Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jul, 2025 02:00 PM

Shravan Month 2025: पर्वों की विविधता ही भारतीय संस्कृति का प्राणतत्व है। वर्ष का प्रत्येक दिन किसी न किसी पर्व, उपवास और व्रत से जुड़ा हुआ है। पर्वों की इसी पावन श्रृंखला में हमारे आध्यात्मिक शास्त्रों में श्रावण मास का भी महत्वपूर्ण स्थान है।...
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Shravan Month 2025: पर्वों की विविधता ही भारतीय संस्कृति का प्राणतत्व है। वर्ष का प्रत्येक दिन किसी न किसी पर्व, उपवास और व्रत से जुड़ा हुआ है। पर्वों की इसी पावन श्रृंखला में हमारे आध्यात्मिक शास्त्रों में श्रावण मास का भी महत्वपूर्ण स्थान है। प्रकृति का कण-कण इस श्रावण मास में सौंदर्य, नव उल्लास और ऊर्जा से परिपूरित होता है।

श्रावण मास आध्यात्मिक विकास, आत्म अनुशासन और आंतरिक शुद्धि का समय है। पौराणिक ग्रन्थों में श्रावण का महीना विशेष रूप से भगवान शिव की आराधना को समर्पित है। मार्कंडेय ऋषि ने इसी मास में दीर्घायु के लिए घोर तप करके भगवान शिव की कृपा प्राप्त की थी।
समुद्र मंथन की घटना भी इसी मास में हुई थी जब समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को भगवान शंकर ने अपने कंठ में समाहित कर देवताओं की रक्षा की थी इसलिए भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है।
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। जो जल समस्त प्राणियों में जीवन शक्ति का संचार करता है, वह स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है इसलिए गंगाजल के अभिषेक से शिव की आराधना उत्तम फल प्रदान करती है।
श्रावण मास के प्रधान देवता भगवान शिव को ही माना गया है। भगवान शिव के साकार स्वरूप पर यदि दृष्टिपात करें तो उनका संपूर्ण शारीरिक स्वरूप ही आध्यात्मिक सूक्ष्म प्रेरणा प्रदान करता है।
शिव के मस्तक पर चंद्रमा मन की प्रसन्न अवस्था और शीतलता का प्रतीक है। शिव का आराधक भी सदैव जीवन के विकट समर में सदा प्रसन्न ही रहता है।

शिव के सिर से गंगा की जलधारा का आशय ज्ञान की प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति से है। शिवत्व की आराधना आध्यात्मिक शक्ति का आधार स्तंभ है। भगवान शिव का तीसरा नेत्र अर्थात ज्ञान चक्षु विवेकशीलता, दूरदर्शिता का प्रतीक है।
यह नेत्र ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य को प्रदान किया है और श्रावण मास इसी ज्ञान रूपी ज्योति को जागृत करने की पावन वेला है।
शरीर पर भस्म का लेप वैराग्य का प्रतीक है जो हमें भी इस संसार रूपी प्रवाह में रहते हुए भोग विषयों की लालसाओं को नियंत्रित करके वैराग्य और भक्ति के मार्ग पर चलने का संदेश देता है। ऐसे पावन अवसर पर भगवान शंकर की आराधना ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के आदर्श को हमारे जीवन में जाग्रत करती है।
शिव शब्द का अर्थ ही कल्याण है। एकाग्रचित मन से शिव की उपासना मनुष्य के जीवन में ‘सत्य’ को धारण करके, ‘शिवम’ अर्थात कल्याणकारी पथ की ओर अग्रसर करके हमारे जीवन को ‘सुंदर’ रूप प्रदान करती है।
महायोगी भगवान शिव का जीवन इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि गृहस्थ में रहकर भी आत्मिक कल्याण की साधना असंभव नहीं होती।

‘ओम नम: शिवाय’ और ‘महामृत्युंजय’ मंत्र की ध्वनियों से हमारे देश के समस्त शिवालयों में इस अवसर पर आध्यात्मिक वातावरण का सृजन हो जाता है। आस्था और श्रद्धा को मन में धारण करके विकट परिस्थितियों में भी शिव के उपासक इस श्रावण मास में हरिद्वार से कांवड़ यात्रा के द्वारा गंगाजल लाकर भगवान शिव को अर्पित करते हैं। बच्चे, युवा, नौजवान यहां तक कि महिलाएं भी बड़ी दूर-दूर से पैदल चलकर इस पावन श्रावण मास में शिव को जल अर्पित करते हैं।
यह आस्था, भक्ति और श्रद्धा की ही शक्ति है जो भक्तों को नई ऊर्जा प्रदान करके शिवत्व की ओर खींच कर ले जाती है। हमारे वैदिक ग्रन्थों में भी श्रावण मास को आध्यात्मिक ज्ञान के श्रवण, चिंतन, मनन का समय माना गया है।
प्राचीन काल में वर्षा ऋतु के दौरान ऋषियों के आश्रमों में रहकर लोग शास्त्रों के गूढ़ रहस्य को इस महीने में आत्मसात किया करते थे। श्रावण का यह पावन महीना भक्ति, अनुष्ठानों, सांस्कृतिक उत्सवों के मिश्रण के साथ-साथ गहन आध्यात्मिक अनुभूति की स्वर्णिम अवधि है।
