Smile please: समस्त सिद्धियों का आधार है यह गुण, क्या आप में है

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 May, 2023 10:09 AM

smile please

देव, मानव, दानव सभी शरीरधारियों की प्राण शक्ति सीमित है, असीम नहीं। ठीक उसी प्रकार जैसे दीपक में तेल। जैसे-जैसे दीपक में तेल खत्म होता जाता है

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Magic of Sweet Words: देव, मानव, दानव सभी शरीरधारियों की प्राण शक्ति सीमित है, असीम नहीं। ठीक उसी प्रकार जैसे दीपक में तेल। जैसे-जैसे दीपक में तेल खत्म होता जाता है, प्रकाश भी उसी अनुपात में कम होते हुए तेल की समाप्ति के साथ मिट जाता है। ठीक उसी प्रकार प्राण शक्ति का पूर्ण लाभ वही पा सकता है, जो संयम से उसका उपयोग करता है। संयम ही समस्त सिद्धियों का आधार है और संयम का प्रथम सोपान है-‘वचोगुप्ति’ अर्थात् वाणी का संयम।

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संयम विहीन जिह्वा अनावश्यक शब्दों का प्रयोग करने की अभ्यस्त हो जाती है और इस प्रकार के निरर्थक शब्द मन-मुटाव तथा वैमनस्य पैदा करते हैं, जो प्राण शक्ति को नष्ट करते हैं। समस्त अनर्थ परम्परा को निर्मूल करने हेतु हमारे शास्त्रों में मौन को व्रत की संज्ञा दी गई है।

मौन व्रत का पालन करने से विशेष शक्ति प्राप्त होती है। आपके दो मीठे बोल यदि किसी के जीवन में वसंत जैसा वातावरण बना दें, तो समझ लीजिए कि आपका हृदय पूजा के धूप-दान की तरह स्नेह फैला रहा है। अथर्ववेद में कहा गया है कि समान गति, कर्म, ज्ञान और समान नियम वाले बनकर परस्पर कल्याणमयी वाणी से बोलो।

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सत्य से पवित्र वचन बोलें और पवित्र मन से सब कार्य करें। दूसरे का कटु वचन सह लें, परन्तु किसी का अपमान न करें और क्षणभुंगर शरीर का आश्रय लेकर किसी के साथ वैर न करें। वर्तमान में दिग्भ्रांत पीढ़ी भले ही वृद्धों को पाश्चात्य जगत की वैचारिक तुला पर तोलने को आतुर दिखाई पड़े, परन्तु आंवले के स्वाद की भांति वृद्धों के वचनों की उपादेयता उनके लिए अत्यंत हितकर है।

महर्षि वेदव्यास जी इस संबंध में नीति का उपदेश देते हुए कहते हैं कि वृद्धों की बातों का श्रवण करके उनके अनुसार करने वाले लोग नि:संदेह आनंद प्राप्त करते हैं। वृद्धों के वचन रूपी अमृत को पीने एवं उनके कथानुसार आचरण करने से मनुष्य को जो तृप्ति होती है वैसी तृप्ति सोमपान में भी नहीं है!

वाणी का संयम हमारे जीवन को संतुलित करता है। भले ही हम भौतिक शरीर को क्षणभंगुर कहें, परन्तु अपने अस्थायित्व में भी जिह्वा शरीर की दिव्य अभिव्यक्ति होती है। कहा भी गया है- शीतल जल, चंदन का रस अथवा ठंडी छाया भी मनुष्य के लिए उतनी लाभदायक नहीं होती, जितनी मीठी वाणी।

रावण द्वारा तिरस्कृत किए जाने पर विभीषण नीतियुक्त वचन कहकर समझाते हैं - राजन ! सदा प्रिय लगने वाली मीठी-मीठी बातें कहने वाले लोग तो सुगमता से मिल सकते हैं, परन्तु जो सुनने में अप्रिय किंतु परिणाम में हितकर हो, ऐसी बात कहने और सुनने वाले दुर्लभ होते हैं।

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दयापूरित वाणी सभ्य पुरुष की पहचान है। व्यक्ति का प्रत्येक कठोर वचन स्वयं के ही जीवन मार्ग का कांटा सिद्ध होता है।
शत्रुओं के बाण से बींध जाने पर भी ऐसी व्यथा नहीं होती, जैसे कुटिल बुद्धि वाले स्वजनों के कुटिल वचनों से होती है क्योंकि शारीरिक चोट लगने पर भी निद्रा आ जाती है, पर कुवाक्यों से जो चोट लगती है, उसकी पीड़ा से मनुष्य दिन-रात बेचैन रहता है।
अत: किसी को दिल दुखाने वाली बात न कहें। किसी से कठोर वचन न बोलें। मुंह से जो कटु वचन रूपी बाण निकलते हैं, उनसे आहत हुआ मनुष्य रात-दिन शोक और चिंता में डूबा रहता है। अत: गुणीजनों को दूसरे के प्रति निष्ठुर वचनों के प्रयोग से बचना चाहिए। सदा सत्य और प्रिय वचन बोलना चाहिए, कभी भी अप्रिय सत्य तथा प्रिय मिथ्या वचन नहीं बोलना चाहिए, यही सनातन धर्म है।

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