Edited By Prachi Sharma,Updated: 25 Sep, 2025 06:45 AM

Vinayak Chaturthi 2025: हिंदू धर्म में विनायक चतुर्थी का विशेष महत्व है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है, जिन्हें विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता माना जाता है। इस दिन भक्त पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ भगवान गणेश की पूजा करते हैं और उपवास रखते...
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Vinayak Chaturthi 2025: हिंदू धर्म में विनायक चतुर्थी का विशेष महत्व है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है, जिन्हें विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता माना जाता है। इस दिन भक्त पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ भगवान गणेश की पूजा करते हैं और उपवास रखते हैं। विनायक चतुर्थी हर महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस बार यह पावन तिथि पौष मास में पड़ रही है और 25 सितंबर 2025 को मनाई जा रही है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन व्रत करने के साथ-साथ विनायक चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करना भी अत्यंत आवश्यक होता है। मान्यता है कि कथा के बिना व्रत अधूरा माना जाता है। तो आइए, इस शुभ अवसर पर भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए व्रत के साथ उनकी कथा का श्रवण और पाठ भी करें, जिससे जीवन में सुख, शांति और सफलता बनी रहे।
बहुत प्राचीन समय की बात है। एक दिन भगवान शिव और माता पार्वती नदी के किनारे विश्राम कर रहे थे। उसी समय माता पार्वती का मन चौपड़ खेलने का हुआ। लेकिन समस्या ये थी कि दोनों के बीच हार-जीत का फैसला सुनाने वाला कोई तीसरा व्यक्ति मौजूद नहीं था। इस स्थिति को देखते हुए माता पार्वती ने एक उपाय निकाला। उन्होंने मिट्टी से एक छोटे बालक की आकृति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए, जिससे वह जीवित हो गया। अब खेल शुरू हुआ और माता पार्वती ने तीन-चार बार लगातार जीत हासिल की। लेकिन जब फैसला सुनाने की बारी आई, तो वह बालक बार-बार भगवान शिव को विजेता बताता रहा।

यह देखकर माता पार्वती को बहुत गुस्सा आया। उन्हें लगा कि बालक पक्षपात कर रहा है। क्रोध में आकर उन्होंने उसे श्राप दे दिया कि वह लंगड़ा हो जाएगा। श्राप मिलते ही बालक का शरीर विकलांग हो गया। अब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने मां पार्वती से क्षमा मांगी।
माता पार्वती ने कहा कि श्राप तो वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन एक उपाय जरूर है जिससे मुक्ति मिल सकती है। उन्होंने कहा कि चतुर्थी के दिन कुछ कन्याएं पूजा करने आएंगी, उनसे पूजा और व्रत की विधि जानकर तुम भी विधिपूर्वक पूजन करना। बालक ने वैसा ही किया- कन्याओं से पूजा-व्रत की विधि सीखी और श्रद्धा के साथ चतुर्थी का व्रत किया। उसकी सच्ची भक्ति और पूजा से माता पार्वती प्रसन्न हुईं और उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया। यह बालक आगे चलकर गणेश के नाम से प्रसिद्ध हुआ और तभी से विनायक चतुर्थी का पर्व मनाया जाने लगा।
