Exclusive interview: पंचायत सीजन 4 में चुनावी जंग के बीच बढ़ेगा टकराव: अक्षत विजयवर्गीय

Updated: 21 Jun, 2025 01:36 PM

exclusive interview of panchayat season 4 starcast with punjab kesari

पंचायत सीजन 4 के बारे में स्टारकास्ट ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। किसी पॉपुलर और सबकी पसंदीदा सीरीज की बात की जाए तो पंचायत का नाम सबसे ऊपर होता है। अपने 3 सुपरहिट सीजन के बाद सीरीज के मेकर्स लेकर आ रहे हैं पंचायत का सीजन-4 जो 24 जून को प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम होने वाली है। सीरीज में एक बार फिर जीतेन्द्र कुमार, नीना गुप्ता, रघुबीर यादव, फैसल मलिक, चंदन रॉय, सान्विका, दुर्गेश कुमार, सुनीता राजवार और पंकज झा जैसे शानदार कलाकार नजर आने वाले हैं। इस सीजन को दीपक कुमार मिश्रा और चंदन कुमार ने मिलकर बनाया है, स्क्रिप्ट चंदन कुमार ने लिखी है और दीपक कुमार मिश्रा और अक्षत विजयवर्गीय ने इसे डायरेक्ट भी किया है। सीरीज के बारे में स्टारकास्ट ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:


अक्षत विजयवर्गीय
सवाल: इस बार शो में क्या कुछ बदला है और क्या नया देखने को मिलेगा?
इस बार कि सीरीज चुनाव के इर्द-गिर्द घूमती है। इस सीजन में जो कॉन्फ्लिक्ट है उसे और ज़्यादा उभारकर दिखाया गया है। पिछले सीजन में जिस चुनावी माहौल की नींव रखी गई थी  उस आधार को इस सीजन में और गहराई दी गई है। इस बार चुनाव वाकई में सामने है और उसी के इर्द-गिर्द कहानी का टकराव और भी ज़्यादा तीव्र हो गया है। तो हां इस बार कहानी को रचते समय उस कॉन्फ्लिक्ट को और ज़्यादा स्ट्रॉन्ग और इन्टेंस बनाने की कोशिश की गई है।

नीना गुप्ता

सवाल: आपके किरदार में सीजन 1 से अब नए सीजन तक कई बदलाव हैं ऐसे परिवर्तन में क्या चुनौती होती है? 
किरदार में कुछ नया हो सकता है लेकिन मैं अभी भी वैसी ही हूं। मैं बदली नहीं हूं। मैं परिस्थिती के हिसाब से हूं पंचायत में चिल्ला रहीं हूं तो भी और घर पर शांत हूं तो भी। ऐसा नहीं कि मैं बदल गई हूं। लेकिन मेरे में कुछ बदलाव आए हैं। आज भी मेरा ही ज़िम्मा है कि पति को खाना देना या रिंकी की चिंता करनी है या पड़ोसियों को कुछ कहना है। 

सवाल: क्या आपको कभी पुराने जमाने की फिल्मों, कलाकारों और उस दौर के रोमांस की कमी महसूस होती है?
मैं तो सब कुछ मिस करती हूं। मुझे उस दौर का रोमांस बहुत याद आता है। काश मैं उस जमाने में पैदा हुई होती। काश मैं वहीदा जी या मधुबाला जी की तरह कुछ कर पाती। मुझे वो गाने याद आते हैं उनके बोल, उनका जादू वो मैं मिस करती हूं। उस समय के हैंडसम हीरो दिलीप कुमार, देवानंद वो सब मुझे बहुत याद आते हैं। सच कहूं तो मुझे उस दौर की हर चीज की कमी महसूस होती है, क्योंकि जो ठहराव उस समय की फिल्मों और ज़िंदगी में था वो अब नहीं है। आज की दुनिया बहुत तेज हो गई है, हर कोई बस भाग रहा है। मुझे तो लगता है कि 'मूव ऑन' तो करना ही पड़ता है, क्योंकि इसके अलावा कोई और रास्ता है भी नहीं। लेकिन हां, मैं सपना तो देख ही सकती हूं ना? उस दौर का सपना, उसकी खूबसूरती का, उसकी मासूमियत का।"

