Iran-Israel War: किसी का सगा नहीं चीन, 'पुराने दोस्त' ईरान को दिखाया ठेंगा ! जंग में अपने फायदे को दी पहल

Edited By Updated: 25 Jun, 2025 11:20 AM

longtime friend china of iran turns to cautious diplomacy in war

इजराइल ने जब दो सप्ताह पहले ईरान पर हमला किया तो तेहरान के पुराने मित्र चीन ने तुरंत हरकत में आते हुए हमलों की निंदा की। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के राष्ट्रपति ...

International Desk: इजराइल ने जब दो सप्ताह पहले ईरान पर हमला किया तो तेहरान के पुराने मित्र चीन ने तुरंत हरकत में आते हुए हमलों की निंदा की। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फोन करके संघर्ष विराम कराने का आह्वान किया। विदेश मंत्री वांग यी ने ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची से फोन पर बात की। लेकिन इसके बाद चीन यहीं थम गया।  चीन ने 'पुराने दोस्त' ईरान को ठेंगा दिखाया  और जंग में अपने फायदे को पहल दी और बस   बयानबाजी तक सिमट गया। तनाव कम करने और बातचीत का आह्वान किया गया किन ईरान को उसने कोई सहायता नहीं दी।

 

अमेरिका को टक्कर देने वाले देश के रूप में अपने प्रभाव और वैश्विक मंच पर बड़ी भूमिका निभाने की महत्वाकांक्षा के बावजूद चीन ने ईरान को सैन्य सहायता देने से परहेज किया। इस फैसले ने पश्चिम एशिया में उसके सामने मौजूद सीमाओं को उजागर कर दिया। गैर-लाभकारी वैश्विक नीति थिंकटैंक ‘रैंड' में चाइना रिसर्च सेंटर के निदेशक जूड ब्लैंचैट ने कहा, "बीजिंग के पास कूटनीतिक क्षमता और जोखिम उठाने के माद्दे का अभाव है, जिसके दम पर वह इस तेजी से बदलते और अस्थिर हालात में तुरंत हस्तक्षेप करके उनसे सफलतापूर्वक निपट सके।" उन्होंने कहा कि पश्चिम एशिया की उलझी हुई राजनीति को देखते हुए चीन वहां के मामलों में पड़ने का इच्छुक नहीं है, इसके बजाय वह "एक संतुलित, जोखिम से बचने वाला सहयोगी" बने रहने का विकल्प चुनता है।

 

पूर्वी चीन में नानजिंग विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंध विद्यालय के डीन झू फेंग का मानना है कि पश्चिम एशिया में अस्थिरता चीन के हित में नहीं है। झू ने कहा, "चीन के दृष्टिकोण से, इजराइल-ईरान संघर्ष से चीन के व्यापारिक हितों और आर्थिक सुरक्षा के सामने चुनौती पैदा होती है। और वह ऐसा नहीं होने देना चाहता।" ईरान की संसद में पिछले हफ्ते के आखिर में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की योजना पेश की गई, जिसका चीन ने विरोध किया। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने ईरानी संसद में योजना पेश किए जाने के बाद कहा, "चीन अंतरराष्ट्रीय समुदाय से संघर्षों को खत्म करने और क्षेत्रीय उथल-पुथल से वैश्विक आर्थिक विकास पर पड़ने वाले प्रभाव को रोकने के लिए प्रयास तेज करने का आह्वान करता है।” मंगलवार को युद्ध विराम की घोषणा के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा, "चीन अब ईरान से तेल खरीदना जारी रख सकता है।"

 

ट्रंप के इस बयान से संकेत मिलता है कि युद्ध विराम से ईरानी तेल उत्पादन में व्यवधान को रोका जा सकेगा। अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन की 2024 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि ईरान द्वारा निर्यात किए जाने वाले तेल का लगभग 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा चीन को जाता है। ईरान से मिलने वाले लगभग 1.2 मिलियन बैरल तेल और अन्य जीवाश्म ईंधन के बिना चीन को अपने औद्योगिक उत्पादन को बरकरार रखने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। वाशिंगटन में स्थित थिंक टैंक ‘फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज' के वरिष्ठ चीनी फेलो क्रेग सिंगलटन ने बीजिंग की प्रतिक्रिया को "तेल की निरंतर खरीद और बातचीत के लिए औपचारिक आह्वान" करार दिया। सिंगलटन ने कहा, "बस यही बात है। चीन ने ईरान को न तो कोई ड्रोन या मिसाइल उपकरण दिए और न ही कोई आपातकालीन ऋण प्रदान किया। तेहरान को शांत करने के लिए सिर्फ बयान जारी किए ताकि सऊदी अरब को कोई समस्या न हो और न ही अमेरिका कोई प्रतिबंध लगाए।”

 

सिंगलटन ने कहा, "चीन का मकसद खाड़ी के देशों के साथ व्यापार करना है, युद्ध में उलझना नहीं। ईरान से उसकी बहुचर्चित रणनीतिक साझेदारी युद्ध के समय केवल बयानबाजी तक सीमित रह जाती है।” चीन ने बयानबाजी के जरिए ईरान का पक्ष लिया और मध्यस्थता कराने का वादा किया। युद्ध की शुरुआत के बाद से चीन ईरान के पक्ष में खड़ा रहा और बातचीत का आग्रह किया। चीन ने 2023 में ईरान और सऊदी अरब के बीच कूटनीतिक तालमेल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। संयुक्त राष्ट्र में, सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य चीन ने रूस और पाकिस्तान के साथ मिलकर ईरान में परमाणु स्थलों और सुविधाओं पर हमलों की "कड़े शब्दों में" निंदा करते हुए एक मसौदा प्रस्ताव पेश किया। दोनों देशों ने "तत्काल और बिना शर्त युद्ध विराम" का आह्वान किया।  

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