने के लिए मां की आराधना करते आ रहे हैं। मां सृष्टि का आधार एवं शक्ति का स्रोत हैं। बिना शक्ति के सृष्टि का कायाकल्प संभव ही नहीं। शक्ति के बिना शिव भी शव के समान हैं।

नवरात्रों में मां आदि शक्ति की नौ स्वरूपों में पूजा की जाती है। नवरात्रों में प्रतिदिन अलग-अलग स्वरूपों में मां का पूजन होता है जो क्रमश: इस प्रकार हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धि दात्री। नवरात्रों में देवी के इन्हीं नौ स्वरूपों की पूजा का महात्म्य है।

वर्षा ऋतु समाप्त होकर शरद ऋतु प्रारंभ हो चुकी होती है। वातावरण परिवर्तन के दौरान शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। रोगों का प्रकोप बढ़ता है। हमारे मनीषियों ने इस समस्या के समाधान के लिए शक्ति संचय का आह्वान किया। शरीर में कम हो रही ऊर्जा को प्राकृतिक स्रोतों से ग्रहण करने का प्रयास नवरात्रों में किया जाता है। नवरात्र काल में सामूहिक रूप से उपवास एवं पूजन-अनुष्ठान करते हैं। हमारे इर्द-गिर्द व घर में ऊर्जा का महापुंज एकत्रित होने लगता है। नवरात्र के दौरान मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ विधि-विधान से किया जाए तो माता बहुत प्रसन्न होती हैं।

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पौराणिक कथानुसार प्राचीन काल में ‘दुर्गम’ नामक राक्षस ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। उसने वेदों को अपने अधिकार में लेकर देवताओं को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया, जिससे पूरे संसार में वैदिक कर्म बंद हो गया। इस कारण चारों ओर घोर अकाल पड़ जाने से हर ओर हाहाकार मच गया। जीव-जंतु मरने लगे। सृष्टि का विनाश होने लगा। सृष्टि को बचाने के लिए देवताओं ने व्रत रख कर नौ दिन तक ‘मां जगदम्बा’ की आराधना करके उनसे सृष्टि को बचाने की विनती की।

तब मां भगवती और असुर ‘दुर्गम’ के बीच घमासान युद्ध हुआ। मां भगवती ने ‘दुर्गम’ का वध कर देवताओं को निर्भय कर दिया। नवरात्रों में आदिशक्ति की पूजा कंजक रूप में की जाती है। मां वात्सल्य की देवी हैं, किसी से वैर-विरोध व पक्षपात नहीं करतीं। मां का स्वरूप स्त्री का है। कंजक स्त्री स्वरूप व अबोध होती है। कन्याओं को माता रानी का प्रतिबिंब जानकर भक्त उनका श्रद्धा एवं विश्वास से पूजन करते हैं।

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नवरात्रों के नौ दिनों में भगवती दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों में पूजा के साथ-साथ प्रसाद भी प्रतिदिन अलग वस्तुओं का चढ़ाया जाता है। प्रतिदिन आंवले का तेल, दूसरे नवरात्र को बाल गूंथने के काम आने वाला रेशमी सूत या फीता, तीसरे नवरात्र में सिंदूर अथवा दर्पण अर्पित करें, चौथे नवरात्र को गाय का दूध, दही, घी एवं शहद से बने द्रव्य, पांचवें नवरात्र को चंदन एवं आभूषण, छठे नवरात्र को पुष्प एवं फूलों की माला, सातवें नवरात्र को अपने गृह में पूजा, आठवें नवरात्र को उपवासपूर्वक पूजन, नौंवे नवरात्र को महापूजा तथा कुमारी पूजा से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं।

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Keep these things in mind during puja पूजा के समय रखें इन बातों का ध्यान:
दुर्गा पूजा में तुलसी का इस्तेमाल न करें, लाल रंग के फूल चढ़ाएं। पूजन के समय महिलाएं बाल खुले न रखें। मन में अटूट श्रद्धा व विश्वास पैदा कर स्वयं को मां के चरणों में समर्पित करने से ही कल्याण सम्भव है।

 

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