जीतेन्द्र कुमार

सवाल: फिल्ममेकिंग के पुराने दौर और अब OTT,डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जमाने में फिल्म बनाने के तरीकों में क्या फर्क महसूस करते हैं? 
हमने तो अभी शुरुआत की है और बहुत नए दौर के जो ओटीटी प्लेटफार्म हैं उन पर हम चीजे बना रहे हैं तो मुझे असल में पता नहीं कि पहले फिल्में कैसे बनती थी या वो बेहतर तरीका था या फिर जो अभी जो नई जेनरेशन जिस तरीके से बना रही हैं वो और जिस तरह से वो अपनी फिल्मों में तकनीक का इस्तेमाल कर रही है। मेरे लिए तो वो तुलना करना थोड़ा कठिन होगा। पर मुझे यह लगता है कि आज के जमाने में ज़्यादा चीजे उपलब्ध हैं और पहले कि अगर फिल्म मेकिंग की बात करें तो कठिन थी।  अगर उस तरह में मैं होता तो बड़ा कठिन होता। इस तरह का काम ढूंढना या इस तरह की कहानी ढूंढना या इस तरह की पोजिशन पर आना। आज आपके पास ज़्यादा प्लेटफार्म हैं जहां आप अपनी कला दिखा सकते हो अपनी कहानी बता सकते हो और लोगों तक पहुंच सकते हो।


सुनीता राजवार

सवाल: आप पुराने जमाने की किन चीजों को आज भी याद करती हैं?
जैसा की नीना जी ने कहा और उन्होंने कहा पुरानी जो फिल्में थी उनका जो कॉनसेप्ट होता था हमारे पास इतनी अच्छी अच्छी फिल्में हैं कि जैसे गुरु दत्त जी की, राज कपूर जी की। उस समय की जो हिरोइन थी उनका जो वह जो रोमांस और अदायगी थी ना, वह आज नहीं है। इसके अलावा म्यूजिक जैसे कव्वाली, कैबरे इन सब को बहुत मिस करती हूं जो आज हमारे पास नहीं हैं। उस कल्चर को मिस करती हूं।

चंदन रॉय

सवाल: सीरीज की शूटिंग भोपाल के आस-पास हुई है उस शहर की ज़िंदगी, वहां का माहौल का सीरीज पर कितना असर डालते हैं?
भोपाल बहुत ही धीमी और सुकून भरी ज़िंदगी वाला शहर है। मैं आज भी जब 10 साल बाद जाता हूं, तो सब कुछ वैसा ही लगता है। लोग एक ही विषय पर पूरे दिन बात कर सकते हैं, आराम से जीते हैं और खाना पोहा-जलेबी तो हर सुबह का नाश्ता है। थोड़ा आगे हैं हम भोपाल से, लेकिन फिर भी वहां का स्वाद हमारे यहां भी है। पोहे में जीरावन जरूर होना चाहिए! और भोपाल की जलेबी वो तो हम आज भी सेट पर मंगवाते हैं। भोपाल की vibe ऐसी है कि आप किसी भी शहर का रूप दे सकते हो उसे। फिल्ममेकिंग के लिहाज़ से बहुत versatile है शांत, सरल, लेकिन गहराई से भरा हुआ।


सवाल: जब आपने करियर शरु किया था तो सबसे बड़ा संघर्ष क्या था? कोई ऐसी चीज जो आपको बार-बार चैलेंज कर रही थी?

नीना गुप्ता

एक नहीं, पूरी जिंदगी ही कनफ्लिक्ट थी। ना रहने का ठिकाना, ना काम का, ना खाने का। हर दूसरे दिन दिल्ली भागना वहां से मसाले, खाना, बादाम सब लेकर आना और काम? जब काम मिलता भी था। तो संघर्ष तो काफी रहा।

सुनीता राजवार

मुझे तो सिर्फ मेड के रोल मिलते थे। ऐसा लगता था जैसे अगर मैंने एक सीन और कर लिया तो Guinness Book में नाम आ जाएगा maid roles के लिए। फिर मैंने मना करना शुरू किया — ये करना जरूरी था, ताकि सेल्फ रिस्पेक्ट बनी रहे। मैंने शुरुआत में नीना जी को असिस्ट किया था। और वहीं से समझ में आया कि जब आप ना कह सकते हैं किसी काम को, तब समझो आप कहीं पहुंचे हो। मैंने भी कई काम मना किए, जब कुछ भी नहीं था और यही ज़रूरी होता है खुद की कद्र करना।

जितेंद्र कुमार

मेरी शुरुआत यू ट्यूब से हुई। हम लोग बहुत सारे sketches बनाते थे 10-12 मिनट के फनी और रिलेटेबल वीडियो। वो काफी साल चला। ऐसा नहीं हैं कि उसके तुंरत बाद फिल्में और ओटीटी में काम मिलने लगा। लेकिन मेरे मन में हमेशा था कि असली कहानियां कब कहूंगा? 3-4 साल बाद भी यही सवाल था  "यार कब लॉन्ग फॉरमेट चीजें मिलेंगी? वो इंतजार बहुत लंबा चला 6-7 साल का। फिर पहली फिल्म मिली, जो थियेटर में रिलीज हुई और लोगों को बहुत पसंद आई खासकर मेरे शहर, मेरे खानदान में। यही एक संघर्ष रहा।

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