लॉकडाउन का 1 साल:करोड़ों नौकरियां गईं व खोया मानसिक सुकून, अब तक पटरी पर नहीं लौटी जिंदगी

Edited By Seema Sharma,Updated: 23 Mar, 2021 12:59 PM

1 year of lockdown millions of jobs gone

देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर की शुरुआत हो चुकी है। इसी बीच देश के कई राज्यों में लॉकडाउन और नाइट कर्फ्यू के साथ ही अन्य कई पाबंदियां बढ़ा दी गई हैं। कोरोना के मामले फिर बढ़ने से लोगों की चिंता भी बढ़ गई है क्योंकि पिछले साल मार्च में ही कोरोना...

नेशनल डेस्क: देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर की शुरुआत हो चुकी है। इसी बीच देश के कई राज्यों में लॉकडाउन और नाइट कर्फ्यू के साथ ही अन्य कई पाबंदियां बढ़ा दी गई हैं। कोरोना के मामले फिर बढ़ने से लोगों की चिंता भी बढ़ गई है क्योंकि पिछले साल मार्च में ही कोरोना केस में बढ़ोत्तरी हुई थी और तब 23 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की गई थी। लॉकडाउन को एक साल हो चला है लेकिन कई लोग अब उसके दंश से उभर नहीं पाए हैं।

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कोरोना की रफ्तार को थामने के लिए पूरे देश को लॉक कर दिया गया था। दुकानों से लेकर कारखाने तक सब बंद हो गए। बाजारों से रौनक चली गई, सड़कें सुनसान हो गईं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मार्च को कोरोना के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए 23 मार्च को पूर्ण लॉकडाउन का ऐलान किया था। जरूरी सामानों की दुकानों, मेडिकल स्टोर को छोड़कर सबकुछ बंद था। 

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लॉकडाउन ने छीनी नौकरियां
लॉकडाउन के प्रभाव से नौकरीपेशा लोग भी नहीं बच पाए। लॉकडाउन के दौरान कई कंपनियों ने अपने कर्मचारी निकाल दिए। ऑक्सफैम के मुताबिक साल 2020 अप्रैल में हर घंटे 1.70 लाख लोगों की नौकरियां गईं। रोजगार खोने वालों में से 75 फीसदी असंगठित क्षेत्र से जुड़े थे। 25 मई, 2020 तक देश में औसत बेरोजगारी दर 24.5% रही। शहरों में 26.3% तो गांवों में 23.7% लोग बेरोजगार हो गए। महिलाओं को बेरोजगारी का दंश सबसे ज्यादा झेलना पड़ा।

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खोया मानसिक सुकून
कुछ कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को पूरा सहयोग दिया। हालांकि नौकरी खोने के डर से कई लोगों का मानसिक सुकुन चला गया। इशके साथ ही लोगों के दिमाग में महामारी का डर इस कद्र घर कर गया था कि भागती-दौड़ती जिंदगी ठहर-सी गई थी। लोग नौकरी बचाने की चिंता के साथ-साथ परिवार को कुछ न हो जाए परेशानी से भी लड़ रहे थे। वहीं जो लोग अपने घरों से दूर थे वो अकेलेपन से जूझ रहे थे। आर्थिक स्थिति खराब होने की खबरों से मानसिक सुकुन छिन गया, कासकर उन लोगों का जिन पर अपने परिवार की सारी जिम्मेदारी थी। कई नौजवान तो तनाव की स्थिति में आ गए और कई तो डिप्रेशन में भी चले गए।  

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कंधे पर छोटे-छोटे बच्चे, चेहरे पर भय
लॉकडाउन के दौरान प्रवासी भारतीयों की जिंदगी सड़क पर आ गई थी। काम-धंधे ठप होने के बाद प्रवासी भारतीय मजदूर अपने घरों को लौटने के लिए मजबूर हो गए थे। सारे परिवहन बंद होने के कारण यह मजदूर पैदल ही अपने घरों को निकल पड़े थे। कंधों पर छोटे-छोटे बच्चे और तपती धूप में यह लोग पीछे नहीं हटे। इस दौरान कई दर्दनाक घटनाएं भी सामने आईं। कोई अपने घर पहुंचने के बेहद करीब होकर भी अपनों से मिले बिना दुनिया से विदा हो गया तो किसी की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। हालांकि सरकार ने मजदूरों को जहां हैं वहीं रूकने को कहा लेकिन सिर्फ खाना ही जरूरी नहीं होता कमरे का किराया और अन्य जरूरतों के लिए पैसों की भी जरूरत थी जो एक दिहाड़ीदार को बिना काम के मिलना मुश्किल था। ऐसे में इन लोगों ने अपने घरों को लौट जाना ही सही समझा।

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बच्चों में छूटी सीखने-पढ़ने की ललक
लॉकडाउन में स्कूल-कॉलेज भी बंद थे। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई घरों से ही हो रही थी। क्लासें ऑनलाइन चल रही थी लेकिन जिनके पास यह सुविधा नहीं थी उन बच्चों में पढ़ने और सीखने की जो ललक थी वो खत्म हो गई। आज भी बच्चे अब स्कूलों में जाने के इच्छुक नहीं हैं।

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अब भी पटरी पर नहीं लौटी जिंदगी
भले देश अनलॉक हो चुका है लेकिन जिंदगी अब भी पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौटी है। कई लोग अब नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं और जिनको नौकरी मिली वो पहले से कम सैलरी पर काम कर रहे हैं। लोग पूरी तरह से उस माहौल से अभी बाहर नहीं निकल पाए हैं। कई एक्सपर्ट का कहना है कि कोरोना से पहले वाली जिंदगी में लौटने के लिए अभी लोगों को लंबा समय लगेगा क्योंकि व्यापार और अन्य काम-धंधे उतनी तेजी से नहीं चल रहे हैं जो कोरोना के पहले की स्थिति थी। वहीं लोग इस समय मंहगाई का भी सामना कर रहे हैं। पेट्रोल-डीजल से लेकर घरेलु सिलेंडर तक और दालें तक काफी मंहगी हो गई हैं।

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