Edited By Tanuja,Updated: 25 Dec, 2025 12:23 PM

चीन का एनर्जी दांव जिसने वेस्ट हीट को बना दिया सोना
Bejing: चीन ने ऊर्जा और पर्यावरण के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक तकनीकी उपलब्धि हासिल की है। देश में दुनिया की पहली व्यावसायिक सुपरक्रिटिकल CO₂ (कार्बन डाइऑक्साइड) पावर जेनरेशन यूनिट- Super Carbon-1 पावर प्लांट सफलतापूर्वक संचालित हो गई है, जो अब औद्योगिक अपशिष्ट गर्मी से बिजली पैदा कर रही है। इस प्रोजेक्ट ने प्रयोगशाला को पार कर व्यावसायिक स्तर पर CO₂ आधारित ऊर्जा उत्पादन को संभव कर दिया है, जिससे भविष्य के कम-कार्बन ऊर्जा समाधान की दिशा में बड़ा बदलाव आएगा।
क्या है सुपरक्रिटिकल CO₂ तकनीक?
Super Carbon-1 तकनीक में परंपरागत भाप (steam) की जगह CO₂ को सुपरक्रिटिकल अवस्था में लाकर तापीय ऊर्जा को बिजली में बदला जाता है। सुपरक्रिटिकल अवस्था में CO₂ न तो पूरी तरह गैस जैसा होता है और न तरल जैसा, जिससे यह ऊर्जा संचरण और ताप विनिमय के लिए अत्यंत कुशल माध्यम बन जाता है।यह तकनीक औद्योगिक अपशिष्ट गर्मी का उपयोग करती है जैसे स्टील संयंत्रों से निकलने वाली गर्म गैसें और इसे बिजली में बदल देती है।
कैसे लागू हुआ प्रोजेक्ट?
चीन में यह यूनिट लीउपानशुई (गुयझोउ प्रांत) के Shougang Shuicheng Iron & Steel Group के संयंत्र में स्थापित है। इस परियोजना को China National Nuclear Corporation (CNNC) और उसकी शोध इकाई ने विकसित किया है, जिसने इसे व्यावसायिक ग्रिड से जोड़ा है। परियोजना में दो 15 मेगावाट यूनिट्स शामिल हैं, और उन्हें औद्योगिक गर्मी से बिजली उत्पादन के लिए डिज़ाइन किया गया है। इससे कुल मिलाकर लगभग 70 मिलियन किलोवाट-घंटे बिजली प्रति वर्ष उत्पन्न होने की क्षमता है, वहीं यह नेट पावर आउटपुट में 50% से अधिक और ऊर्जा दक्षता में 85% से अधिक सुधार प्रदान करता है।
तकनीकी और आर्थिक लाभ
पारंपरिक भाप-आधारित प्रणालियों के मुकाबले CO₂ प्रणाली कम ऊर्जा नुकसान के साथ अधिक बिजली उत्पन्न करती है। Super Carbon-1 जैसे सिस्टम में कम्पोनेंट्स की संख्या कम होती है, जिससे रख-रखाव आसान होता है। यह तकनीक विशेष रूप से भारी उद्योगों के लिए फायदेमंद है, क्योंकि इनके पास पहले से मौजूद गर्मी स्रोत होते हैं। बिजली उत्पादन से अतिरिक्त राजस्व भी प्राप्त होने की उम्मीद है, जिससे परियोजना की लागत-लाभ स्थिति मजबूत होती है।
केवल चीन तक सीमित नहीं
इस प्रोजेक्ट का महत्व केवल चीन तक सीमित नहीं है। यह दुनिया को दिखाता है कि अवैध CO₂ उत्सर्जन को कम करने के साथ-साथ उसे ऊर्जा उत्पादन में कैसे उपयोग किया जा सकता है। हालांकि CO₂ को “ऊर्जा स्रोत” नहीं बल्कि कामकाज के लिए कार्यशील द्रव (working fluid) के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, यह तकनीक ऊर्जा दक्षता को बढ़ाकर कम-कार्बन ऊर्जा उत्पादन की दिशा में एक बड़ा कदम है। विशिष्ट तापीय ऊर्जा स्रोतों जैसे औद्योगिक गर्मी, सोलर थर्मल, और उन्नत परमाणु संयंत्रों में इस तकनीक के प्रयोग से डायरेक्ट इलेक्ट्रिसिटी उत्पादन के मॉडल भी विकसित हो सकते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन को रोकने की वैश्विक कोशिशों को बल मिलेगा।
चीन की ऊर्जा रणनीति में यह कदम क्यों अहम ?
यह तकनीक सीधे CO₂ से ऊर्जा पैदा नहीं करती; CO₂ को उच्च तापमान और दबाव में सुपरक्रिटिकल अवस्था में लाकर गर्मी को प्रभावी ढंग से टरबाइन तक पहुंचाया जाता है ताप से मैकेनिकल ऊर्जा और फिर बिजली उत्पन्न होती है। इसलिए CO₂ का उपयोग ‘मध्यम’ के तौर पर होता है, न कि ऊर्जा स्रोत के रूप में।
चीन की सरकार जलवायु लक्ष्यों, ऊर्जा सुरक्षा और तकनीकी नेतृत्व की दिशा में तेजी से काम कर रही है। सुपरक्रिटिकल CO₂ तकनीक को व्यावसायिक रूप सलागू करने वाला पहला देश बनने के साथ, चीन न केवल नवीन ऊर्जा समाधान में आगे है, बल्कि ऊर्जा नीति में वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी अपनी स्थिति मज़बूत कर रहा है।
Super Carbon-1 परियोजना चीन के ऊर्जा परिदृश्य को बदलने वाली तकनीकी क्रांति का एक उदाहरण है, जो औद्योगिक तापीय ऊर्जा को कुशलता से बिजली में बदलकर ऊर्जा दक्षता, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ प्रदान कर सकती है।