Story of Lord Jhulelal: हिंदू नववर्ष पर हुआ था सिंधी समाज के इष्ट वरुणावतार भगवान झूलेलाल का जन्म, पढ़ें कथा

Edited By Updated: 28 Mar, 2025 02:56 PM

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Story of Lord Jhulelal: सिंधी समुदाय के महापर्व चेटीचंड के इष्ट देव हैं वरुण अवतार भगवान श्री झूलेलाल साईं, जिन्हें जिन्दह पीर, लाल साईं, अमर लाल, उडेरो लाल के नामों से भी जाना जाता है। ‘चंड-चंद्रतिथि’ इस दिन सिंधी समाज के लोग अपने इष्टदेव ज्योति...

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Story of Lord Jhulelal: सिंधी समुदाय के महापर्व चेटीचंड के इष्ट देव हैं वरुण अवतार भगवान श्री झूलेलाल साईं, जिन्हें जिन्दह पीर, लाल साईं, अमर लाल, उडेरो लाल के नामों से भी जाना जाता है। ‘चंड-चंद्रतिथि’ इस दिन सिंधी समाज के लोग अपने इष्टदेव ज्योति स्वरूप भगवान श्री झूलेलाल की आराधना, पूजा-अर्चना श्रद्धा-भाव के साथ करते हैं और अपनी आस्था का अर्घ्य चढ़ाकर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं तथा प्रसन्नचित होकर ‘आयोलाल-झूलेलाल’ का उद्घोष कर एक-दूसरे को भगवान झूलेलाल के जन्म व नववर्ष की बधाइयां देते हैं।

Story of Lord Jhulelal
जब सिंध प्रदेश के ठट्ठा नामक नगर में एक अत्याचारी मिरख नामक बादशाह का राज था, वह हिन्दुओं के प्रति अति क्रूर था। वह उनको मुसलमान बनाना चाहता था, जिससे उसे जन्नत प्राप्त हो सके। उसने अपने राज्य में घोषणा करवा दी कि यदि हिन्दू मुसलमान नहीं बनेंगे तो उन्हें सख्त सजा दी जाएगी। इस दृष्टिकोण से हिन्दुओं पर कई प्रकार के अत्याचार किए जाने लगे। यहां तक कि हिन्दू धर्म की निशानी शिखा (चोटी) काटकर जनेऊ उतरवाए जाने लगे।

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अत्याचारों से पीड़ित-त्रस्त हिन्दू त्राहिमाम कर उठे। बादशाह के जुल्मों से तंग होकर सिंधी हिन्दू सिंधू नदी के पावन तट पर आए और लगातार तीन दिनों तक ध्यान लगाकर वरुण देवता की पूजा-अर्चना व स्तुति की। लोगों के हृदय की करुणा भरी पुकार भगवान ने सुनी एवं आकाश की गर्जनाओं के साथ आकाशवाणी हुई- हिन्दुओ ! निर्भय एवं निश्चित हो जाओ। मिरख बादशाह तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकेगा। मैं शीघ्र ही तुम्हारी रक्षार्थ नसरपुर में अपने भक्त रतनराय के घर माता देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा। समय अनुसार विक्रम सम्वत् 1007, चैत्र के महीने शुक्रवार के शुभ दिन सायंकाल के समय प्रभु ने रतन राय के घर माता देवकी के गर्भ से सुन्दर बालक के रूप में जन्म लिया, जिनका नामकरण उदयचंद के रूप में किया गया।

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समयानुसार उदयचंद बाल लीला कर बड़े होने लगे। उनकी अद्भुत लीलाएं दिन-प्रतिदिन पूरे सिंध प्रदेश के घर-घर में चर्चित हो रही थीं। धीरे-धीरे इस तेजस्वी बालक की बात मिरख बादशाह के कानों तक पहुंची और वह नित्य प्रति भयानक सपने देखने लगा। उसे विश्वास हो गया कि धरती पर अवश्य ही भगवान अवतार लेकर आए हैं और हार मानकर स्वयं भगवान श्री झूलेलाल की शरण में आ गया।

तब भगवान झूलेलाल ने बादशाह को समझाया कि सारी सृष्टि प्रभु ने उत्पन्न की है। हिन्दू-मुसलमान एक ही हैं। मुसलमान जिसे खुदा कहते हैं, हिन्दू उसे ईश्वर कहते हैं। अर्थात मंजिल सभी की एक है। बादशाह की समझ में सब आ गया। इस प्रकार अधर्म समाप्त होकर धर्म की जय हुई।

इस धरा धाम पर भगवान झूलेलाल साईं जी ने अनेक अलौकिक लीलाएं कीं एवं लोगों को सत्य उपदेश देकर उनका कल्याण किया। हिंदू धर्म की रक्षा कर सनातन धर्म की पताका फहराई। सम्वत् 1020 में वरुण अवतार भगवान झूलेलाल भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को अचानक जल समाधि लेकर अंतर्ध्यान हो गए। 

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